बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
सम्भाजी राजे से मिलकर महाराज पन्हाला से रायगढ़ आए। अब यह वापसी का सफर था। पिछले 50 वर्षों से यह देह लगातार मुसीबतें झेल रही थी। जूझ रही थी। जिन्दगी के जद्दोजहद से महाराज अब थक गए थे। महाराज पर जान छिड़कने वाले कई लोग बीच में ही आगे निकल गए थे। महाराज से जान से भी ज्यादा प्यार करने वाली सईबाई साहब कब की आगे निकल गई थीं। महाराज के तान्हाजी, बाजी, सूर्याजी, त्रयम्बक सोनदेव, मुरार बाजी वगैरा कई जानी दोस्तों की पालकियाँ बहुत पहले आगे चली गई थीं। साए लम्बे होते जा रहे थे। आखिरी यात्रा के पखावज, ढोल-मंजीरे की ध्वनि सुनाई देने लगी थी। महाराज इस बार उसी यात्रा के लिए रायगढ़ आए थे।
हालाँकि सोयराबाई रानीसाहब की झल्लाहट अब भी जारी ही थी। सचमुच इस औरत ने अपने पति के मन को जाना ही नहीं। बहुत ओछा मन था उसका। बड़े आदमी को ओछे मन की बीवी मिले, इससे बढ़कर बदकिस्मती नहीं। अनगिनत लड़ाइयाँ और राजनीतिक दाँव जीतने वाले महाराजाधिराज क्षत्रिय कुलावतंस सिंहासनाधीश्वर छत्रपति शिवाजी महाराज निजी जिन्दगी में बुरी तरह हार गए थे। यहाँ उनकी यशोदुन्दुभि निष्प्रभ हो गई थी। हाय! महाराज, ऐसा क्यों हुआ?
वैसे, महाराज के लिए घर-गृहस्थी के आखिरी दो मंगल कार्य रह गए थे अभी। एक- बेटे राजाराम का जनेऊ संस्कार और दूसरा- उनकी शादी। महाराज ने उनका जनेऊ-संस्कार किया (दिनांक 7 मार्च 1680)। तुरन्त बाद शादी भी करा दी (दिनांक 15 मार्च)। प्रतापराव गुजर की कन्या जानकीबाई महाराज की बहू हुई। रायगढ़ पर मंगल बाजे बजे। इस शादी में महाराज ने काफी दान-धर्म किया। फिर फागुन की अमावस को (दिनांक 20 मार्च) सूर्य को ग्रहण लगा। सूर्य का कुल ग्रहण रायगढ़ पर साढ़े नौ अंगुल था। पर सूर्यग्रहण समाप्त हुआ और तभी सूरज डूब गया। अन्धेरा घिरने लगा।
दो दिन पश्चात् महाराज को बुखार आने लगा। तबीयत तेजी से गिरने लगी। आखिरी घड़ी आई। उनके पास बैठे, उनसे प्यार करने वालों से उन्होंने शान्त स्वर में कहा, “कैलास को भगवान के दर्शन करने जाऊँगा। अब आप सब बाहर बैठिए। हम भगवान का स्मरण करते हैं।” महाराज ने सब से विदा लेकर, भगवान का स्मरण करते हुए मृत्यु की उँगली पकड़ ली (चैत्र पूर्णिमा, शनीचर, हनुमान जयन्ती, दोपहर बारह बजे, दिनांक 3 अप्रैल 1680)।
भरी दुपहरी में सूरज डूब गया।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ
57- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी ने हुक्म भेजा- सम्भाजी हमला करें, तो बेझिझक बम गिराओ
56- शिवाजी ‘महाराज’ : क्या युवराज सम्भाजी राजे सचमुच ही ‘स्वराज्यद्रोही गद्दार’ थे?
55- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी ने जब गोलकोंडा के बादशाह से हाथ मिलाया, गले मिले
54- शिवाजी ‘महाराज’ : परधर्मो भयावहः, स्वधर्मे निधनं श्रेयः…अपने धर्म में मृत्यु श्रेष्ठ है
53- शिवाजी ‘महाराज’ : तभी वह क्षण आया, घटिकापात्र डूब गया, जिजाऊ साहब चल बसीं
52- शिवाजी ‘महाराज’ : अग्नि को मुट्ठी में भींचा जा सकता है, तो ही शिवाजी को जीता जा सकता है
51- शिवाजी ‘महाराज’ : राजा भए शिव छत्रपति, झुक गई गर्वीली गर्दन
50- शिवाजी ‘महाराज’ : सिंहासनाधीश्वर, क्षत्रियकुलावतंस महाराज शिवछत्रपति
49- शिवाजी ‘महाराज’ : पहले की शादियाँ जनेऊ संस्कार से पहले की थीं, अतः वे नामंजूर हो गईं
48- शिवाजी ‘महाराज’ : रायगढ़ सज-धज कर शिवराज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहा था
47-शिवाजी ‘महाराज’ : महाराष्ट्र का इन्द्रप्रस्थ साकार हो रहा था, महाराज स्वराज्य में मगन थे
46- शिवाजी ‘महाराज’ : राज्याभिषिक्त हों, सिंहानस्थ हों शिवबा
45- शिवाजी ‘महाराज’ : शिव-समर्थ भेंट हो गई, दो शिव-सागर एकरूप हुए
44- शिवाजी ‘महाराज’ : दुःख से अकुलाकर महाराज बोले, ‘गढ़ आया, सिंह चला गया’
43- शिवाजी ‘महाराज’ : राजगढ़ में बैठे महाराज उछल पड़े, “मेरे सिंहों ने कोंढाणा जीत लिया”
42- शिवाजी ‘महाराज’ : तान्हाजीराव मालुसरे बोल उठे, “महाराज, कोंढाणा किले को में जीत लूँगा”
41- शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
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