शिवाजी ‘महाराज’ : सिंहासनाधीश्वर, क्षत्रियकुलावतंस महाराज शिवछत्रपति

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

महाराज के माथे पर से अभिषेक-जल की अमृतमय धाराएँ बह निकलीं। जिजाऊ साहब का बरसों से सजाया हुआ सपना उनके जीते-जी पूरा हुआ। उनके बेटे, शिवा का राज्याभिषेक। इससे भी बड़ी कोई खुशी होगी माँ की? अभिषेक के बाद महाराज, महारानी और युवराज ने वस्त्रालंकार धारण किए। महाराज के बाएँ हाथ में श्रीविष्णुजी की सुवर्णमूर्ति और दाएँ हाथ में था धनुष। कमर में भवानी तलवार झूल रही थी। सौभाग्यसम्पन्न महारानी सोयराबाई साहब पटबन्धन कर आईं। महाराज, महारानी और युवराज ने कुल के देवी-देवताओं की वन्दना की। कुलगुरु की पगधूलि ली। बाद में तीनों आऊसाहब की वन्दना के लिए आए। उनके चरणों में झुककर उन्होंने पाँवलागी की।

हिन्दवी स्वराज्य का महाराज, महारानी और युवराज आऊसाहब के कदमों में झुके हुए थे। बचपन में शिवनेरी की मिट्टी में घुटनों के बल चलने वाला खेलने-कूदने वाला शिवबा आज भूपति-छत्रपति हो रहा था। आऊसाहब को कितना भला लग रहा होगा। कृतार्थ हो गई थीं वह। उनके मुख पर छाईं बुढ़ापे की झुर्रियाँ तृप्त आनन्द से थरथराईं होंगी। दूध पर छाई मलाई की तरह। आऊसाहब की तपस्या की समाप्ति हो रही थी। महाराज के आगे-पीछे जानलेवा विपदाओं और दुश्मनों की कतारें हमेशा ही खड़ी होती थीं। रणभूमि में गिरने वाले खून के साथ-साथ यहाँ आऊसाहब का खून भी चिन्ता से जलता रहता था। हमेशा यही आशंका हृदय को चीरती रहती कि मुसीबतों का मुकाबला कर महाराज फिर से घर लौटेंगे या नहीं। इसके बावजूद ढलती उमर में भी उन्होंने अपने इकलौते लाल को कर्तव्यों से. साहस से कभी परावृत्त नहीं किया। जिन्दगी की साँझ में भी यह माँ अपने बेटे को रणभूमि में भेजती थीं।

अभी राज्याभिषेक से पहले ही महाराज केंजलगढ़ पर लड़े थे। सचमुच इन माँ-बेटों का जीवन अनोखा था। यह था आग की लपटों का जीवन। वह तो आग से ही उठना था, आग में ही लोप होना था। हम तो सिर्फ उनकी वन्दना कर सकते हैं। वह भी दूर ही से। जिजाऊ साहब के छह बेटे हुए थे। उनमें से चार नन्हे से थे, तभी मौत उन्हें उठा ले गई। बड़े सिर्फ सम्भाजी राजे और शिवाजी राजे ही हुए। इनमें भी सम्भाजी कनकगिरि में 33 साल की उमर में मारे गए (सन् 1656)। शिवाजी राजे जिजाऊ साहब के बुढ़ापे की लाठी थे। इस लाठी पर सोने का कलश झलका। गेरुआ ध्वज लहरा उठा। जिजाऊ साहब की जवान आँखों ने जुल्मी सुल्तान की सनक से मायका उजड़ते देखा था। धर्मस्थान नष्ट होते देखे थे। माँ-बहनों को भ्रष्ट होते देखा था। तभी से उन्होंने मन ही मन सपना देखा था। स्वतंत्र, सार्वभौम हिन्दवी साम्राज्य का। ऐसा, जहाँ माँ-बहनें सुख-चैन से रह सकें। लोग आत्म-सम्मान से जी सकें। आज उनका सपना सच हो रहा था।

महाराज अब राजसभा की ओर चल दिए। राजसभा में तिल धरने की जगह नहीं थी। सोने का डंडा लिए वेत्रधारक, चोबदार, अष्टप्रधान मंडल और चिटनवीस महाराज के साथ अदब से चल रहे थे। सामने सोने का जड़ाऊ सिंहासन दमक रहा था। सिंहासन के दोनों तरफ राजचिह्न जगमगा रहे थे। सोने के भाले पर सोने का तराजू झूल रहा था। दूसरी तरफ दो भालों की नोंक पर बड़े दाँतों वाले दो सुवर्णमत्स्य जग-मग कर रहे थे। छत्र, सोने की मूठवाले मोरपंखों के पंखे, चँवर, सादा पंखे वगैरा राजचिह्न महाराज का बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे। अनगिनत स्त्री-पुरुष, राजमंडल, राजनीतिज्ञ, सरदार, धनिक लोग, कवि-कलावन्त, पंडितजन, सेवकवर्ग आदि समुदायों से राजसभा खिल उठी थी। समय पौ फटने से पहले का था। बाहर अभी अँधेरा ही था। दीए, मशालें और रोशनाई के पीले-केसरी आलोक ने राजसभा की सुन्दरता में चार चाँद लगाए थे। खुशियाँ हँस-बोल रही थीं।

महाराज राजसभा में पधारे। धरती पर दायाँ घुटना मोड़कर उन्होंने सिंहासन को वन्दन किया। अष्टप्रधान अपने-अपने स्थानों पर खड़े हो गए। खुशी की घड़ी निहारने के लिए सबकी आँखें सिंहासन की तरफ लगी हुई थीं। गागाभट्ट और पंडितजन उच्च स्वर में वेदमंत्रों का पठन कर रहे थे। भारतवर्ष के इतिहास का अमृत-क्षण प्रकट हुआ। श्रीनृपशालिवाहन शके 1596, आनन्दनाम संवत्सर, ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, शनीचर, सुबह तड़के पाँच बजे मुहूर्त की घटिका हुई। गागाभट्ट के सूचित करते ही महाराज सिंहासन पर आरूढ़ हुए। गागाभट्ट ने महाराज के सिर पर छत्र रखा और समवेत स्वर में जयघोष हुआ ‘महाराज सिंहासनाधीश्वर क्षत्रिय कुलावतंस राजा शिवछत्रपति की जय, जय, जय!’

तोपों, बन्दूकों के धमाके हुए। नौबतें, शहनाई, सींग, कर्णे, खड़ताल सभी बाजे जोर-शोर से बजने लगे। हजारों कंठों से जयघोष उभर रहा था, ‘राजा शिवछत्रपति की जय!’ खील-फूल, अक्षत और सुगन्धित पदार्थों की वृष्टि होने लगी। नर्तिकाएँ नाचने लगीं। चारण स्तुतिपाठ करने लगे। दशों दिशाएँ मदमत्त हुई। चार पातशाहियों से जूझकर हमारा राजा सार्वभौम छत्रपति हुआ।। तोपों ने सार्वभौम छत्रपति शिवाजी महाराज को सलामी दी। स्वराज्य के सभी किलों में ठीक इसी समय तोपों के धमाके हुए। सभी किलों में हजारों कंठों ने महाराज का जय-जयकार किया। उस जयध्वनि से दिल्ली का माथा ठनका। बीजापुर के माथे पर त्योरियाँ उभरीं। फिरंगियों की आँखों की नींद उड़ गई। 
—–
(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
—– 
शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ 
49- शिवाजी ‘महाराज’ : पहले की शादियाँ जनेऊ संस्कार से पहले की थीं, अतः वे नामंजूर हो गईं
48- शिवाजी ‘महाराज’ : रायगढ़ सज-धज कर शिवराज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहा था
47-शिवाजी ‘महाराज’ : महाराष्ट्र का इन्द्रप्रस्थ साकार हो रहा था, महाराज स्वराज्य में मगन थे
46- शिवाजी ‘महाराज’ : राज्याभिषिक्त हों, सिंहानस्थ हों शिवबा
45- शिवाजी ‘महाराज’ : शिव-समर्थ भेंट हो गई, दो शिव-सागर एकरूप हुए
44- शिवाजी ‘महाराज’ : दुःख से अकुलाकर महाराज बोले, ‘गढ़ आया, सिंह चला गया’
43- शिवाजी ‘महाराज’ : राजगढ़ में बैठे महाराज उछल पड़े, “मेरे सिंहों ने कोंढाणा जीत लिया”
42- शिवाजी ‘महाराज’ : तान्हाजीराव मालुसरे बोल उठे, “महाराज, कोंढाणा किले को में जीत लूँगा”
41- शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

गाँव की दूसरी चिठ्ठी : रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ…!!

मेरे प्यारे बाशिन्दे, मैं तुम्हें यह पत्र लिखते हुए थोड़ा सा भी खुश नहीं हो… Read More

2 days ago

ट्रम्प की दोस्ती का अनुभव क्या मोदीजी को नई सोच की ओर प्रेरित करेगा?

पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलाए गए भारत के ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ का नाटकीय ढंग से पटाक्षेप हो… Read More

3 days ago

ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता, इस बात में कितनी सच्चाई है?

अगर आप ईमानदार हैं, तो आप कुछ बेच नहीं सकते। क़रीब 20 साल पहले जब मैं… Read More

4 days ago

जो हम हैं, वही बने रहें, उसे ही पसन्द करने लगें… दुनिया के फ़रेब से ख़ुद बाहर आ जाएँगे!

कल रात मोबाइल स्क्रॉल करते हुए मुझे Garden Spells का एक वाक्यांश मिला, you are… Read More

5 days ago

‘एशेज़ क्रिकेट श्रृंखला’ और ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ की कहानियाँ बड़े दिलचस्प तौर से जुड़ी हैं!

यह 1970 के दशक की बात है। इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई… Read More

6 days ago

‘ग़ैरमुस्लिमों के लिए अन्यायपूर्ण वक़्फ़’ में कानूनी संशोधन कितना सुधार लाएगा?

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव उतार पर है। इसके बाद आशंका है कि वक़्फ़ संशोधन अधिनियम… Read More

6 days ago