नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
दुनियाभर में यह प्रश्न उठता रहता है कि कौन सी मानव सभ्यता कितनी पुरानी है? सिन्धु घाटी सभ्यता, मिस्र की सभ्यता या कोई और? यहाँ तक कि हिन्दुस्तान के भीतर ही तमिलनाडु के मौज़ूदा मुख्यमंत्री सियासी दाँव-पेंचों के माध्यम से यह साबित करने में लगे हैं, उनके राज्य की तमिल सभ्यता भारत भूमि में पनपी सबसे प्राचीन सभ्यताओं में है। हालाँकि इन सभी सभ्यताओं के कालखंड पर ग़ौर करें तो कोई 5-7 हजार साल से पीछे नहीं जाती। उसमें भी इतने हजार साल पहले के नाम-ओ-निशान के नाम पर तो खुदाई में मिले सिर्फ़ अवशेष ही मिलते हैं।
लेकिन…, किसी को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि हिन्दुस्तान की धरती पर ही एक सभ्यता ऐसी भी है, जो क़रीब 60 हजार पुरानी मानी जाती है और उसकी ‘मानव-बस्तियाँ’ अब तक क़ायम हैं!! हाँ, अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के उत्तरी छोर पर म्याँमार से लगे इलाक़े में ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा है ‘उत्तरी सेन्टिनल’ द्वीप। वहाँ ‘सेन्टिनल’ नाम की ही जनजाति के लोग रहते हैं। कुल संख्या के लिहाज़ से अनुमान है कि महज़ 150 लोग ही रहते होंगे। लेकिन ये लोग बीते क़रीब 60 हजार साल पहले का ‘आदिम इतिहास’ अपने आप में समेटे हुए हैं।
हाँ, बिल्कुल। कहने का मतलब यही है कि सेन्टिनल आदिवासियों की मौज़ूदगी अब से 60 हजार साल पहले भी थी, और आज भी है। ऐसा अधिकांश विशेषज्ञों का अनुमान है। तो यहीं यह सवाल हो सकता है कि आख़िर कैसे यह मुमकिन हो पाया? तो इसका ज़वाब सम्भवत: यह है कि ये आदिवासी पूरी तरह सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रकृति तथा प्राकृतिक वातावरण के साथ तारतम्य बनाकर ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी अब तक रहते आए हैं। सदियों से चल रहे मानवी-विकास की प्रक्रिया से ये पूरी तरह अछूते रहे हैं। अब भी इन्होंने ‘मानव’ और मानवी-विकास से दूरी बना रखी है।
यहाँ तक कि ये हमारे-आपके जैसे ‘विकसित मानव’ को अपना दुश्मन मानते हैं। उन्हें देखते ही अपने जानलेवा तीरों से उनकी हत्या कर देते हैं। और उनके ऐसा करने के पीछे कारण भी पुख़्ता है। कहा जाता है कि इन आदिवासी में सर्दी-जुकाम, खाँसी-बुखार, निमोनिया-मलेरिया, पोलियो-पीलिया, जैसी किसी भी आधुनिक बीमारी से लड़ने की जरूरी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अब तक विकसित हुई है। इसलिए अगर कोई हमारे-आपके जैसा ‘मानव’ ग़लती से भी इनके नज़दीक पहुँच जाए और छींक दे, तो ये आदिवासी बीमार पड़ कर जान से हाथ धो बैठते हैं।
दस्तावेज़ बताते हैं कि साल 1880 में ऐसी घटना हुई थी। तब एक अंग्रेज नौसेना अफ़सर ने ज़बर्दस्ती इन आदिवासियों के इलाक़े में घुसपैठ की। वह ताक़त के जोर पर बुज़ुर्ग दम्पति और चार बच्चों को उठा लाया, लेकिन ‘मानवों’ के सम्पर्क में आते ही सभी आदिवासी बीमार पड़ गए। बुज़ुर्ग दम्पति का तो तुरन्त निधन हो गया। जबकि बच्चों को वापस द्वीप पर छोड़ दिया गया, मगर वे भी शायद बच नहीं पाए। इस घटना के आगे-पीछे कई बार ऐसी घटनाएँ भी दस्तावेज़ में दर्ज़ हैं कि जब भी किसी सर्वेक्षण दल या ‘बाहरी व्यक्ति’ ने इनके नज़दीक जाने की कोशिश की तो इन आदिवासियों ने उन पर तीर चलाए। यहाँ तक कि कई बार तो आदिवासियों ने ‘बाहरी’ की जान भी ले ली।
इसके बाद सरकार ने 1956 में इन आदिवासियों को संरक्षित रखने के लिए एक कानून बना दिया। इसके तहत प्रावधान कर दिया कि कोई ‘बाहरी मानव’ इन आदिवासियों के पास भी जाने की कोशिश नहीं करेगा। अन्यथा उसे ग़िरफ़्तार कर कानूनन सज़ा दी जाएगी। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ‘बाहरी सरकार’ को यह समझ आ गया कि ये आदिवासी ख़ुद को सिर्फ़ प्रकृति से शासित रखना चाहते हैं। उससे ही रिश्ता रखना चाहते हैं। अपने शासन-प्रशासन, रिश्तेदारी में किसी और की दख़लन्दाज़ी उन्हें पसन्द नहीं है। अलबत्ता दख़लन्दाज़ी होती रही फिर भी।
उदाहरण के लिए साल 2006 में दो मछुआरे ग़लती से सेन्टिनल आदिवासियों की रिहाइश के नज़दीक पहुँच गए। दोनों मार दिए गए। साल 2018 में जॉन एलन चाऊ नाम का एक अमेरिकी वहाँ पहुँच गया। उसे ईसाइयत का प्रसार-विस्तार करना था। आदिवासियों ने उसके जीवन के विस्तार को विराम दे दिया, मार दिया। मगर, दु:साहसियों को ऐसी घटनाओं से क्या ही फ़र्क पड़ता है। सो, इसी क्रम में अभी 31 मार्च को एक और अमेरिकी ने इन आदिवासियों के इलाक़े में घुसने की कोशिश की। उसे सफलता तो नहीं, लेकिन जेल की सलाख़ें ज़रूर मिल गईं हैं।
सेन्टिनल आदिवासियों के क्षेत्र में घुसने की कोशिश करने वाले अमेरिकी का नाम मिखाइलो विक्टोरोविच पोल्याकोव बताया जाता है। वह यूक्रेनी मूल का है और पेशे से यू-ट्यूबर। यानि यू-ट्यूब पर वीडियो बनाकर कमाई करता है। इसी चक्कर में उसने पिछले साल अक्टूबर, फिर इस साल जनवरी में दो बार सेन्टिनल आदिवासियों तक पहुंचने की कोशिश की, पर असफल रहा। मार्च में फिर प्रयास किया और उनके द्वीप के किनारे तक पहुँच गया। समुद्र तट पर एकाध घन्टा रहा। वीडियो बनाया। सीटियाँ बजाईं। लेकिन किसी से उसका सम्पर्क नहीं हुआ।
तब वहीं तट पर कुछ नारियल वगैरह और खाने-पीने की चीज़ें छोड़कर वापस आ गया। लौटते में उसे स्थानीय मछुआरों ने देख लिया और पुलिस को सूचना दे दी। अब वह जेल में है। अभी इस अप्रैल की 17 तारीख़ को ही न्यायिक हिरासत की अवधि पूरी होने के बाद उसे अदालत में पेश किया जाएगा। इसके बाद उसका आगे का हिसाब-क़िताब तय होगा। यद्यपि इतना तो तय हो चुका है कि आधुनिक-विकास की तुलना में प्रकृति के साथ तारतम्य बनाकर रहने वाली सभ्यता की उम्र हमेशा ज़्यादा होती है। ‘आदिम सेन्टिनल सभ्यता’ की तरह।