नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
दुनिया में तो होंगे ही, अलबत्ता हिन्दुस्तान में ज़रूर से हैं…‘जानवरख़ोर’ बुलन्द हैं। ‘जानवरख़ोर’ यानि जानवरों को खाने वाले। इसकी एक मिसाल अभी अधिक पुरानी नहीं हुई है, मध्य प्रदेश के बान्धवगढ़ की। वहाँ 10 हाथियों को ‘मार दिया गया’। यह घटना बीते अक्टूबर 30-31 तारीख़ की है। अब तक देश और प्रदेश की चार बड़ी प्रयोगशालाओं में इसकी की जाँच हुई है। इनमें से तीन प्रयोगशालाओं रिपोर्ट आ चुकी है। इनमें स्पष्ट कहा गया है कि खेतों में खड़ी जिस कोदों (मोटा अनाज) की फसल को खाकर 13 हाथियों के झुंड में से 10 हाथी मारे गए, उसमें ‘ज़हर’ था।
इन रिपोर्ताज़ पर टिप्पणी करते हुए मध्य प्रदेश सरकार, वन विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, “ज़हर प्राकृतिक है या कृत्रिम (यानि किसी ने जानबूझकर फसल में मिलाया है) इसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है। जल्दी ही पुष्टि हो जाएगी।” पर उन्होंने यह संकेत क़तई नहीं दिया कि इस घटना की किसी पर ज़िम्मेदारी तय की जाएगी या नहीं। किसी पर कार्रवाई होगी या नहीं। वैसे, कार्रवाई की औपचारिकता हुई है। बान्धवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के दो शीर्ष अधिकारियों को निलम्बित किया गया है, बस।” और अभी कम से कम यही लगता है कि कहानी महज़ इतने पर ख़त्म हो जाने वाली है। आगे कोई कार्रवाई नहीं, किसी को सज़ा नहीं। ‘ज़हर’ सम्भवत: प्राकृतिक बता दिया जाएगा और मामला बन्द।
अलबत्ता, जिन दो शीर्ष अधिकारियों को निलम्बित किया गया उनमें एक हैं- गौरव चौधरी। भारतीय वन सेवा के अफसर हैं। जिस समय हाथियों की मौत हुई, ये छुट्टी पर थे। हादसे के बाद भी नहीं आए। बान्धवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के मुखिया होने के बावजूद ये छुट्टी से नहीं लौटे। फोन बन्द कर के कहीं बैठे रहे! क्यों? यह कोई नहीं जानता। लेकिन क्या इनका यह रवैया संदिग्ध नहीं लगता? फिर इनके ठीक नीचे कार्यरत दूसरे अधिकारी फतेह सिंह निनामा। ये भी निलम्बित किए गए। और जब कार्रवाई हुई तो दलील देने लगे कि इन्हें ईमानदारी से काम करने का सिला मिला है।
अब इनकी ईमानदारी देखिए। जिस वक़्त हाथी ‘ज़हरीली फसल’ खाने के बाद तड़प रहे थे, बान्धवगढ़ का जिम्मा इन्हीं के पास था। लेकिन ये अपनी पूरी ‘कथित ईमानदारी’ के बावज़ूद हाथियों को बचाने की कोई क़ोशिश भी नहीं कर पाए। इतना ही नहीं, निनामा बीते कई सालों से इसी राष्ट्रीय उद्यान में पदस्थ हैं। इस दौरान कई मौक़े ऐसे भी आए, जब इनसे ऊपर कोई अधिकारी नहीं रहा। यही प्रभारी रहे। इस अवधि में बान्धवगढ़ में अन्य जंगली जानवरों की तो छोड़िए, बाघ भी नहीं बच पाए। अभी अगस्त के महीने में सामने आया था कि बान्धवगढ़ में बीते तीन साल में 34 के क़रीब बाघ मारे गए हैं। इस मामले में वन-क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों की गतिविधियों पर सन्देह है। लेकिन निनामा और उनके जैसे अन्य ‘ईमानदारों’ ने अब तक किसी पर भी ‘पूरी ईमानदारी से’ कोई कार्रवाई नहीं की।
जबकि बाघ हमारे देश का संरक्षित जीव है। इसके शिकार के लिए अन्तर्राष्ट्रीय गिरोह सक्रिय रहते हैं। इसके अंगों का भी करोड़ों का ग़ैरकानूनी व्यापार होता है। इसके बाद भी बाघों की मौत के मामलों की विस्तृत जाँच करने-कराने और ज़िम्मेदारों की ज़िम्मेदारी तय करने में हमेशा किसी न किसी की ‘ईमानदारी’ आड़े आ आती है। इसीलिए तो हाथियों की मौत के मामले भी किसी पर समुचित कार्रवाई होगी, इसे लेकर शुरू में ही सन्देह ज़ताया गया है।
बहरहाल, हाथियों की छोड़िए थोड़ी देर के लिए, बाघों की बात चली तो उन्हीं की करते हैं। एक ताज़ातरीन सूचना आई है। इस बार राजस्थान के रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान से। बताते हैंं कि वहाँ से अभी सालभर के भीतर 25 बाघ ग़ायब हो गए हैं। हालाँकि वन अधिकारियों का कहना है कि इनमें से 10 को ढूँढ लिया गया है। वन क्षेत्र के भीतर ही इनकी मौज़ूदगी के निशान मिले हैं। लेकिन बाकी 15 कहाँ हैं, किसी को पता नहीं। मर गए या मार दिए गए, कौन जाने? जाँच वहाँ भी चल रही है। जाँच का क्या है, चलती ही रहती है। यह भी चलती ही रहेगी, देखते हैं क्या होता है!!
लेकिन एक बात ज़ेहन में अच्छे से बिठा लीजिएगा। ये जो हम बार-बार ‘जानवरख़ोर’ और ‘जानवरख़ोरी’ की बात कर रहे हैं न, यह सिर्फ़ जानवरों को मारने और खाने तक सीमित नहीं है। वे तमाम लोग जो जानवरों को मरने देते हैं। उन्हें मार दिए जाते हुए देखते रहते हैं या उनकी हत्या अथवा हत्या की क़ोशिशों को अनदेखा करते हैं, उस ओर लापरवाही बरतते हैं, सब ‘जानवरख़ोर’ हैं। और उनका ऐसा कृत्य ‘जानवरख़ोरी’। भले किसी को बुरा लगे तो लगे।