टीम डायरी
शीर्षक पढ़कर चौंक सकते हैं, क्योंकि हाथी तो शाकाहारी होते हैं। माँसाहार में उनकी रुचि नहीं। यह उनका भोजन नहीं। और इंसान के तो वे मित्र होते हैं। फिर वे भला ‘आदमख़ोर’ कैसे हो सकते हैं? ठीक प्रश्न है, वे ‘आदमख़ोर’ नहीं हो सकते। माँस नहीं खा सकते। लेकिन क्रोध में भरकर, सीने में बदले की आग लिए अगर वे ‘आदम’ को, इंसान को चुन-चुनकर जान से मारने लग जाएँ तो उन्हें क्या कहेंगे भला?
मध्य प्रदेश के बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में कुछ-कुछ यही हो रहा है। वहाँ कुछ हाथियों के सीने में बदले की आग धधक रही है। वे क्रोध में भरकर किसी ‘आदमख़ोर’ की तरह इंसानों को चुन-चुनकर जान से मार रहे हैं। और उन्हें इस हिंसक व्यवहार के लिए मज़बूर किया है, ‘जानवरख़ोर इंसान’ ने। हाँ, क्योंकि इंसान तो ‘जानवरख़ोर’ होता ही है। उसकी खान-पान में सदियों से अब तक तमाम जानवर शामिल रहे हैं।
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जानवर कोई ‘आदमख़ोर’ नहीं होता साहब, आदम ही ‘जानवरख़ोर’ होता है हमेशा!
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ख़ैर, बाँधवगढ़ का मसला समझिए। वहाँ इस शनिवार, दो नवम्बर को दो-तीन हाथियों ने अल-सुबह उमरिया के ग्रामीण इलाक़ों में घुसकर तीन लोगों पर हमला कर दिया। इनमें से दो- एक वृद्ध और एक युवक की मौक़े पर ही मौत हो गई। एक अन्य युवक घायल हुआ है। ग्रामीणों की मानें तो हमलावर हाथियों में एक नर हाथी वह भी है, जिसके संरक्षित झुंड के 10 हाथी-हथिनियों की अभी हाल ही में मौत हुई है।
एक झटके में 10 हाथी-हथिनियों की मौत! यह घटना ऊपरी तौर पर देखने मात्र से किसी बड़े षड्यंत्र का इशारा करती है। क्योंकि स्थानीय स्तर पर उगाए जाने वाले मोटे अनाज की फसल ‘कोदों’ खाने से इन हाथियों की मौत हुई है। बताया जा रहा है कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग या किसी अन्य कारण से यह फसल ज़हरीली हो गई, इसलिए हाथियों की मौत हुई। अलबत्ता, यही फसल तो दूसरे जानवर भी चरते हैं। लेकिन वे तो नहीं मरते!! ग्रामीणों का यही तर्क है। उन्होंने इसी आधार पर विस्तृत जाँच कराने की माँग कर दी है।
जाँच हो रही है अलबत्ता। मगर अब तक मृत हाथियों के पोस्टमॉर्टम आदि की जो जाँच हुई है, उसके निष्कर्षों में बताया यही जा रहा है कि हाथियों की मौत ज़हरीली कोदो खाने से हुई है। मृत हाथियों के नमूने आगे की जाँच के लिए भी भेजे गए हैं। हालाँकि, वहाँ से भी संकेत यही मिल रहे हैं कि ज़हरीली कोदो खाने से हाथियों की मौत हुई, कुछ यही निष्कर्ष घोषित किया जाएगा। और इस तरह हाथियों की मौत का मामला अभी जो गरम है, वह धीरे-धीरे ठंडा हो जाएगा। इस घटना के पीछे जिसके जो उद्देश्य रहे होंगे, पूरे हो जाएँगे।
पर सवाल रह जाएगा फिर भी, हाथियों को मारने के लिए फसल में ज़हर किसने मिलाया? ‘जानवरख़ोर इंसान’ ने ही न? हाथियों को ‘आदमख़ोर’ जैसे कृत्य करने के लिए मज़बूर किया किसने? ‘जानवरख़ोर इंसान’ ने ही न? याद रखिए, बेहद तेज याददाश्त वाले कहे जाने वाले हाथियों ने उसी स्थल के आस-पास ग्रामीण इलाक़ों में गाँववालों पर हमला किया है, जहाँ उनके साथियों की मौत हुई है! और फिर कर सकते हैं!