Sai Kaustuv Dasgupta

“पहले लोग कहते थे- इससे कुछ नहीं होगा, लेकिन आज ‘भारत का व्हीलचेयर ‘वॉरियर’ कहते हैं”

नीलेश द्विवेदी, भोपाल से (हिन्दी अनुवाद)

पढ़िएगा और सोचिएगा ज़रूर एक बार, जब ज़िन्दगी से हार मान लेने का मन होता हो, तब ख़ास तौर पर… 

“मैं 14 साल का था, जब मेरे हाथों और पैरों की हडि्डयाँ 50 से ज़्यादा बार टूट चुकी थीं। वैसे, इस सिलसिले की शुरुआत तब हुई, जब मैं महज तीन महीने का था। डॉक्टरों ने बताया कि मुझे ‘ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा’ नाम की बीमारी है। इस बीमारी का मतलब ये था कि मेरी हडि्डयाँ काँच की तरह नाज़ुक हो गई थीं। इसका कोई इलाज़ भी नहीं है। यह सुनकर मेरे माता-पिता बुरी तरह टूट गए थे। 

हम लोग संयुक्त परिवार में रहा करते थे। लेकिन मेरी देख-भाल के लिए मेरे माता-पिता को परिवार से अलग होना पड़ा। लोग अक्सर मेरे बारे में उनसे कहा करते थे कि ये तो बोझ है। लेकिन मेरे माँ-बाबा ने मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं होने दिया। बल्कि वे तो मुझे हमेशा ख़ास महसूस कराया करते थे। और उनके ऐसा करते-करते, मैं सच में, अपने-आप को ख़ास मानने लगा था। मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं कुछ अलग हूँ। जब तक मैं छह साल का नहीं हो गया, तब तक तो बिल्कुल भी नहीं। तभी एक वाक़िआ हुआ।

उस वक़्त मैं स्कूल में अव्वल दर्ज़े से पास हुआ था। सो, मुझे बधाई देने के लिए मेरे एक दोस्त ने मुझसे हाथ मिलाया और उसके ऐसा करते ही मेरी हाथ की हड्‌डी टूट गई। इसी तरह, एक बार डांस क्लास के दौरान अनजाने में एक दोस्त का मुझे धक्का लग गया, तो मेरा पैर टूट गया। इन हादसों के बाद तो मैं हमेशा दोस्तों वग़ैरा से दूर ही रहने लगा। ज़्यादातर समय दूर बैठकर दूसरे बच्चों को खेलते हुए देखा करता था।  

लेकिन वो कहते हैं न, एक दरवाज़ा बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। मेरी माँ संगीत सिखाया करती थाी। तो, उन्होंने मुझे भी संगीत सिखाना शुरू कर दिया। मुझे भी अच्छा लगता था। कुछ समय बाद मैंने प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। उसी दौरान मुझे ‘पश्चिम बंगाल के सर्वश्रेष्ठ बाल-गायक’ का पुरस्कार मिला। तब मुझे पहली बार लगा कि मैं कुछ तो कर लूँगा। लेकिन क़रीब दो साल बाद फिर हादसा हो गया। एक दिन मैं गिर गया और मेरे दोनों पैर टूट गए। मैं अब व्हीलचेयर पर आ चुका था। 

इस हादसे के बाद इलाज़ के लिए मुझे आंध्र प्रदेश जाना पड़ा। लेकिन हडि्डयाँ टूट जाने की वजह से मेरा शरीर बुरी तरह अकड़ सा गया। इससे लगभग छह साल तक मुझे बिस्तर पर ही रहना पड़ा। सब कुछ थम गया था उस वक़्त। तब तो मैं यहाँ तक सोचने लगा था कि आख़िर ऐसी ज़िंदगी जीने का मतलब ही क्या है। मेरी छाती में भी एक गाँठ थी, जो दिनों-दिन कठोर होती जा रही थी। मतलब मैं बस था, लेकिन मेरे होने का कोई मतलब नहीं था। मेरे परिवार वाले मुझे ख़ुश रखने की कोशिशें किया करते थे, लेकिन मैं तो जैसे उम्मीद ही खो चुका था। 

पर कहते हैं न, भगवान एक फ़रिश्ता भेजता है और सब बदल जाता है। एक दिन मेरा एक दोस्त मुझे देखने आया। उसने मुझे ग्राफिक डिज़ाइनिंग सीखने के लिए कहा। उसकी बात सुनकर पहले तो मैं बुरी तरह घबरा गया कि आख़िर ये कैसे होगा? लेकिन मुझे आगे तो बढ़ना ही था, फिर भी। तो मैंने वीडियो देखना शुरू किए। किताबें पढ़ीं। अपने आप को ख़ुद ही सिखाया, पढ़ाया और जब मुझे लगा कि हाँ मैं कुछ कर सकता हूँ, तो मैंने फ्री-लांसिंग शुरू कर दी। यानी अपना ख़ुद का काम। मैं अब ख़ुद के पैसे कमा रहा था। 

इससे धीरे-धीरे हालात सुधरने लगे। मैं अपने आप को आज़ाद महसूस करने लगा। अब एक नया ज़ुनून था। इसके बाद लोग मुझे फोन करने लगे। मुझसे मेरी ज़िंदगी के बारे में पूछने लगे। और इस तरह मैं एक ‘मोटिवेशनल स्पीकर’ भी बन गया यहाँ तक कि फुल-टाइम जॉब भी मिल गया मुझे। तब से अब तक आठ साल हो चुके हैं। मैं आज 32 साल का हो चुका हूँ और सफ़र जारी है। 

पहले अक्सर लोग कहते थे- इससे कुछ नहीं होगा। लेकिन आज वही लोग मुझे ‘भारत का व्हीलचेयर वॉरियर’ कहते हैं। मैं आज एक ‘मोटिवेशनल स्पीकर हूँ। ग्राफिक डिज़ाइनर हूँ। यहाँ तक कि कुछ सालों पहले एक किताब भी लिख चुका हूँ। आज मुझे किसी की सुहानुभूति या दया की ज़रूरत नहीं। बल्कि मैं बस, लोगों को इतना ही बताना चाहता हूँ कि जब व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे मैं इतना सब कर सकता हूँ, तो वे क्यों नहीं कर सकते। जबकि मेरी सीमाएँ हैं?   

“By 14, I had fractured my hands & legs 50+ times. I was 3 months old when it 1st happened. The doctor said, ‘He’s suffering from osteogenesis imperfecta.’ It means my bones are brittle like glass & it’s incurable. My parents were devastated. We lived in a joint family. To take care of me, we separated. People would say, ‘He’s a burden,’ but Maa & Baba made me feel special.

And I really did believe that. I never thought I was ‘different’ until I turned 6—I came 1st in school & when my best friend held my hand to congratulate me…it broke. And once during a dance class, a friend unknowingly pushed me & I broke my leg. After that, I’d just sit in the side & watch other kids.

But while this door shut, another opened. Maa used to teach music. She began training me; I loved it! I took part in competitions & was even given the ‘Best child singer in West Bengal’ award. I thought, ‘Kuch toh kar lunga.’

But 2 years later, 1 day, I fell & broke my legs. I was confined to a wheelchair.

We moved to Andhra for my treatment. But due to my fractures, my body became stiff & for 6 years, I was on bedrest. Everything stopped. I thought, ‘What’s the point of this life?’ There was a knot in my chest which got tighter everyday. It hurt to just exist. My family did their best to cheer me up but I’d hit rock bottom.

Par kehte hai na, bhagwaan ek farishta bhejta hai aur sab badal jaata hai…one day when a friend of mine visited, he spoke to me about learning graphic designing. I was terrified but I had something to look forward to. I watched videos, read books & taught myself. I then started freelancing. Khud ke paise kama raha tha! Slowly, things improved. I felt…free!

Ab ek naya junoon tha—after this, people began calling me to talk about my life & I became a motivational speaker! I even found a full time job.

It’s been 8 years since; I’m 32 today.

Everyone always assumed ‘Isse kuch nai hoga.’ But today, I’m called the ‘wheelchair warrior’ of India—I’m a motivational speaker, graphic designer, & a few years back, I even wrote a book! And I don’t want any pity or sympathy, I just want people to know that I can do everything they can, being confined to a wheelchair doesn’t limit me.”

Originally Written by : Stuti Shukla 
———- 
(ये लेख मूलत: अंग्रेजी में लिंक्ड-इन पर ‘ह्यूमंस ऑफ़ बॉम्बे’ की स्तुति शुक्ला ने लिखा है। इसे श्री साई कौस्तुव दासगुप्ता की इज़ाजत से #अपनीडिजिटलडायरी पर हिन्दी अनुवाद के साथ लिया गया है। साथ में मूल लेख भी है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *