देश जब आज़ाद हुआ, तब कितने प्रतिशत आबादी अशिक्षित थी?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 22/10/2021

कर्ज़न के सुधारों से पहले विश्वविद्यालयों की प्रबंध समितियों (सीनेट) में अधिकांश निजी और आधिकारिक रसूख वाले लोग होते थे। ये समिति भारी-भरकम भी थीं। जैसे- कलकत्ता में विश्वविद्यालयों की प्रबंध समिति में 180 सदस्य थे। वहीं बंबई की समिति में 310 सदस्य। इन समितियों के सदस्यों का अकादमिक स्तर भी संदिग्ध था। बंबई में विश्वविद्यालय के कई अध्येता (फैलो) अपने नाम के दस्तख़त करना तक नहीं जानते थे। सबसे गंभीर शिकायत ये थी कि विश्वविद्यालय शिक्षण संस्थान नहीं हैं। वहाँ संबद्ध महाविद्यालयों के विद्यार्थी सिर्फ़ परीक्षा देने बैठते थे। इन विद्यार्थियों का भी स्तर कैसा था, इसका एक उदाहरण मद्रास के रिकॉर्ड में मिलता है। उसके मुताबिक हर साल विश्वविद्यालय स्तर तक पहुँचने वाले पाँच में से चार विद्यार्थी प्रवेश परीक्षा तक पास नहीं कर पाते थे। 

इसीलिए कर्ज़न को विश्वविद्यालय अधिनियम की जरूरत महसूस हुई। उनके मुताबिक, “अधिनियम का उद्देश्य यह है कि विश्वविद्यालय और उनसे संबद्ध महाविद्यालय रट्‌टामार शिक्षण केंद्रों के तौर पर स्थापित न हो जाएँ। वहाँ बेहतर शिक्षकों द्वारा उच्च स्तर की शिक्षा दी जाए। गहन निरीक्षण का बंदोबस्त हो। व्यवस्था सक्षम, कुशल, उत्साही लोगों के हाथों में सौंपी जा सके। प्रबंध समितियों का पुनर्गठन किया जा सके। उनके अधिकारों को परिभाषित और नियमित किया जाए।…इससे हमारे विश्वविद्यालय शिक्षण संस्थानों के तौर पर तब्दील हो सकेंगे, जो अभी महज़ परीक्षा केंद्र जैसे बने हुए हैं।” 

कर्ज़न के इन सुधारों ने भारतीय विश्वविद्यालयों को शिक्षण संस्थानों के तौर पर तब्दील किए जाने की राह तैयार की भी। उनके सुधारों से विज्ञान को अलग विषय की तरह पढ़ाने और उसकी अलग शैक्षिक उपाधि (डिग्री) देने का सिलसिला भी शुरू हुआ। हालाँकि भारत में विज्ञान विषय की तरफ झुकाव शुरू में धीमा रहा। उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक 20वीं सदी के पहले दशक में 85 फीसदी भारतीय विद्यार्थियों ने कला संकाय से पढ़ाई की। जबकि नौ प्रतिशत ने औषधि विज्ञान, चार फ़ीसद ने अभियांत्रिकी और महज दो फीसदी ने विज्ञान की शैक्षिक उपाधि ली। शिक्षकों के प्रशिक्षण से भी अपेक्षित नतीजे नहीं निकले। अब भी प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरी तादाद पूरी नहीं हो रही थी। इसके उलट महाविद्यालयों में पढ़ने वालों की संख्या संख्या 1907 में जहाँ 17,356 थी, वहीं 1917 में 61,200 हो गई। उच्चतर-माध्यमिक विद्यालयों में भी विद्यार्थियों की संख्या 4,73,000 से बढ़कर 11,07,000 हो गई थी। 

हालाँकि रोजगार के अवसर भी बढ़े थे लेकिन साथ में उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी। नतीज़ा ये हुआ कि जिस तेजी से विद्यार्थी बढ़े, उसी रफ़्तार से बेरोज़गारी भी। नौकरी की अपेक्षा हर विद्यार्थी को थी लेकिन वह कुछ को ही मिल रही थी। कारण कि शिक्षा (कला संकाय आदि) उपलब्ध नौकरियों के अनुरूप नहीं थी। सरकार को इसकी जानकारी थी। इसलिए उसने विद्यार्थियों को तकनीकी शिक्षण की तरफ़ ले जाने की कोशिश की। लेकिन उसके प्रयास सफल नहीं हुए क्योंकि इन संस्थानों को विश्वविद्यालयों की तरह सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं थी। वैसे, तकनीकी शिक्षण के लिए स्वायत्त विद्यालय भी स्थापित किए गए लेकिन वे अपर्याप्त थे। 

इसके बाद सन् 1921 में मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के जरिए शिक्षा का जिम्मा चुनी हुई प्रांतीय सरकारों को सौंप दिया गया। इसी दौरान विश्व युद्ध, उसके बाद दुनिया में छाई आर्थिक मंदी और साथ ही देश में जारी स्वतंत्रता आंदोलन से राजनैतिक अव्यवस्था पैदा हुई। आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने सरकारी शिक्षण संस्थानों के बहिष्कार का आह्वान किया था। इसका असर भी हुआ। बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षण संस्थानों से नाम कटाकर ‘राष्ट्रीय’ शिक्षण संस्थानों में दाख़िला लिया। अध्ययन-अध्यापन की भाषा वहां हिंदी थी और व्यवस्थाएँ बेहद ख़राब। इसका नतीज़ा ये हुआ कि दो-तीन साल बाद विद्यार्थी वापस पहले वाले शिक्षण संस्थानों की तरफ़ लौटने लगे। फिर 1924 के शुरू में अंतर-विश्वविद्यालय मंडल का गठन किया गया। इसको अकादमिक योग्यता के मानक तय करना था। साथ ही विश्वविद्यालयों के बीच विभिन्न कार्यों का समन्वय भी करना था। लेकिन ज्यादा कुछ हुआ नहीं। 

फिर 1935 में भारत सरकार ने केंद्रीय शिक्षा सलाहकार मंडल (सीएबीई) की स्थापना की। इसका प्राथमिक उद्देश्य एक एकीकृत शिक्षा नीति बनाना था। ऐसी नीति जो शिक्षा के सभी स्तरों को अपने दायरे में समेटती हो। साथ ही पढ़े-लिखे लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने के लिहाज़ से भी मायने रखती हो। अपेक्षा के अनुरूप मंडल ने काफी जाँच-पड़ताल, शोध आदि किया। इसके बाद 1937 में अपनी रपट दी। लेकिन उसकी सिफारिशों के मुताबिक सामान्य के साथ व्यावसायिक शिक्षा को मिला देने से सब गड्‌डमड्‌ड हो गया। शिक्षण की दोनों धाराओं पर इस प्रयोग के दुष्परिणाम दिखने लगे। 

अंग्रेजी शासन के आख़िरी वर्षों में भी भारत में शैक्षिक सुविधाओं का विस्तार ही जारी रहा। उच्च शिक्षा देने वाले महाविद्यालयों की संख्या 1940-41 में 425 थी, जो 1945-46 में बढ़कर 593 हो गई। लेकिन सामान्य शिक्षा फिर भी पिछड़ी स्थिति में थी। पैसे की कमी उसकी राह में रोड़ा थी। साल 1936 के एक आकलन के मुताबिक भारत के 5.30 करोड़ बच्चों को अनिवार्य शिक्षा का इंतज़ाम करने के लिए सरकार को मौज़ूदा बजट से पाँच-छह गुना अधिक राशि की ज़रूरत थी। उतना सरकार के वश में नहीं था। इस तरह वित्त का संकट तो था ही 19वीं, 20वीं सदी तक अंग्रेज भ्रम के शिकार भी थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है। इसका नतीज़ा ये हुआ कि अगर शिक्षा का प्राथमिक कार्य साक्षरता बढ़ाने को मानें तो भारत में ब्रिटिश शासन के अंत तक यह काम न के बराबर ही हुआ था। जब 1947 में देश आज़ाद हुआ, उस समय तक 90 फ़ीसदी आबादी लिखना-पढ़ना नहीं जानती थी। 

हालाँकि भारत के मध्य वर्ग पर अंग्रेजी शिक्षा का जो असर देखा गया, वह अलग था। सरकार के नियंत्रण वाले अंग्रेजी शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेद नहीं था। इससे ब्राह्मण जाति का बौद्धिक वर्चस्व टूटा। वकील, चिकित्सक, अभियंताओं, आदि की नई पेशेवर श्रेणियाँ तैयार हुईं, जिन्हें जाति-वर्ण से कोई लेना-देना नहीं था। इन श्रेणियों के लोग पश्चिमी शैली के राजनैतिक सुधारों के समर्थक थे। अंग्रेजी शिक्षा ने व्यावसायिक गतिशीलता पैदा की। उससे स्थापित सामाजिक परंपराओं की जड़ता भी टूटी। इस शिक्षा ने राष्ट्रवाद पैदा तो नहीं किया लेकिन उसको हवा देने में यह मददगार जरूर बनी।
(जारी…..)
अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
62. लॉर्ड कर्जन को कुछ भारतीयों ने ‘उच्च शिक्षा के सर्वनाश का लेखक’ क्यों कहा?
61. आईसीएस में पहली बार कितने भारतीयों का चयन हुआ था और कब?
60. वायसराय जॉन लॉरेंस को ‘हमारा सबसे बड़ा शत्रु’ किस अंग्रेज ने कहा था?
59. कारखानों में काम करने की न्यूनतम उम्र अंग्रेजों ने पहली बार कितनी तय की थी?
58. प्लास्टिक उत्पादों से भारतीयों का परिचय बड़े पैमाने पर कब हुआ?
57. भारत में औद्योगिक विस्तार का अगुवा किस भारतीय को माना जाता है?
56. क्या हम जानते हैं, भारत में सहकारिता का प्रयोग कब से शुरू हुआ?
55. भारत में कृषि विभाग की स्थापना कब हुई?
54. अंग्रेजों ने पहली बार लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र कितनी तय की थी?
53. ब्रिटिश भारत में कानून संहिता बनाने की प्रक्रिया पहली बार कब पूरी हुई?
52. आज़ादी के बाद पाकिस्तान की पहली राजधानी कौन सी थी?
51. आजादी के आंदोलन में 1857 की क्रांति से ज्यादा निर्णायक घटना कौन सी थी?
50. चुनाव में मुस्लिमों को अलग प्रतिनिधित्व देने के पीछे अंग्रेजों का छिपा मक़सद क्या था?
49. भारत में सांकेतिक चुनाव प्रणाली की शुरुआत कब से हुई?
48. भारत ब्रिटिश हुक़ूमत की महराब में कीमती रत्न जैसा है, ये कौन मानता था?
47. ब्रिटेन के किस प्रधानमंत्री को ‘ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने वाला’ माना गया?
46. भारत की केंद्रीय विधायी परिषद में सबसे पहले कौन से तीन भारतीय नियुक्त हुए?
45. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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