टीम डायरी, 25/7/2022
बहुत समय पहले की बात है। किसी गाँव में एक किसान रहता था। वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता। इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता। उन्हें वह डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था। दूसरा एक-दम सही था। इस वज़ह से रोज़ घर पहुँचते-पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।
ऐसा दो साल से चल रहा था। सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वह पूरा का पूरा पानी घर पहुँचाता है। उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिन्दा था कि वह आधा पानी ही घर तक पहुँचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है।
फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा। एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा, “मैं ख़ुद पर शर्मिन्दा हूँ। आपसे क्षमा माँगना चाहता हूँ?”
“क्यों?”, किसान ने पूछा, “तुम किस बात से शर्मिन्दा हो?”
“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ। पिछले दो साल से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस, उसका आधा ही पहुँचा पाया हूँ। मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है। इस वज़ह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है”, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा।
किसान को घड़े की बात सुनकर थोड़ा दुःख हुआ। फिर वह बोला , “कोई बात नहीं। मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो।”
फूटे घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया। ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई। लेकिन घर पहुँचते–पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था। वह मायूस हो गया और किसान से क्षमा माँगने लगा।
किसान बोला, “शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे, वे बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था। मैंने उसका लाभ उठाया। मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे। तुम रोज़ थोड़ा-थोड़ा कर के उन्हें सींचते रहे। और पूरे रास्ते को इतना ख़ूबसूरत बना दिया।
किसान ने आगे कहा, “आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ। अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ। तुम्हीं सोचो अगर तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते, तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ?”
यह सुनकर उस फूटे घड़े के मन से अपराध-बोध जाता रहा। ज़ाहिर है, उसकी उदासी भी दूर हो गई।
बस, यही इस कहानी का मर्म है। कमियाँ हम सभी के अन्दर होती हैं। मायने ये रखता है कि उन्हें हम ख़ुद कैसे देखते और इस्तेमाल किस तरह करते हैं। उन्हें हमारे गुरु, हमारे संरक्षक, हमारे मार्गदर्शक किस तरह से देखते और इस्तेमाल करते हैं। बस, वही तरीका हमारा मूल्य तय करता है। हमें सफल, असफल, उपयोगी, अनुपयोगी बनाता है।