निकेश जैन, इंदौर मध्य प्रदेश
मैं बेंगलुरू में रहता हूँ और मेरे स्नानघर में अब भी पर्याप्त पानी है।
तो क्या बेंगलुरू में पानी के संकट से जुड़ी ख़बरें झूठी हैं? नहीं। वाक़ई बेंगलुरू शहर इस समस्या से जूझ रहा है। कई आवासीय सोसायटी और इमारतें पानी के संकट का सामना कर रही हैं। कारण कि शहर के अधिकांश बोरवेल सूख गए हैं।
तो सवाल है कि बेंगलुरू इस संकट तक कैसे पहुँचा? क्या ये प्रकृति से मिली समस्या है या फिर मानव निर्मित?
वैसे, बेंगलुरू में साल के छह महीने तक बारिश होती है!! मई के आस-पास से बारिश शुरू होती है और नवम्बर या कभी तो दिसम्बर तक होती रहती है। मतलब प्रकृति से पर्याप्त पानी मिल रहा है।
यानि समस्या ये है कि हम बारिश के पानी का संचय नहीं करते। ज़मीन के भीतर बारिश के पानी को ठहरने नहीं देते। बेंगलुरू में अक्सर बारिश तेज ही होती है। मतलब कि अगर इस पानी को रोकने का समुचित इंतिज़ाम न किया जाए, तो यह उतनी ही तेजी से नालियों से होकर किसी नदी में चला जाता है।
अब दूसरा तथ्य देखिए। बेंगलुरू देश के उन शहरों में शुमार होता है जहाँ सबसे अधिक संख्या में झीलें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से अधिकांश झीलों को ज़मीनों-मकानों का धंधा करने वाले कारोबारियों ने बिना सोचे-समझे किए गए निर्माण कार्यों के माध्यम से ख़त्म कर दिया है।
कुछ झीलें जो बची हैं, वे भी ख़त्म होने की कग़ार पर हैं क्योंकि उनमें पर्याप्त जलभराव नहीं हो रहा है। उन तक पानी पहुँचाने के लिए जो नाले, नालियाँ, आदि बनाए गए, वे सब एक-एक कर अवरुद्ध हो रहे हैं। और यह काम भी बिना सोचे-समझे किए गए निर्माण कार्यों के जरिए हुआ है।
तो अब अगला सवाल कि क्या इस संकट का कोई समाधान अब भी है?
हाँ है। मेरी आवासीय सोसायटी भी आज से 10 साल पहले भीषण जल-संकट का सामना कर रही थी। हम लोगों को गर्मियों के दिनों में रोज ही टैंकरों से पानी मँगवाना पड़ता था। इस संकट से निज़ात पाने के लिए, उसी दौरान हम लोगों ने वर्षा जल के संचय और संरक्षण का फ़ैसला किया। पूरी सोसायटी में जगह-जगह हमने बड़े-बड़े सोख्ता गड्ढे बनाए और इस तरह का बन्दोबस्त किया कि बारिश का पूरा पानी उन गड्ढों में समा जाए। इससे कुछ ही समय में हमारी सोसायटी और उसके आस-पास की ज़मीन के नीचे का जल-स्तर बढ़ गया और हमारे बोरवेल भी अच्छे ख़ासे भर गए। इस सफल अनुभव को हमने अपने आस-पड़ोस की अन्य सोसायटी वालों से भी साझा किया। तो फिर वहाँ भी वर्षा जल के संचय और संरक्षण की वैसी ही व्यवस्था की गई।
नतीज़ा? बीते 10 सालों में हमें और जिन लोगों ने हमारे अनुभव का लाभ उठाया उन्हें भी, बाहर से पानी का एक टैंकर भी नहीं मँगवाना पड़ा। उम्मीद है कि इस साल भी नहीं मँगवाना पड़ेगा।
तो इस तरह हमारे अनुभव से निकला सन्देश पूरे बेंगलुरू के लिए एकदम स्पष्ट है, “सूखे वाले दिनों के लिए बारिश के पानी को संचित और संरक्षित कीजिए।”
अलबत्ता, बेंगलुरू के जल-संकट का एक और अहम पहलू है- जल माफ़िया। उसके बारे में मैं बात करूँगा, अपने अगले लेख में।
तब तक वर्षा जल संरक्षण के बेहद महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर विचार कीजिए। क्योंकि ये संकट और यह समाधान सिर्फ़ बेंगलुरू तक सीमित नहीं रह सकता!
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निकेश का मूल लेख :
I live in Bangalore and my toilet still has water.
So the water crisis in Bangalore is a fake news? No! It’s a real problem and there are many apartment complexes and housing societies that are struggling to get water because their borewells have gone dry.
How did Bangalore reach here? Is it a nature problem or artificial man made problem?
Bangalore is a city which gets rains for 6 months in a year!! It starts sometime in May and goes till November (sometimes till December). Which means we get enough of rain water.
The problem is we don’t harvest it. We don’t let water go back to the ground. Bangalore rains are mostly heavy. (No concept of drizzle here). In such cases if water is not stopped, it would just flow through the drains and end up in some river.
The another fact – Bangalore perhaps has highest numbers of lakes in India. But unfortunately a majority of them are k*lled by developers due to mindless constructions.
The ones that are still alive don’t get fully recharged (filled) because storm water channels leading to lakes are blocked again due to mindless construction.
Is there any solution?
Yes, my housing society was facing severe water issues 10 years ago and we would get water from tankers in the summer. We decided to implement rain water harvesting. Built multiple huge water sumps and let all the rain water go to those huge chambers. Water would seep into the ground and it would recharge our borewells.
We also encouraged nearby housing societies to implement rain water harvesting.
The result – we haven’t bought a single water tanker in last 10 years and hopefully this year will also go like that.
There is more to Bangalore water crisis (like water mafia) which is a subject for another post.
Like they say “save for rainy days” message for Bangalore is: “save rains for dry days!”
Thoughts?
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(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने यह लेख लिंक्डइन पर लिखा है।)
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