बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
बीजापुर के आदिलशाह ने कुछ ही समय में शहाजी राजे की स्वतंत्र रूप से राज करने की कोशिश नाकाम कर दी। रायाराव नामक सरदार को उसने दल-बल के साथ पुणे भेज दिया। रायाराव ने पुणे गाँव तथा पुणे परगना को जलाकर रख दिया। मार-काट मचाकर उसे तबाह कर दिया। पुणे को मटियामेट कर उस ध्वस्त गाँव पर उसने गधे का हल चलवाया। गाँव के परकोटे उखाड़ डाले।
आदिलशाही सेना हाथ धोकर शहाजी राजे के पीछे पड़ गई। जिजाऊ साहब अब इस वक्त शहाजी राजे के साथ गाँव-गाँव, जंगल-जंगल पहाड़ियों-घाटियों में भटक रही थीं। लड़ाई और अस्थिर राजनीति के कारण हर पल जान का खतरा था। शहाजी राजे ने महसूस किया कि जिजाऊ साहब को किसी सुरक्षित स्थान पर रखना जरूरी है।
काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने तय किया कि जुन्नर परगने के शिवनेरी किले पर जिजाऊ साहब को रखना ठीक रहेगा। शिवनेरी किला बहुत पुख्ता था। किलेदार शिधोजी विश्वासराव पर शहाजी को पूरा विश्वास था। वे उनके रिश्तेदार भी थे। सो, बड़े एहतियात से राजे पत्नी को शिवनेरी ले आए। उनके साथ वफादार, ममतालु लोग थे। जिजाऊ साहब पर जान छिड़कने वाले ये बुजुर्ग उनके साथ शिवनेरी पर ही रहने लगे।
शिवनेरी गढ़ बहुत प्राचीन था। खूब मजबूत था। सुन्दर भी था। उस पर चारों तरफ से सह्याद्रि की उन्नत चोटियों, हरे जंगलों, जागृत देवी-देवताओं का कड़ा पहरा था। लेण्याद्रि और ओझर में थे विघ्नहर्ता श्री गणेशजी। भीमशंकर, कुकड़ेश्वर, अम्बा, अम्बिका, कालभैरव और किले पर उपस्थित श्रीशिवाई देवी के सान्निध्य से शिवनेरी का वातावरण प्रसन्न था। सह्याद्रि के गहरे दर्रे और ऊँची चोटियों पर से बहने वाली उन्मुक्त हवा शिवनेरी पर अठखेलियाँ करती थी।
जुल्म और सितम से भरी आबो-हवा से बेचैन जिजाऊ को शिवनेरी पर सुकून मिला। उच्च, पावन, भावनाओं में उनका मन खो सा गया। किले की मजबूत चहारदीवारों, मोर्चे के लिए बनाए गए बुर्ज, बड़े-बड़े सात दरवाजे, रहस्य-रोमांच से भरी श्रीशिवाई माता की गुफा, बारूद का विशाल गोदाम, निर्मल, शीतल जल से भरी गंगा-जमुना टंकियाँ, सब किले की सुभगता बढ़ा रहे थे। किले पर तथा उसके इर्द-गिर्द हरे पेड़ों पर वानरों के झुंड कूदते-फाँदते रहते। मोरों की पुकार, पक्षियों की चहचहाहट, रहने के लिए भव्य महल और उत्तर में झिलमिलाती बड़ी सी झील। शिवनेरी आकर जिजाऊ साहब खुश थीं, प्रसन्न थीं।
और फिर फागुन कृष्ण पक्ष की वह अलौकिक तृतीया तिथि। शिवनेरी के किले में गूँजा ‘किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर’। शिवजन्म (शिवाजी का जन्म) की खुशी से नदियाँ, हवा, ग्रह-तारे, सभी खुशी से झूम उठे। किले में मंगलगान के स्वर गूँजने लगे। (पहली कड़ी पढ़ी जा सकती है)
रात के अंधियारे में शिवाजी राजे का जन्म हुआ। क्रान्ति हमेशा अँधेरे से ही अंकुरित होती है। पहले बारह दिन, जिजाऊ के बेटे पर शास्त्रशुद्ध तरीके से जन्म-संस्कार हुए। शिवनेरी गढ़ ने नामकरण संस्कार का भोजन जीम लिया। जन्म शिवनेरी पर हुआ, इसलिए जिजाऊ साहब ने बेटे का नाम रखा शिवाजी। शिवाजी राजे जिजाऊ साहब के छठे पुत्र थे। पहले पाँच पुत्रों में चार नन्हे थे, तभी गुजर गए। एक सम्भाजी राजे ही दीर्घायुषी हुए। इस समय सम्भाजी राजे की उमर सात साल की थी। कुछ ही दिन पहले उनकी शादी भी हुई थी। शादी शिवनेरी पर ही हुई। शिवनेरी के किलेदार शिधोजी राव की बेटी जयन्तीबाई साहब के साथ।
जन्म के तुरन्त बाद, शिवाजी राजे की जन्मपत्री बनाई गई। राशि थी कन्या और लग्न सिंह। पुत्रजन्म का शुभ समाचार शहाजी राजे को परिंड़ा की छावनी में मिला। खुशी से फूले नहीं समाए वह। कुछ ही दिनों में पुत्रमुख देखने के लिए शिवनेरी आए। पिता-पुत्र की पहली मुलाकात थी यह। शहाजी राजे ने पुत्र पर हृदय का सारा प्यार उड़ेला। किले पर खूब दान-धर्म किया। चार दिन शिवनेरी पर नामकरण संस्कार जैसी ही धूम मची। उसके बाद राजे फिर से मोर्चे पर चले गए। शिवाजी राजे शिवनेरी पर ही पलने में झूलते, मचलते रहे।
दक्खन के मोर्चे पर इस बार खुद दिल्ली का बादशाह निकल पड़ा था। इस वक्त वह बुरहानपुर में दाखिल भी हो चुका था। निजामशाही को जड़ से उखाड़ने का इरादा था उसका। अनगिनत सिपाही बुरहानपुर में खेमे डाले बैठे थे। साथ में अपार युद्ध-सामग्री भी थी। मुगलों पर अकबर के जमाने से ही दक्षिण जीत लेने की धुन सवार हो गई थी। हर बादशाह की एक ही चाहत थी कि लंका से लेकर कश्मीर तक का सारा हिन्दुस्तान मुगल सल्तनत के आधिपत्य में आए। वैसे भी, हिन्दुस्तान पर सुल्तानों की ही सत्ता थी। मुगल, आदिलशाह, निजामशाह, कुतुबशाह, सिद्दीशाह। हिन्दुस्तान इन्हीं सब सुल्तानों की सल्तनत था। सभी शासक तुल्यबल थे। लेकिन बाकी सबको खदेड़कर मुगल हिन्दुस्तान में केवल अपना सिक्का जमाना चाहते थे। इन सत्ताओं की जद्दोजहद में मराठों को हक था तो सिर्फ मरने का।
इस समय शिवनेरी पर पलने में झूलते शिवाजी मुटि्ठयाँ भींच रहे थे। सह्याद्रि की कड़ी चट्टानों पर खेल-कूदकर उन नन्हीं मुठियों को वज्र की सामर्थ्यता प्राप्त होने वाली थी। सामर्थ्य प्राप्त होने वाली थी राक्षसी सत्ता से जूझने की। जुल्मी राजसत्ता को झुकाने की। शिवनेरी का शिवा मुगली, आदिलशाही, निजामशाही, कुतुबशाही और सिद्दीशाही को थर्रा देने वाला था। तीन सौ साल की गुलामी की जंजीरों को चकनाचूर करने वाला था।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!
1- शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….
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