शरीर असली पापी नहीं है..पाप तो हमारा मन ही करता है

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 4/11/2022

सेवानिवृत्त न्यायधीश देवाशीष ट्रेन की सीट पर बैठे ही थे कि सामने बैठी युवती ने स्नेहमिश्रित सम्मान से अभिवादन किया। देवाशीष के लिए अनजान युवती का अभिवादन आश्चर्यजनक था। युवती ने पूछा, “अंकल, आप ने पहचाना नहीं?” देवाशीष ने कहा, “बेटी, मुझे याद नहीं कि आप से कब मिला।”

युवती ने कहा, “आप मुझे कैसे पहचानोगे? आप से मैं तब मिली थी, जब मैं दस साल की थी। आप तब सूर्यपुर में जिला फैमिली कोर्ट में जज थे।”

“बेटा, मैं अब तो मुझे सेवानिवृत हुए पाँच साल हो गए। कहाँ सब याद रहता है, ऊपर से इतनी पुरानी बात।”

“अंकल, मैं गुड़िया, उस समय मेरे माता-पिता का आपकी अदालत में तलाक का केस चल रहा है। उस दौरान आप ने मुझसे और मेरे बहन से पूछा था- बेटा, तुम दोनों में किसके साथ रहना चाहोगी?”

देवाशीष को वह दिन पूरी घटना के साथ याद आ गया। क्योंकि देवाशीष के लिए वह निर्णय अपने आप में अभूतपूर्व था। वे अपने पुराने दिनों में जज के रूप में दिए गए निर्णयों में यंत्रवत् कानूनी प्रक्रिया का पालन करते-करते उकता चुके थे। लेकिन गुड़िया के केस में निर्णय अविस्मरणीय था।

केस की सुनवाई के दौरान उनका बच्चों से प्राय: प्रश्न होता था। माता-पिता में से किसके साथ रहना चाहते हो। उस दिन जब गुड़िया से उन्होंने यह पूछा तो उस 10 साल की बच्ची ने जो उत्तर दिया, वह मिसाल था।

गुड़िया ने बोला “मेरा जन्म इन्हीं से हो, क्या यह मेरा फैसला था? यदि मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में होता तो मैं शायद ही इनके द्वारा जन्म लेती। मेरे जन्म के लिए ये लोग साथ रह सकते थे, तो पालने के समय ये लोग किस अधिकार से अलग हो सकते हैं? जब मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में नहीं तो पालने का फैसला मैं कैसे कर सकती हूँ? जज अंकल! आप जो फैसला करेंगे वह मुझे मंजूर होगा।”  उसने यह बेबसी से कहा।

यह सुन कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया। इसके बाद गुड़िया के माता-पिता ने रोते हुए तलाक का केस वापस लिया और साथ रहने का निर्णय किया।

गुड़िया की वजह से देवाशीष के जीवन का वह अद्भुत केस था।

देवाशीष यही सोच रहे थे कि जाने अनजाने में हम अक्सर न जाने कितनों से मानसिक क्रूरता कर बैठते हैं, जिसका प्रभाव जिसके प्रति यह क्रूरता की गई उन तक नहीं होता। अपितु, उन पर आश्रित बच्चों के जीवन पर भी पड़ता है।

उन्हें युवती से मिलने के बाद अपने उक्त निर्णय के कारण गुड़िया के बेहतर जीवन के विषय में जानकर आत्मिक सुख मिला। क्योंकि ज्यादातर निर्णयों में बच्चे के प्रति किसी न किसी रूप में हिंसा ही होती है।

हम प्राय: प्राण छीनने को हिंसा में गिनते हैं। हिंसा कैसी भी हो वह क्रूर कर्म है। महावीर स्वामी का दर्शन अहिंसा को सम्यक चरित्र के प्रथम अंग के रूप में रखता है। जैन दर्शन में अहिंसा का पालन सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। असावधानी से भी जब मनुष्य,पशु,पक्षी आदि के प्राणों का विनाश नहीं किया जाता, असल में, वही अहिंसा व्रत है। (न यत्प्रमादयोगेन जीवितव्यपरोपणम्…) 

अगर ऐसा कहना कि अहिंसक होना जैन धर्म की मुख्य पहचान है यह अतिशयोक्ति न होगी। यह अहिंसा मानसिक शारीरिक आत्मिक किसी भी प्रकार की हो सकती है। कहा भी गया है, “मनसैव कृतम् कर्म न शरीर कृतम् कृतम् , येनैवालंगिता कांता तेनैवा लंगिता सुता।।” अर्थात् पाप तो हमारा मन ही करता है.. और शरीर असली पापी नहीं है.. देखिए, वही देह जो प्रेमी को गले लगाती है या पत्नी को, वही पिता का शरीर प्रेममय भाव से बेटी को  गले लगाता है। 
—-
(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 42वीं कड़ी है।) 
— 
डायरी के पाठक अब #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से भी जुड़ सकते हैं। जहाँ डायरी से जुड़ अपडेट लगातार मिलते रहेंगे। #अपनीडिजिटिलडायरी के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करना होगा। 
—- 
अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां… 
41.भगवान महावीर मानव के अधोपतन का कारण क्या बताते हैं?
40. सम्यक् ज्ञान : …का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात!
39. भगवान महावीर ने अपने उपदेशों में जिन तीन रत्नों की चर्चा की, वे कौन से हैं?
38. जाे जिनेन्द्र कहे गए, वे कौन लोग हैं और क्यों?
37. कब अहिंसा भी परपीड़न का कारण बनती है?
36. सोचिए कि जो हुआ, जो कहा, जो जाना, क्या वही अंतिम सत्य है
35: जो क्षमा करे वो महावीर, जो क्षमा सिखाए वो महावीर…
34 : बौद्ध अपनी ही ज़मीन से छिन्न होकर भिन्न क्यों है?
33 : मुक्ति का सबसे आसान रास्ता बुद्ध कौन सा बताते हैं?
32 : हमेशा सौम्य रहने वाले बुद्ध अन्तिम उपदेश में कठोर क्यों होते हैं? 
31 : बुद्ध तो मतभिन्नता का भी आदर करते थे, तो उनके अनुयायी मतभेद क्यों पैदा कर रहे हैं?
30 : “गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास”
29 : कोई है ही नहीं ईश्वर, जिसे अपने पाप समर्पित कर हम मुक्त हो जाएँ!
28 : बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?
27 : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26 : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25 : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24 : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23 : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा! 
22 : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो 
21 : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो? 
20 : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है 
19 : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है 
18 : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है 
17 : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं? 
16 : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला? 
15 : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है? 
14 : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है? 
13 : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं? 
12 : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन 
11 : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई? 
10 :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है? 
9 : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की! 
8 : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?  
7 : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे? 
6 : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है 
5 : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा? 
4 : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं? 
3 : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए! 
2 : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा? 
1 : भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जीवन की डोर अंबा के हाथ से छूट रही थी

देखते ही देखते वह ऐसे गायब हुआ, जैसे पहले कभी था ही नहीं। उस दिन… Read More

1 day ago

‘डीपसीक’ मतलब गहन खोज.. यह ज़रूरी तो है लेकिन कब, कहाँ, कितनी?

चीन की एक कम्पनी ने तकनीक की दुनिया में बीते हफ़्ते-10 दिन से दुनिया में… Read More

2 days ago

अब ‘एक देश, एक समय’ की तैयारी, तो क्या अभी अलग-अलग जगहों के समय में फर्क है?

सूचना है कि भारत सरकार अब देशभर में एक समान मानक समय (आईएसटी यानि भारतीय… Read More

3 days ago

उसकी छवि ख़राब हुई, नौकरी गई, शादी भी टूटी…, इसकी भरपाई पुलिस करेगी क्या?

मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले आकाश कनौजिया की उम्र अभी 31 साल है।… Read More

4 days ago

अमेरिकी कहलाने के लिए ‘अधपके बच्चे’ पैदा करेंगे!…, ऐसे लोग ‘भारतीय गणतंत्र पर कलंक’!!

भारतीय गणतंत्र के 75 साल पूरे होने के अवसर पर देश के सामने दो विरोधाभासी… Read More

5 days ago

‘एक देश, एक त्योहार-तिथि’, यह सुनिश्चित करने की पहल ख़ुद शंकराचार्य क्यों नहीं करते?

‘एक देश-एक पंचांग’ या दूसरे शब्दों में ‘एक देश-एक त्योहार तिथि’, कुछ भी कह लीजिए।… Read More

6 days ago