Satish Kaushik ji

“फूलै फूलै चुन लिए, काल्ह हमारी बार…” सतीश कौशिक जी… सादर नमन्

संदीप नाइक, देवास, मध्य प्रदेश से

‘वो सात दिन’ में अपना काम करके अनन्त यात्रा पर निकल ही गया बन्दा आख़िर। एक दिन हमें भी यह सब छोड़कर जाना ही है। अब आदत हो गई है और मौत से ख़ौफ़ नहीं होता। किसी सहेली सी लगती है और लगता है, “फूलै फूलै चुन लिए, काल्ह हमारी बार…”

और फिर हमारे पास भी तो कुल चार ही दिन हैं जीवन में। काम करते रहो अपना और ऐसा कुछ कर चलो कि कोई तनिक ठहरकर ओम शान्ति लिख दे। समय हो तो कन्धा देने आ जाए। समय हो तो दो घड़ी बुदबुदा दे। दो घड़ी सम्हल जाए अपने हालात में। दो घड़ी विचार ले। दो घड़ी मुस्काते हुए देख ले घर परिवार को कि सब ठीक है न? अपने बाद की जुगत से सब ठीक चलता रहेगा न? …क्योंकि वो कहते हैं न, “उड़ जाएगा हंस अकेला”।

सतीश बाबू जल्दी क्यों थी इतनी जाने की? एक भरपूर ठहाका तो और लगाते जमकर? वैसे ही गम कम हैं क्या, इस संसार में?

ख़ैर, ख़ुश रहो जहाँ भी रहो,

“मौत सबको आनी है,
कौन इससे छूटा है
आज जवानी पर इतराने वाले
कल तू ठोकर खाएगा ….”

जानी बाबू की कव्वाली लगा दे कोई रिकॉर्ड प्लेयर पर। मन उदास है। पिछले 10 दिनों से मौत का सिलसिला रुक ही नहीं रहा। लोग बेतहाशा मर रहे हैं। पर किसे फ़िक्र है बाबू? सब चुप हैं।

…और व्यवस्था मुस्कुरा रही कि जिम्मेदारी कम हो रही उसकी!

सादर नमन! 
—– 
(संदीप जी #अपनीडिजिटलडायरी के नियमित पाठक और वरिष्ठ लेखक हैं।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *