Gas Tragedy

लेकिन अर्जुनसिंह वादे पर कायम नहीं रहे और राव पर उंगली उठा दी

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 16/6/2022

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह द्वारा राज्यसभा में गैस त्रासदी पर चर्चा के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को दोषी ठहराए जाने पर कांग्रेस हाईकमान ने नाराजगी जाहिर की है। अर्जुन सिंह ने परोक्ष तौर पर नरसिंहराव को दोषी ठहराया और इसे राजीव गांधी को क्लीन चिट की तरह देखा गया। उन्होंने कहा था कि गैस हादसे के लिए दोषी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन की रिहाई के लिए बार-बार केंद्रीय गृह मंत्रालय से फोन आए थे। सूत्रों की मानें तो अर्जुन सिंह को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने साफ तौर पर बता दिया था कि बयान में राव का या ऐसा कोई जिक्र न करें जिससे केंद्र की ओर उंगली उठे। लेकिन कांग्रेस के चतुर नेता ने अपना तय बयान ही पढ़ा। बावजूद इसके कि उन्होंने प्रणब को आश्वासन दिया था कि उनके सुझाव के मुताबिक ये अपने लिखित बयान से दो अहम लाइनों को हटा देंगे।

अर्जुन के भाषण को पहले हाईकमान को दिखाया गया था। उसके बाद उन्हें बोलने की इजाजत दी गई। इस दौरान पाया गया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी अगर वे एंडरसन की रिहाई के लिए दोषी बताते हैं तो इससे अनावश्यक रूप से दिवंगत राव का नाम जुड़ेगा और राजीव गांधी की मौन सहमति का संकेत मिलेगा। हाईकमान ने राव को कभी पसंद नहीं किया। लेकिन उसने कभी यह भी नहीं चाहा कि एंडरसन मामले में उनका नाम जोड़ा जाए। क्योंकि इससे विवाद और गहराएगा। असल में मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकमान कभी नहीं चाहता था कि अर्जुनसिंह बोलें। लेकिन अर्जुनसिंह के अपने वक्तव्य में संशोधन का वादा करने पर उन्हें अनुमति दी गई। इसके बाद भी चिंतित प्रणब बोलने के ऐन पहले फिर उनके पास गए। अर्जुन ने उन्हें अपना लिखा नोट दिखाया और जैसा तय हुआ है वैसा ही बोलने का वादा दोहराया। प्रणब ने संसदीय कार्यमंत्री पीके बंसल को बता दिया कि सब कुछ ठीक है। बंसल ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी को बता दिया कि मामला सुलट गया है। लेकिन अर्जुनसिंह वादे पर कायम नहीं रहे और राव पर उंगली उठा दी।…

एक सितंबर 2010, बुधवार। …अगस्त बीतते-बीतते सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया है कि केस फिर से खुले। देश की सबसे बड़ी अदालत इंसाफ की आखिरी उम्मीद भी है। सुप्रीम कोर्ट के कदम से एक बार इंसाफ की फिर उम्मीदें जागी हैं।…

दिसंबर 1984 में हादसे के बाद पीड़ितों का एक अंतहीन संघर्ष भी शुरू हो गया था। उनके इलाज और मुआवजे के लिए सरकारी दफ्तरों और अदालतों में थका देने वाली लड़ाई का एक लंबा सिलसिला। इस लड़ाई में भी कई किरदार जुटे। उन्होंने संगठन बनाए। हादसे के बाद के हालातों की जरूरतों के मुताबिक कई मोर्चों पर खुद को खपाया।

उनके सामने हजारों की तादाद में वे लोग थे, जो बच तो गए थे, लेकिन गैस ने उन्हें मोहताज बना दिया। इनमें अब्दुल जब्बार, बालकृष्ण नामदेव, अनिल सद्गोपाल, सतीनाथ षड़ंगी, आलोकप्रताप सिंह, साधना कर्णिक, हमीदा बी, ऊषा शुक्ला और मो. इरफान समेत कई नाम हैं, जिन्हें देश-विदेश में जाना जाता है। उन दिनों की दास्तान का सबसे दर्दनाक पहलू अनिल सद्गोपाल बताएंगे, जिन्होंने घातक रसायनों के बारे में बरती जा रही सरकारी गोपनीयता का पर्दाफाश करने में चार साल लगाए।…

अनिल सद्गोपाल को 1984 के दिसंबर की वह दोपहर याद है, जब पलिया पिपलिया में वे किशोर भारती के परिसर में बैठे थे। यह होशंगाबाद जिले के वनखेड़ी प्रखंड का एक गांव है। बंबई से मध्यप्रदेश आने पर बच्चों के लिए सरल एवं व्यवहारिक शिक्षा के प्रसिद्ध प्रयोग के लिए उन्होंने यही गांव चुना था। गांव से एक बच्चा रेडियो लेकर दौड़ा आया। वह घबराया हुआ था। ऑल इंडिया रेडियो से खबर थी कि भोपाल में गैस रिसी है। सैकड़ों लोग मारे गए हैं। किशोर भारती की इस टीम का भोपाल आना-जाना लगा ही रहता था। कई दोस्त और मददगार यहां थे। टीम ने भोपाल कूच करने का फैसला फौरन लिया। व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर मदद के लिए। तब सतीनाथ षडंगी भी किशोर भारती से जुड़े थे। अनिल और सथ्यू दोनों पांच दिसंबर को भोपाल आए।

रेलवे स्टेशन के आसपास की कॉलोनियों में घूमे। इस नतीजे पर पहुंचने में उन्हें ज्यादा देर नहीं लगी कि यह सिर्फ राहत और इलाज का मामला नहीं है। बायो केमिस्ट्री और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके इन दोनों स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं ने घातक रसायनों के असर को एक वैज्ञानिक नजरिए से भी देखा। सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. एस. वर्द्धराजन को प्रधानमंत्री ने भोपाल भेज दिया था, जो होशंगाबाद रोड स्थित लैब में थे। अनिल सद्गीपाल इसके एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य भी थे। वे लैब पहुंचे। भारी पुलिस बल था। इन्होंने अपने नाम की परची भेजी। डॉ. वर्द्धराजन का जवाब आया कि वे किसी गैर-सरकारी व्यक्ति से नहीं मिलेंगे। यह जवाब शक पैदा करने वाला था। वहां गोपनीयता बरती जा रही थी(

सात को तीस चालीस कार्यकर्ता इकट्ठे हुए। जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा बना। वर्द्धराजन ने गैस और रसायनों के दुष्प्रभाव को लेकर 10 दिसंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो तथ्य पेश किए, उससे भी लग गया कि दाल में काले की मात्रा कुछ ज्यादा ही है। वे सही चीजें पेश नहीं कर रहे थे। वे शुद्ध एमआईसी बता रहे थे। मोर्चे के जानकारों की नजर में गैस के थर्मल विघटन में दूसरे रसायनों का वजूद में आना लाजिमी था, जो हजारों लोगों के शरीर बेदम बना रहे थे। मोर्चे की लड़ाई अब शुरू हुई। इन्होंने डॉ. वर्द्धराजन के तथ्यों को चुनौती दी। इससे भोपाल को मोर्चे की खबर मिल गई। लोग जुड़ते गए। सचेत डॉक्टरों के स्वयंसेवी समूह मेडिको फ्रेंड सर्कल के डॉक्टरों की टीम भोपाल बुलाई गई। पुणे और बड़ौदा समेत देश के कई शहरों से डॉक्टर भागे-भागे भोपाल आए। गैस पीड़ित बस्तियों में काम में भिड़े। इनकी पड़ताल से पता चला कि महिलाओं के प्रजनन अंगों पर गैस से भारी नुकसान हुआ था। करीब एक दर्जन परीक्षणों के आधार पर यह नतीजा आया। अनिल याद करते हैं-‘तब सरकार और पुलिस के कान खड़े हुए। क्योंकि सरकार मामले को सुलटाने की फिराक में थी। हम सच को सामने लाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर जा रहे थे।’
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ  
41. इस मुद्दे को यहीं क्यों थम जाना चाहिए?
40. अर्जुनसिंह ने राजीव गांधी को क्लीन चिट देकर राजनीतिक वफादारी का सबूत पेश कर दिया!
39. यह सात जून के फैसले के अस्तित्व पर सवाल है! 
38. विलंब से हुआ न्याय अन्याय है तात् 
37. यूनियन कार्बाइड इंडिया उर्फ एवर रेडी इंडिया! 
36. कचरे का क्या….. अब तक पड़ा हुआ है 
35. जल्दी करो भई, मंत्रियों को वर्ल्ड कप फुटबॉल देखने जाना है! 
34. अब हर चूक दुरुस्त करेंगे…पर हुजूर अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे थे? 
33. और ये हैं जिनकी वजह से केस कमजोर होता गया… 
32. उन्होंने आकाओं के इशारों पर काम में जुटना अपनी बेहतरी के लिए ‘विधिसम्मत’ समझा
31. जानिए…एंडरसरन की रिहाई में तब के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की क्या भूमिका थी?
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार… 
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!

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