केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 17/12/2021

…केंद्र में सरकार तब राजीव गांधी की थी। लाल साहब के इस खुलासे (केंद्र सरकार की ओर से साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए।) पर केंद्र की मौजूदा सरकार (फैसले के वक्त भी कांग्रेस की ही थी) अपनी खाल नहीं बचाएगी तो और क्या करेगी? तो तत्काल प्रभाव से वीरप्पा मोइली (तत्कालीन कानून मंत्री) ने लाल को ही लपेट दिया। मोइली ने कहा कि एंडरसन अगर पकड़ से बाहर हैं तो उसके लिए सीबीआई के तत्कालीन जांच अधिकारी बीआर लाल ही जिम्मेदार हैं। उन्हीं की वजह से आज एंडरसन के प्रत्यर्पण में दिक्कतें आ रही हैं। 

क्या मजाक है? वे लाल को घेरने के पहले यह भूल गए थे कि सीबीआई में लाल की हैसियत बहुत ऊंची नहीं थी। कम से कम इतनी तो नहीं ही थी कि वे एंडरसन जैसे हाईप्रोफाइल मामले में ऐसा कुछ कर पाते। मोइली का कथन खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने से ज्यादा नहीं लगा। एक कानून मंत्री का बचकाना बयान।  

….उधर, विदेश मंत्रालय एंडरसन के प्रत्यर्पण को लेकर उठे विवाद की लीपापोती करने में लग गया है।… विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए अमेरिका से पहली बार आग्रह 2003 में किया गया था। इसके बाद कई बार ऐसा किया गया। लेकिन अमेरिका आग्रह को नजरअंदाज करता रहा। अमेरिका का मानना है कि एंडरसन भोपाल त्रासदी के लिए सीधे और निजी रूप से जिम्मेदार नहीं है। अतः उसका प्रत्यर्पण नहीं हो सकता। 

लाल के आरोप- इससे पहले, सीबीआई के तत्कालीन जांच अधिकारी बीआर लाल ने आरोप लगाया था कि इस मामले में विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी नागरिक एंडरसन का पीछा करने को नहीं कहा था। उन्हें इस बारे में मंत्रालय से पत्र भी मिला था। लेकिन यह याद नहीं कि इस पर किसके हस्ताक्षर थे। लाल ने अप्रैल 1994 से जुलाई 1995 के बीच इस मामले की जांच की थी। 

ग्रीनपीस- पर्यावरण संबंधी गैरसरकारी संगठन ग्रीनपीस ने दावा किया है कि उसने सीबीआई को मुख्य आरोपी एंडरसन के ठिकाने के बारे में बताया था। ग्रीनपीस की राजनीतिक मामलों की सलाहकार तथा जनसंपर्क अधिकारी निर्मला करुणन ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अमेरिका में 2002 में लगी फोटो प्रदर्शनी के दौरान एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन करके एंडरसन का पता बताया था। इसके आधार पर हम उसके घर गए थे। लेकिन एंडरसन की पत्नी ने बताया कि पति घर पर नहीं है। हमने बाद में एंडरसन को अपने घर के पिछले दरवाजे से निकलते देखा था। यह जानकारी अमेरिका, भारतीय अदालतों तथा सीबीआई को दी गई थी। 

नए कानून की मांग- भाजपा ने औद्योगिक हादसों पर नया कानून बनाने की मांग की है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने दिल्ली में कहा कि सीबीआई के पूर्व अधिकारी का बयान बेहद चिंताजनक है कि एजेंसी की कोशिशों के बावजूद सरकार ने एंडरसन पर कार्रवाई नहीं करने का दबाव बनाया था। प्रसाद ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भी दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया, जिसमें त्रासदी के मामले को गैर इरादतन हत्या से बदलकर लापरवाही का मामला बनाने का आदेश दिया। 

हम मुआफी चाहेंगे, गलती इंसान से ही होती है- अदालत के फैसले के तुरंत बाद जस्टिस एएम अहमदी भी बोलने के लिए नमूदार हुए। ये वही माननीय न्यायाधीश हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में 1996 में गैस हादसे के मामले में धाराएं बदल दी थीं। असल में तो फैसला तभी हो गया था, जब धारा बदली गई। सब जानते थे कि धारा 304 ए में सजा मिलनी कितनी है? अब अहमदी साहब फरमा रहे हैं कि उन्होंने जो कुछ भी किया, बिल्कुल ठीक किया था। 

….जस्टिस अहमदी कह रहे हैं कि वे पीड़ितों से केवल सॉरी कह सकते हैं। उन्होंने 1996 के अपने फैसले को सही ठहराया है। उनकी अध्यक्षता वाली बेंच के फैसले से इस मामले के आरोप गैर इरादतन हत्या के बजाए लापरवाही में बदल दिए गए। जस्टिस अहमदी के मुताबिक इस मामले में हमारा फैसला सही था। हमारी राय में इस मामले में गैर इरादतन हत्या का आरोप नहीं लगाया जा सकता। फिर भी इस मामले की समीक्षा के लिए किसी ने याचिका नहीं लगाई। यदि कहीं कोई खामी थी तो वह कानून के प्रावधानों में। 

जस्टिस साहब का यह संवाद गजब का है- ‘सॉरी। इतना संक्षिप्त और इतना मजेदार दूसरा नहीं हो सकता था। अगर किसी पुरानी फिल्म में अदाकार राजकुमार परदे पर कहते तो अंदाज यह होता- ‘हम मुआफी चाहेंगे, गलती इंसान से ही हुआ करती हैं…/ सफेद जूतों में सीढ़ियों से उतरते हुए। 

दूसरी ओर, पूर्व चीफ जस्टिस पीएन भगवती ने कछुआ चाल से ऐसे गंभीर मामले का निपटारा होने पर गहरा दुख जताया है। जस्टिस भगवती ने इस सिद्धांत की नींव रखी थी कि लापरवाह कंपनी को अपनी भुगतान क्षमता के अनुरूप मुआवजा देने को कहा जाना चाहिए। उनके मुताबिक, भोपाल के ट्रायल कोर्ट के फैसले से इस सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है। जजों को पीड़ितों की चिताओं पर ध्यान देना चाहिए। 

होश में हो, काहे की कार्रवाई? अमेरिका ने यूनियन कार्बाइड कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है। अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री (तत्कालीन) रॉबर्ट ब्लेक ने कहा कि मानव इतिहास में भोपाल गैस त्रासदी निश्चित तौर पर एक सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना थी। यह भारत का अंदरूनी मामला है। मुझे उम्मीद नहीं है कि अदालत के फैसले से नई जांच या ऐसी अन्य बातों का सिलसिला पुनः शुरू होगा। इस बयान में दो बातें हैं। या तो ब्लेक भारत को इशारा कर रहे हैं कि अब नई जांच वगैरह की जरूरत नहीं है। या वे भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को बेहतर ढंग से जानते हैं। उन्हें मालूम है कि अब कुछ होने वाला नहीं है। ऐसे ये बड़े तीस मार खां होते तो अब तक कर हो चुके होते। दोनों ही स्थितियां भारत के लिए शर्मनाक हैं। 

कानून पर कटाक्ष : पश्चिमी मीडिया ने भोपाल के फैसले को लेकर कानून पर कटाक्ष किए हैं। इस दिन के अख़बार में ‘द वाशिंगटन टाइम्स’ और ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की सक्षित ख़बरें दी हैं। ‘द वाशिंगटन टाइम्स’ की हेडिंग है- इतनी देर से मामूली सजा। इसमें बताया गया है कि 15 हजार से ज्यादा लोगों की मौत और 50 हजार से ज्यादा पीड़ितों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार लोगों को सिर्फ दो साल की सजा और जमानत से लोगों में जबर्दस्त गुस्सा है। लोग अदालत के इस निर्णय को सही नहीं मान रहे। पीड़ितों का कहना है कि वो किसी भी हालत में अपनी लड़ाई जारी रखेंगे ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल लिखता है कि आरोपियों को मामूली सजा और जुर्माना किया है। 

भोपाल पर सितारों के संवाद : अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि फैसले से जनता और जानी मानी हस्तियों ने असहमति दिखाई है। गलियों में प्रदर्शन हो रहे। हैं। हर भारतीय इस फैसले से नाराज है। शेखर कपूर कहते हैं कि भोपाल के गरीबों की परवाह किसे है? निश्चित तौर पर हमारी सरकार को नहीं। यह फैसला यही साबित करता है कि आप भारत में कुछ भी करके बच निकाल सकते हैं। भले ही आपकी वजह से हजारों लोग मारे जाएं। गुल पनाग का कहना है कि यह इंसाफ का माखौल है। ईसान की जिंदगी को कीमत कितनी कम है, यह फिर जाहिर हो गया है। 

कुरैशी अदालत में हाजिर हो : मामले का एक अन्य आरोपी शकील अहमद कुरैशी फैसले के एक दिन बाद अदालत में पहुंचा। …खबरों में बताया गया है कि वह लकवा समेत कई बीमारियों से पीड़ित है और इंदौर के एक अस्पताल में भर्ती था। वह एम्बुलेंस से आया और सीजेएम कोर्ट में पहुंचकर जमानत और मुचलका पेश किया। उसकी तरफ से जुर्माने की रकम सोमवार को ही जमा कर दी गई थी।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!

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