महामारी की मारः किसकी ज़िम्मेदारी, कौन तय करे?

एक नियमित पाठक, दिल्ली से, 25/4/2021

कल दीपक शर्मा जी की 23 तारीख की डायरी पढ़ी। निश्चित रूप से वाराणसी की घटना समेत पूरे देश की समस्या दुखद है। किन्तु इसके लिए केवल राजा ही नहीं बल्कि उसकी प्रजा भी उतनी ही ज़िम्मेदार है। 

ऊपर फोटो पत्रकार मित्र ज्ञान त्रिपाठी की तस्वीर अपने आप सारी कहानी कह देती है। हम समय रहते भी नहीं चेते। यह तस्वीर तो शिक्षित समाज की है। बाकी देश का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। गाँवों के हालात के बारे में टुकड़ों में लगातार सोशल मीडिया पर बातें सामने आ रही हैं। 

हमें खुद को शिक्षित और अनुशासित करने के साथ-साथ अपनी नागरिक ज़िम्मेदारी को भी समझने की ज़रूरत है। ‘राम भरोसे’ से ‘राम राज्य’ की स्थिति में तभी पहुँचा जा सकत है, जब प्रजा में समाज को साथ लेकर चलने की प्रवृति पैदा हो।  

बातें तो सभी बड़ी-बड़ी करते हैं। लेकिन उनका सामाजिक योगदान क्या है? मन्दिरों में दान देना एक कार्य हो सकता है। लेकिन वही मन्दिर जब ट्रस्ट के ज़रिए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, अनाथालय आदि चला रहे होते हैं, तो उनकी बात कोई नहीं करता। अब रामजन्मभूमि न्यास को ही लीजिए। तीर्थ क्षेत्र ने दशरथ मेडिकल कॉलेज में ऑक्सिजन संयन्त्र लगाने की घोषणा की है। अलबत्ता तो समाज में ऐसी जानकारी का अभाव ही होता है। मीडिया के लोगों तक ऐसी जानकारी होती भी है तो प्रजातन्त्र में पर्याप्त फैल नहीं पाती है। 

हाँ, इसमें कोई दो मत नहीं कि पहले से चली आ रही व्यवस्था में सुधार के लिए पर्याप्त प्रयास न पहले किए गए और न ही आज किए जा रहे हैं। इस महामारी को रोकने के प्रयास युद्धस्तर पर किए जाने की ज़रूरत थी और है। 

स्वास्थ्य क्षेत्र का धड़ाम होना पहले से तय था। सरकार को कुछ वक़्त मिल गया था, जिसमें उसे तैयार रहने की ज़रूरत थी। चूक तो हुई है। लेकिन क्या यह जिम्मा केवल केन्द्र सरकार का ही है? 

क्या राज्य सरकारों को इस बात की फ़िक़्र है कि लोगों के पास ऑक्सिजन या कोरोना से इलाज के अन्य संसाधन उपलब्ध नहीं हैं? क्या दिल्ली या अन्य जगहों के अस्पतालों को दो घंटे पहले ही मालूम पड़ रहा है कि उनके पास अगले दो घंटे के लिए ही ऑक्सिजन उपलब्ध है? 

यह हृदयविदारक है, लेकिन सवाल यह भी लाज़िम है कि वाराणसी में माँ के बेटे की मृत्यु के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाए? क्या इसके लिए केवल देश के प्रधानमन्त्री ही ज़िम्मेदार हैं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि बहुत-सी जगहों पर केवल प्रधानमन्त्री को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। 

सच तो यह है कि वर्तमान परिस्थितियों के लिए, किसी भी समस्या के लिए, हम जब तक दूसरों को दोष देते रहेंगे, तब तक हर समस्या के लिए केवल और केवल मुँह ही ताकते रहेंगे। भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में जन स्वास्थ्य और इससे जुड़े स्वच्छता, अस्पताल, चिकित्सा केन्द्र जैसे तमाम विषय राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी हैं। 

जबकि किसी महामारी या संक्रामक रोग को फैलने से रोकना संविधान की समवर्ती सूची के अन्तर्गत आता है। इसलिए इस महामारी को रोकना केन्द्र और राज्य सरकारों की साझी ज़िम्मेदारी है। हम सबकी ज़िम्मेदारी है। जब तक हम ख़ुद इसे नहीं रोकेंगे, यह नहीं रुकेगी। 

यह निश्चित रूप से सच है कि सरकारों ने तालाबन्दी खोलने के बाद ज़रूरी इन्तज़ाम नहीं किए। लेकिन यह भी सच है कि हम भी लापरवाह हो गए। हम आज जिन हालात का सामना कर रहे हैं, उनके लिए हम भी समान रूप से ज़िम्मेदार हैं।

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(यह लेख डायरी के एक नियमित पाठक ने नाम सार्वजनिक न करने के आग्रह के साथ वॉट्सऐप सन्देश के रूप में #अपनीडिजिटलडायरी को भेजा है। चूंकि वह नियमित पाठक हैं, इसलिए डायरी के सक्रिय भागीदार हैं। और डायरी अपने भागीदारों की निजता का सम्मान करती है। इसलिए इसे यहाँ एक पाठक की टिप्पणी के रूप में ही प्रकाशित किया गया है।)

दीपक शर्मा की डायरी का पन्ना यहाँ पढ़ा जा सकता हैः

हे राम! अब यूँ करो-ना, नहीं सहा जाता तेरे राज्य में
 

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