Panini

‘संस्कृत की संस्कृति’ : आज की संस्कृत पाणिनि तक कैसे पहुँची?

अनुज राज पाठक, दिल्ली

पिछली कड़ी में हमने व्याकरण के आचार्यों का उल्लेख किया। संस्कृत वांग्मय में सभी विषयों का आदि अर्थात् सबसे पहले उपदेश करने वाले ब्रह्मा हैं। अब ब्रह्मा कौन हैं? यह कहना कठिन है। माना जा सकता है कि अति प्राचीन काल में ‘ब्रह्मा’ नामक आदि पुरुष हुए। उन्हें ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेवों के समूह में स्वीकार किया गया। बाद में महान् ज्ञानी व्यक्ति को भी उपाधि स्वरूप ‘ब्रह्मा’ कहा जाने लगा। खैर, यहाँ हम उन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति मान सकते हैं। विविध प्राचीन आचार्यों द्वारा बार-बार ‘ब्रह्मा’ का उल्लेख उनकी ऐतिहासिकता को सिद्ध भी करता है।

‘कांत्र ऋग्तंत्र’ में ऋषि लिखता है, “ब्रह्मा ने बृहस्पति को, बृहस्पति ने इन्द्र को, इन्द्र ने भरद्वाज को और भरद्वाज ने ऋषियों को व्याकरण पढ़ाया।”

हालाँकि यहीं हम व्याकरण के एक और सम्प्रदाय के बारे में जानेंगे। क्योंकि वर्तमान में इसी सम्प्रदाय का व्याकरण प्रयोग में आता है। इस सम्प्रदाय के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह बृहस्पति से वेदांगों का उपदेश आगे बढ़ा, वैसे ही भगवान शिव ने भी वेदांगों का उपदेश किया है। और शिव द्वारा उपदेश किए गए वेदांग को शैव सम्प्रदाय का व्याकरण कहा जाता है। 

पाणिनी ने इन्हीं भगवान शिव की घोर आराधना की। उस आराधना से प्रसन्न होकर शिव ने अपने डमरू को चौदह बार बजाया। उसकी ध्वनि से चौदह सूत्र निकले। इन्हें ‘माहेश्वर सूत्र’ कहा गया। यद्यपि इससे पूर्व इन ‘माहेश्वर सूत्रों’ की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किए गए ताण्डव नृत्य से मानी जाती है।

इस बात के प्रमाण में यह श्लोक प्रसिद्ध है –

“नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥”

अर्थात्- “नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना के उद्धार (पूर्ति) के लिए नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुआ।”

यानि डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली। इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्राकट्य हुआ। इसलिए व्याकरण सूत्रों का आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है।

प्रसिद्धि है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया, जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना। वास्तव में ये चौदह सूत्र ही संस्कृत भाषा की वर्णमाला लिखने के विशेष प्रकार हैं। आगे इन्हीं से पाणिनी ने अपनी व्याकरण के सभी अन्य सूत्रों का निर्माण किया, जो आज प्रचलित हैं। 
—— 
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।) 
——-
इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 

8- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : भाषा और व्याकरण का स्रोत क्या है?
7- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मिलते-जुलते शब्दों का अर्थ महज उच्चारण भेद से कैसे बदलता है!
6- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘अच्छा पाठक’ और ‘अधम पाठक’ किसे कहा गया है और क्यों?
5- संस्कृत की संस्कृति : वर्ण यानी अक्षर आखिर पैदा कैसे होते हैं, कभी सोचा है? ज़वाब पढ़िए!
4- दूषित वाणी वक्ता का विनाश कर देती है….., समझिए कैसे!
3- ‘शिक्षा’ वेदांग की नाक होती है, और नाक न हो तो?
2- संस्कृत एक तकनीक है, एक पद्धति है, एक प्रक्रिया है…!
1. श्रावणी पूर्णिमा को ही ‘विश्व संस्कृत दिवस’ क्यों?

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *