सांकेतिक तस्वीर
ज़ीनत ज़ैदी, दिल्ली
‘कल स्कूल आएगी/आएगा क्या?’ ये सफ़र अब ख़त्म हुआ।
मई 2018 से शुरू आरपीवीवी का सफ़र अब ठहर गया।।
न जाने कितनी चीजें ये हमें सिखा गया,
हमसे हमारे कुछ कीमती पल चुरा गया।
बन गया हमारी यादों का एक अहम हिस्सा,
एक हिस्सा हमारी ज़िन्दगी का ख़ुद में बसा गया।।
अभी तो हम यहाँ आए ही थे,
ये पिंजरा क्यूँ हमें यूँ उड़ा गया।
अभी तो इससे मोहब्बत हुई ही थी,
क्यूँ हमें इतना बड़ा बना गया।।
अनुज सर का गुस्सा कम करने में हमारा भी योगदान है,
हमें चुटकियों में गणित के फॉर्मूले याद कराना अनीता मैम का कमाल है।
‘इतना आसान शब्द भी नहीं आता’, कहकर अमित सर ने हिन्दी सिखाई,
‘विज्ञान का बेड़ा गर्क’ कर के कौशिक सर की खूब डाँट खाई।।
राशिद सर ने हिस्ट्री इतनी आसान बनाई,
हरदीप मैम की हमने खूब जान खाई।
अच्छा इंसान बनने का सबक अंजू मैम हमेशा देती रहीं,
और लगातार हमारा टेस्ट रेखा मम लेती रही।।
हमारा सफ़र तो अब यहाँ पूरा हुआ,
अब आगे एक नई शुरुआत है।
हाँ लेकिन यह बात सच है,
कि हमें हमारे स्कूल पर नाज है।।
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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं।अच्छी कविताएँ भी लिखती है। वे अपनी रचनाएँ सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन या वॉट्सएप के जरिए भेजती हैं।)
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