बेटा! नाहक गरमी मत दिखा, हमने इसे घर की लक्ष्मी को निकालते देखा है

समीर, भोपाल मध्य प्रदेश से, 1/11/2021

घटना बहुत पुरानी नहीं है। लेकिन समय वह था, जब देश में धन-समृद्धि अधिक थी। मग़र फिर भी किसी ब्राह्मण का धनवान होना तो एक अनहोनी घटना ही होती थी। ऐसे ही, एक अत्यंत विरल महानुभव हमारे गाँव के हरिप्रसाद व्यास थे। व्यास जी के पास कोई दो सैकड़ा बीघा ज़मीन थी। बैलों की 30 से कम जोड़ी कभी नहीं रहती थीं उनके यहाँ। पाँच सौ से अधिक गायें थीं। सिर्फ़ गाय-बैलों की देखरेख के लिए पंद्रह-सोलह लोग थे। खेती के कामों के लिए हाली अलग थे। पंडित जी स्वभाव से थोड़े तेज थे, लेकिन अपने धर्मसम्मत आचरण, समझबूझ और व्यवहार से आसपास के 40 गाँवों में उनका सम्मान था। गाँव में किसी को भी दूध-दही- मठे की ज़रूरत होती, तो सीधे पंडित जी के घर जाकर ले आता। अगर उनकी गायें लोगों की फसल भी चर लेतीं तो कोई गौ को डंडा तक न दिखाता।

पंडितानी रोज पौ फटने से पहले अपने हाथों से गायों का बाड़ा साफ करतीं। जब सुबह गहनों से मढ़ी पंडितानी मैया गोबर फेंकने जातीं, तो साक्षात् लक्ष्मी सी लगती। हर पुरनमासी को पंडित जी दलिया, गुड, तिल के लड्‌डू बनवाते। सुबह-सवेरे गाँव की सभी गायों को अपने हाथों से खिलाकर आते। जब कभी कोई हाली कहता, “महाराज आप रहने दो। हम गायों को खिला आएँगे।” तो पंडित जी ज़वाब देते, “अरे तुम अपना काम करो। अपनी मैया को तो मैं ही खिलाऊँगा।” व्यास जी भाग्य के धनी थे। उनका धार्मिक परिवार आज्ञाकारी, मेहनती पुत्र, संस्कारी बहु-बेटियों के साथ सभी प्रकार से भरापूरा था।

एक दिन पंडितजी नदी के किनारे के खेत से गुजर रहे थे। चने की फसल पक रही थी। सो, पंडित जी ने वापस लौटते चौपाल पर बैठे लोगों से चना काटकर ले जाने को कहा। उस दिन बादल थे। उन्हें डर था कि चने की फसल बारिश से ख़राब न हो जाए। लेकिन ऐसा हुआ कि चने काटने कोई नहीं गया। चार दिन बाद पंडित जी जब फिर से नदी की तरफ गए तो खेत में चना वैसे ही खड़ा देखा। अबकी बार पंडित जी ने अपने हालियों से चना काट कर ले जाने के लिए कहा। सबने हामी भी भरी। लेकिन उसी दिन के दूसरे पहर में बड़े भैया (पंडित जी के बड़े पुत्र) ने सब हालियों को खेत पर बुलवा लिया। उन्हें माल भरवाने में लगा लिया। सो, चने काटने कोई नहीं जा सका। ऐसे ही, चार-पाँच दिन और बीत गए। 

तभी एक दिन पंडितजी नदी किनारे होते हुए पड़ोस के गाँव जा रहे थे। पगडंडी से देखा तो खेत में चने ज्यों के त्यों खड़े थे। उस समय न जाने क्या योग बना कि उनका क्रोध धधक उठा। होठ काँपने लगे। नख से शिख तक वे एक ज्वाला अनुभव करने लगे। यकायक वे तेजी से चलते हुए खेत की ओर चल पड़े। उन पर कोई अदृश्य ताक़त सवार दिखती थी। उन्होंने अपनी पूजा की थैली से माचिस की डिबिया निकाली। काँपते हाथों से एक तीली सुलगाई और उसे चने के खेत की ओर छिटका दिया। कुछ ही देर में खेत धूँ-धूँ कर जलने लगा। आग फैली और आसपास की जमीन पर फैली घास को लीलने लगी। दो-तीन दिनों तक झाड़ियों से लगे सूखे दरख़्त जलते रहे। उस साल गाँव की गायों को खाने के लिए घास भी न बचा। 

पंडित जी के व्यवहार ने सबको हतप्रभ कर दिया। अब हर कोई उनसे नज़रें मिलाने से क़तराता था। शायद गाँव वाले शर्मिन्दा थे अपने ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैये पर या आहत थे पंडित जी के व्यवहार पर। अब पंडित जी को देखने का नज़रिया बदल गया। पंडित जी के परिवार के प्रति लोगों के बाहरी व्यवहार में ज़्यादा बदलाव नहीं आया था। बस, आदर और सम्मान में भय हावी हो गया था। यह सब इतना धीमे से हुआ कि सूक्ष्मविवेकी पंडित जी को इसकी थाह भी नहीं मिली। पंडित जी के घर व्यापार-व्यवसाय अब भी बढ़ रहा था, लेकिन गौवंश और खेती कम होने लगी। घर पर काम करने वाले हाली कम कर दिए गए। छोटा बेटा शहर में जाकर बस गया। पैसा तो बराबर बढ़ता रहा लेकिन समृद्धि कम होने लगी। इसी बीच, पंडितानी जी को यकायक एक दिन ज्वर आया और शाम होते-होते उन्होंने प्रयाण कर दिया। अब पंडित जी पूरी  तरह श्रीहीन लगने लगे। एक दिन दोपहर उन्हें पक्षाघात (Paralysis) का दौरा पड़ा। शहर तक इलाज़ करवाया गया। लेकिन वे न कभी अपने पैरों पर खड़े हो सके और न सीधे हाथ से कोई कार्य कर सके। ऐसे ही, एक जेठ की दोपहर में वो अपने तख्त पर मृत पाए गए। 

उनकी मृत्यु के बाद घर को ग्रहण लग गया। भाइयों में बँटवारा हो गया। शहर वाले लड़के ने अपनी ज़मीन बनिए को बेच दी। धन-सम्पत्ति और इज्ज़त क्रमश: कम होने लगी। आज हाल यह है कि पंडित जी का एक पौत्र बटाई पर खेती करता है। बहू अचार, पापड़-बडी बनाकर घर की आय में हाथ बँटाती हैं। और गाँव के बड़े-बूढे अक्सर उदाहरण देते पाए जाते हैं, “बेटा! नाहक गरमी मत दिखा। हमने इसे पंडित जी के घर की लक्ष्मी को निकालते देखा है।”
——-
(समीर, निजी कम्पनी में काम करते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के लिए नियमित रूप से इस तरह की कहानियाँ, अनुभव, वैचारिक लेख आदि लिखते हैं।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *