टीम डायरी
ये दौर सोशल मीडिया का है। इसलिए हर कोई इन सोशल मीडिया के माध्यमों से मशहूर होना चाहता है। और अब तो मशहूरियत के स्तर के हिसाब से सोशल मीडिया कम्पनियाँ पैसे भी भरपूर देती हैं। तो इस तरह ‘एक तीर से दो निशाने’ सध जाते हैं। नाम का नाम, ऊपर से भरपूर दाम।
ज़ाहिर तौर पर इस ‘मोहिनी माया’ से कोई भी अछूता नहीं है। फिर चाहे वह कवि, कथाकार, साहित्यकार, संगीतकार, गीतकार, गायक, कलाकार, रचनाकार आदि ही क्यों न हों। हर किसी को सोशल मीडिया के माध्यमों से मशहूरियत का शिखर छूना है। ऐसी मंशा साफ़ नज़र आती है।
अब यहाँ दिलचस्प बात ये है कि चूँकि अच्छी रचनाओं, बढ़िया सामग्री को जनमानस के बीच अपनी जगह बनाने में वक़्त लगता है। तो लोग छोटा रास्ता अपनाते हैं, शॉर्ट-कट। और कवि सम्मेलनों में आजकल जो हल्के दर्ज़े की चुटकुलेबाज़ी हुआ करती है, वह भी एक ऐसा ही शॉर्ट-कट है।
सोशल मीडिया पर हज़ारों वीडियो मिल जाएँगे, जो पुष्टि करते हैं कि कवि सम्मेलनों का स्तर पर अब निरन्तर नीचे जा रहा है। हालाँकि इसी दौर में बीते कुछ समय से संभावनाशील युवा कवियों के नाम भी उभरे हैं। उम्मीद की किरण की बनकर। उनकी रचनाओं में जितना साहित्य है, उतना ही लालित्य भी।
पिछले क़रीब सालभर से लगातार सुर्ख़ियाँ बटोर रहीं ऐसी ही एक युवा कवयित्री हैं, मनु वैशाली। मनु वैशाली मध्य प्रदेश के शिवपुरी शहर की रहने वाली हैं। इनके माता-पिता दोनाें शिक्षण क्षेत्र में सक्रिय हैं। और ये कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ा रही हैं। उनमें जान फूँक रही हैं। आशा की आभा बिखेर रही हैं।
ऊपर मनु वैशाली का एक वीडियो दिया गया है। देखा सकते हैं। अनुमान लगा सकते हैं कि उनकी रचनाओं में कैसी साहित्यिक परिपक्वता है। कितने सुन्दर छन्द रचती हैं वह। उनमें किस तरह अपने भाव उड़ेल कर श्रोताओं के बीच प्रभाव छोड़ती हैं। और मुनादी करती हैं कि “यह अँधेरे की सड़क, उस भोर तक जाती तो है।” मध्य प्रदेश से ही ताल्लुक रखने वाले मशहूर ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार त्यागी जी ने लिखा था कभी…
एक खंडहर के हृदय सी, एक जंगली फूल सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।।