अनुज राज पाठक, दिल्ली
भाषा के तौर पर संस्कृत की तकनीक और उसका सौन्दर्य अतुलनीय है। हम क्रमश: इसके तकनीक पक्ष पर दृष्टि डालेंगे। तो, सामान्य जन को भाषा में मोटे तौर अक्षर, शब्द और वाक्यों का बोध होता है। समझने के लिए इसे हम यूँ कहते हैं, भाषा की सबसे छोटी इकाई ‘अक्षर’ होती है, जिसे ‘वर्ण’ भी कहा जाता है। फिर अक्षरों से ‘शब्द’ और शब्दों से ‘वाक्य’ बनता है। लेकिन वर्णों या अक्षरों से शब्दों का निर्माण होता है, ऐसा कहने का अर्थ यह नहीं कि अपनी इच्छा से कैसे भी अक्षर जोड़ दें और उनके जोड़ने से कोई शब्द बन जाएगा। इसी तरह, कोई भी शब्द साथ-साथ लिख देने मात्र से वाक्य बन जाएगा। ऐसा नहीं होता।
यद्यपि संस्कृत में ‘अक्षर’ मात्र का भी अपना अर्थ होता है, जो वाक्य में ‘शब्द’ की तरह प्रयोग हुआ दिखाई दे जाता है। यह इसकी विशिष्टता और सुन्दरता है। संस्कृत वांग्मय में अक्षरों का ‘शिक्षा’ नामक वेदांग के रूप में अध्ययन कराया जाता था। इस ‘शिक्षा’ वेदांग को हम आधुनिक शब्दावली में या आधुनिक भाषा-विज्ञान के हिसाब से समझने का प्रयास करें, तो कह सकते हैं कि यह एक ‘ध्वनि-विज्ञान’ है। इसके अन्तर्गत विभिन्न ‘वर्ण’ यानि ‘अक्षर’ रूपी ध्वनियों का विश्लेषण किया जाता है।
और ‘शिक्षा’? इस बारे में वेदों के भाष्यकार आचार्य सायण ‘शिक्षा’ की परिभाषा बताते हुए यूँ कहते हैं –
“वर्णस्वराद्युच्चारणप्रकारो यत्रोपदिश्यते सा शिक्षा।”
अर्थात् जिसमें वर्ण, स्वर आदि उच्चारण प्रकारों का उपदेश हो, उसे ‘शिक्षा’ कहते हैं।
इसी तरह, प्राचीन आचार्य ‘शिक्षा’ के महत्त्व को दर्शाते हुए कहते हैं –“शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य”।
यानि, शिक्षा ‘वेदांग की नाक’ है।
सो, इस लिहाज से कल्पना कीजिए कि अगर किसी चेहरे पर नाक न हो या नाक विकृत हो, तो वह चेहरा कैसा लगेगा? सुन्दर नहीं लगेगा न? क्योंकि व्यक्ति के मुख का सौन्दर्य नाक पर बहुत हद तक निर्भर करता है। इसीलिए ‘शिक्षा’ हमेशा से महत्त्वपूर्ण मानी जाती रही है। मानी जाती रहेगी। और यही कारण है कि हम सनातनी भाषा ‘संस्कृत’ के बारे में ‘शिक्षित’ करने वाली यह रोचक श्रृंखला लेकर आए हैं।
आगे इस सन्दर्भ में यह जानना और रोचक हो सकता है कि जैसे वेदांग की नाक ‘शिक्षा’ है, वैसे ही संस्कृत भाषा की भी नाक है। इसके बारे हम देखेंगे कि कैसे संस्कृत के ऋषियों ने इसे गढ़ा है। इसी श्रृंखला के तहत।
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(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)
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इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
2- संस्कृत एक तकनीक है, एक पद्धति है, एक प्रक्रिया है…!
1. श्रावणी पूर्णिमा को ही ‘विश्व संस्कृत दिवस’ क्यों?