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बेटी के नाम आठवीं पाती : तुम्हें जीवन की पाठशाला का पहला कदम मुबारक हो बिटवा

दीपक गौतम, सतना मध्य प्रदेश

प्रिय मुनिया

मेरी जान, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूँ, जब तुमने पहली बार अपने नन्हें कदम पाठशाला की ओर रखे हैं। तुम्हें स्कूल जाते हुए 2 दिन हो गए हैं। आज 4 अप्रैल की रात को जब मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ, तब तुम मेंरे पास नहीं हो। क्योंकि मैं एक यात्रा पर निकल चुका हूँ और तुम मेरे पास एक दिन बाद वहां पहुँचोगी। स्कूल के ये 2 दिन तुम्हारे लिए गजब के रहे हैं। यूँ तो मैं तुम्हें अगले 2 साल तक स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं था, ताकि तुम 5 साल तक भरपूर बचपन जी सको। लेकिन तुम्हारी माँ की सोच इससे कुछ अलग है और मुझे सहमत होना पड़ा। बदलते वक्त और बदलती शिक्षा व्यवस्था के लिहाज से यह जरूरी था। दूसरा यह कि तुम्हारी माँ पिछले 15 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में ही काम कर रही हैं, तो उसका बदलता मिजाज उन्हें बेहतर पता है। सहमति का दूसरा प्रमुख कारण यह भी रहा कि इस छोटे से शहर के एक नामी स्कूल को बतौर प्रिंसिपल वह 2 वर्ष बहुत बेहतर तरीके से संचालित कर चुकी हैं। ऐसे में, भला तुम्हारे लिए शिक्षा और पाठशाला दोनों के चुनाव को लेकर उनके निर्णय से असहमति कैसे रखता? इसलिए तुम्हारा दाखिला तीन साल की उम्र में वहीं कराया गया है, जहाँ तुम्हारी माता जी की इच्छा रही है। वहाँ शिक्षा जगत की ताजा बयार के हिसाब से नए कलेवर में बच्चों को खेल-खेल में सिखाने-पढ़ाने की अद्भुत व्यवस्था है। बहुत कुछ नया सा है, जो मुझे भी ठीक लगा। कुछ दिन तुम्हें बिना बोझ वाले बस्ते के स्कूल जाना है। खेलना-कूदना, धमाल-मस्ती और मौज यही पढ़ाई है। इस हिसाब से मुझे भी ये बेहतर लगता है। तुमने 2 दिन स्कूल में खूब मस्ती की है, उसके फोटो वीडियो हमारे पास स्कूल से आए हैं। बहुत सी छोटी-छोटी स्पोर्ट एक्टिविटी और फन गेम्स ने तुम्हारी घर की धमाचौकड़ी वाली प्रैक्टिस को और हवा दी है। इसी कारण स्कूल से लौटते ही तुमने दुगनी ऊर्जा से घर पर उधम मचाया है। तुम्हारी माँ भी इन दिनों ऑफिशियल टूर से लौटकर सतना में ही हैं, तो वे इसका आनन्द उठा रही हैं।

प्रिय मुनिया

मेरे बच्चे, मैं सच कहूँ तो तुम्हारे लिए स्कूल खोजने से लेकर तुम्हें भेजने तक की सारी व्यवस्था और तैयारी में तुम्हारी माँ का ही परिश्रम है। क्योंकि मैं तो अपने व्यापार व्यवस्था की उलझनों से ही मुक्त नहीं हो पाता हूँ। आलम यह है कि तुम्हें पहले दिन सुबह-सुबह स्कूल छोड़ने का मोह होते हुए भी मैं ये नहीं कर सका हूँ। अब तो तुम्हें लाने-ले जाने के लिए भी स्कूल बस आ रही है। वह इसलिए कि पहले दिन तुम्हारी माँ और मौसी ही तुम्हें स्कूल छोड़ने गई थीं, लेकिन तुम उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थी, उनके साथ ही उलटे पाँव घर लौटने की जिद पकड़ ली थी। बड़ी मुश्किल से वे दोनों तुम्हें खेल में उलझाकर वहाँ से घर लौट सकीं। ऐसे में तुम्हें बस से आने-जाने की व्यवस्था की गई है, ताकि दूसरे बच्चों के साथ आने-जाने से हमारे मोह से ज्यादा स्कूल और वहाँ के नए अनुभवों से तुम्हारा जुड़ाव हो सके। अब तुम धीरे-धीरे समझ सकोगी कि माँ-बाप और परिजनों के बाद गुरु से ही वास्तव में पहला रिश्ता बनता है। शेष अन्य रिश्ते उसके बाद ही आते और बनते हैं। बहरहाल एक और महत्वपूर्ण घटना तुम्हारे पाठशाला जाने के पहले दिन घटी थी, जिसे देखकर पाठशाला के प्रति तुम्हारे उत्साह और उमंग का पता चलता है। यूँ भी कह सकते हैं कि शुरुआत में तो पाठशाला जाने के लिए तुम्हारे अन्दर गजब उत्साह दिख रहा है। तुम्हें सुबह कच्ची नींद से भी उठाया जाता है, तो तुम न-नुकुर करते-करते कुछ देर में उठ ही जाती हो। अन्यथा इस वसन्त पंचमी को जब तुम्हारा पाठशाला प्रवेश पाटी-पूजन संस्कार के साथ माँ सरस्वती की आराधना से प्रारम्भ हुआ था, तब स्थितियाँ इसके उलट थीं। तुम्हें बड़ी मुश्किल से सुबह-सुबह उठाकर पाठशाला ले जाया गया था।

प्रिय मुनिया

मेरी जान, मै अब इस पत्र में उस घटना का जिक्र कर रहा हूँ, ताकि तुम्हारे पाठशाला के पहले दिन की यादगार के तौर पर ये इतिहास में दर्ज हो सके। क्योंकि मुझे तो इस पत्र में तुम्हारी स्कूल सम्बन्धी जिज्ञासाओं को ही शान्त करना है, ताकि भविष्य में जब भी तुम ये पत्र पढ़ो, तो तुम्हें अपने स्कूल के पहले दिन से जुड़ी घटनाएँ और स्कूल का दृश्य आँख बन्द करते ही दिखने लगें। मेरे शब्दों के सहारे तुम स्कूल के दरवाजे पर पहुँच सको, मैं बस यही चाहता हूँ। इसलिए सुनो कि तुम्हें पहले दिन स्कूल छोड़ने के लिए ले जाते वक्त तुम्हारी मौसी सीढ़ियों से फिसल गईं, उन्हें कमर में चोट आई। लेकिन मौसी के फिसलते ही ठीक उस वक्त तुम्हारी प्रतिक्रिया कुछ अलग ही थी। अमूमन किसी की पीड़ा में तुम बड़ा द्रवित हो उठती हो, त्वरित दवा खोजना और देना शुरू कर देती हो। लेकिन उस दिन तुमने स्कूल जाने के उत्साह में अपनी मुम्मू यानि मौसी से सिर्फ स्कूल जाने की जिद की थी। हमेशा की तरह उसके दर्द में शामिल नहीं हुई, तो हुआ भी वही पेन स्प्रे कर तुम्हारी मौसी को अपना दर्द भूलकर तुम्हें स्कूल लेकर जाना पड़ा। साथ में तुम्हारी माँ भी थी, जो ये देखकर हतप्रभ थी कि यज्ञा ने पहली बार मुम्मू के दर्द की परवा नहीं की। तुम्हें इस पत्र में यह भी बता देता हूँ कि तुम बचपन से ही अपनी मौसी को मुम्मू कहकर बुलाती रही हो, ये शब्द तुमने अपनी तोतली जबान से कैसे, क्यों और कब गढ़ा? ये हम लोग अब तक नहीं समझ पाए हैं। मुम्मू से तुम्हारा अपार प्रेम भी किसी से छिपा नहीं है। इसके बावजूद उस दिन का घटनाक्रम बताता है कि स्कूल जाने में तुम्हारी दिलचस्पी इतनी ज्यादा थी कि तुमने दर्द और दवा को लेकर अपना प्यार भरा झूठमूठ वाला इलाज का उपक्रम भी नहीं दोहराया। यूँ तो तुम अभी दर्द और मरहम समझने के लिए बहुत छोटी हो, लेकिन तुम बहुत संवेदनशील हो, उतनी ही भावनात्मक हो। इसलिए किसी के रोने पर तुम्हारे आँसू न बहें, ये बेमानी है।

प्रिय मुनिया

मेरी बच्ची, मैं बस ये घटित हुई छोटी-छोटी घटनाएं लिखकर तुम्हारा बचपन इन चिट्ठियों में उकेर रहा हूँ। ताकि ये दर्ज हो सके कि आगे चलकर तुम्हारे व्यक्तित्व का स्वरूप चाहे जो भी हो। तुम्हारा बचपन कितनी मासूमियत, लाड-प्यार, शरारत, परवाह और प्रेम से पगा है। तुम्हारे आस-पास कितने प्यार करने वाले इंसान रहे हैं और तुमने उन्हें कितना प्रेम दिया है। तुम्हारी नन्हीं हथेलियों का स्पर्श कितना जादुई है। वास्तव में तुम्हारा हमारी जिन्दगी में होना कितना सुन्दर है कि तुम हमारी दुनिया का वो रंग बनी, जिसके इर्द-गिर्द ही जिन्दगी की सारी रंगत है। ये पत्र बस तुम्हें यही बताने और जताने की कोशिश हैं कि तुम्हारे होने का अर्थ सिर्फ तुम्हारा होना नहीं, बल्कि कुछ साँसों की डोर का भी तुमसे बँधा होना है। इन पत्रों को कभी भी शिकायती पत्रों की तरह मत याद रखना कि तुम्हारी सारी शरारतें यहाँ दर्ज की गई हैं। बस, इन्हें अपनी दुनिया में जिन्दा और ताजा रखना कि तुम्हारे पिता ने इन पत्रों के सहारे अपने प्रेम को साझा किया था। मैं बस कुछ और चन्द बातें लिखकर इस पत्र को विराम दूँगा। क्योंकि घड़ी की सुई रात के 3 बजाने जा रही है और ये महाकौशल एक्सप्रेस मऊरानीपुर तक पहुँच चुकी है। अगले पत्र में तुम्हारी कुछ नई शरारतों को लिखने की कोशिश करूँगा, जिसे पढ़कर तुम्हें पता चलेगा कि वास्तव में बच्चे माँ-बाप को कितना इमोशनल ब्लैकमेल कर सकते हैं। तुम्हारी शिक्षा के आरम्भ को लेकर बस यही आशा करता हूँ कि तुम्हारा ये स्कूल बस एक पाठशाला नहीं, बल्कि जिन्दगी की पाठशाला का पहला कदम साबित हो। शिक्षा को लेकर यहाँ का नवाचार विद्यार्थियों को नए पंख दे, उनकी उम्मीदों, उमंगों और उत्साह को नई उड़ान दे। प्राथमिक शिक्षा नन्हें मन की कोरी स्लेटों पर बड़े खूबसूरत रंग उकेर सकती है, जीवन के कैनवास को और रंगबिरंगा कर सकती है। मैं ईश्वर से कामना करता हूँ कि तुम्हारा मन जितना सुन्दर है, तुम बेहतर शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन की इबारत भी उतनी ही सुन्दर लिख सको। तुम्हें जीवन की पाठशाला का यह पहला कदम मुबारक हो बिटवा।

शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार मेरी गिलहरी। 💝

-तुम्हारा पिता, 4 अप्रैल 2025 

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(दीपक मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गाँव जसो में जन्मे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में ‘मास्टर ऑफ जर्नलिज्म’ (एमजे) में स्नातकोत्तर किया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में कार्यरत रहे। साथ में लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए रचनात्मक लेखन भी किया। इन दिनों स्वतंत्र लेखन करते हैं। बीते 15 सालों से शहर-दर-शहर भटकने के बाद फिलवक्त गाँव को जी रहे हैं। बस, वहीं अपनी अनुभितियों को शब्दों के सहारे उकेर दिया करते हैं। उन उकेरी हुई अनुभूतियों काे #अपनीडिजिटलडायरी के साथ साझा करते हैं, ताकि वे #डायरी के पाठकों तक भी पहुँचें। ये लेख उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।)

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अपनी बेटी के नाम दीपक की पिछली चिटि्ठयाँ 

7- बेटी के नाम सातवीं पाती : हमारी चुप्पियाँ तुम्हारे इंतजार में हैं, तुम जल्दी आना….।
6 – बेटी के नाम छठवीं पाती : तुम्हारी मुस्कान हर दर्द भुला देती है
5- बेटी के नाम पाँचवीं पाती : तुम्हारे साथ बीता हर पल सुनहरा है
4. बेटी के नाम चौथी पाती : तुम्हारा होना जीवन की सबसे ख़ूबसूरत रंगत है 
3.  एक पिता की बेटी के नाम तीसरी पाती : तुम्हारा रोना हमारी आँखों से छलकेगा 
2. एक पिता की बेटी के नाम दूसरी पाती….मैं तुम्हें प्रेम की मिल्कियत सौंप जाऊँगा 
1. प्रिय मुनिया, मेरी लाडो, आगे समाचार यह है कि…

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