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सरकारों से नहीं होगा गौ-संरक्षण, वे उसे ‘राज्यमाता’ बनाएँ, या उसके लिए अभयारण्य!

टीम डायरी

महाराष्ट्र सरकार ने अभी, 30 सितम्बर को एक चर्चित फ़ैसला लिया। इसके तहत महाराष्ट्र में देसी गाय को ‘राज्यमाता’ का दर्ज़ा दे दिया गया। यही नहीं, देसी गायों के संरक्षण के लिए राज्य की तमाम गौशालाओं को 50 रुपए प्रतिदिन की वित्तीय मदद देने का भी निर्णय लिया है। यानि महीने में लगभग 1500 रुपए की मदद। सरकार का तर्क है कि देसी गाय किसानों के लिए वरदान होती है। इसीलिए उसे ‘राज्यमाता’ का दर्ज़ा दिया है। और चूँकि गौशालाओं के पास इन गायों के संरक्षण के लिए पैसे की कमी रहती है। इसी कारण उन्हें वित्तीय मदद दी जा रही है। जबकि सरकार ने जो बात नहीं बताई वह ये है कि महाराष्ट्र में दो महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। उसे देखते हुए सत्ताधारी दलों को ऐसे कुछ काम करने ज़रूरी लगते हैं। सो, वे कर रहे हैं। 

अलबत्ता, इस तरह के क़दमों से एक प्रश्न ज़रूर जुड़ता है कि क्या इन सरकारी निर्णयों से सच में गौ-संरक्षण हो पाएगा? तो ज़वाब है, ‘नहीं’। सरकारों से ‘गौ-संरक्षण’ नहीं हो पाएगा। क्योंकि ‘गौ-संरक्षण’ सरकारें बनाने वाले राजनैतिक दलों की प्राथमिकता ही नहीं होता। उनकी प्राथमिकता होती है, चुनाव और मत। वरना, उनके सिर्फ़ ऐसे फ़ैसले ही सुर्ख़ियाँ नहीं बनते, बल्कि कहीं किसी राज्य से गौ-संरक्षण के कार्य में ‘सरकारी सफलताओं’ की कहानियाँ भी सामने आतीं! पर अब तक तो कहीं किसी राज्य से ऐसे समाचार निकले नहीं। हाँ, महाराष्ट्र जैसे ही निर्णयों के कुछ पुराने उदाहरण ज़रूर सामने हैं। मसलन, मध्य प्रदेश का ही उदाहरण है।

सितम्बर का ही महीना था। साल 2017 का था। मध्य प्रदेश सरकार ने फ़ैसला किया था कि प्रदेश में अब गायों के अभयारण्य बनाए जाएँगे। इन्हें एक तरह की बड़ी गौशालाएँ ही कहा जा सकता है। इनमें सिर्फ़ स्वस्थ ही नहीं, छोड़ी गईं, बीमार और वृद्ध गायों को रखने का भी प्रावधान हुआ। साथ ही, पास में चारागाह और जंगल क्षेत्र भी चिह्नित कर इन गायों के लिए आरक्षित किया गया। बताते हैं कि ऐसा एक ‘अभयारण्य’ बनाने में 30-35 करोड़ रुपए ख़र्च आया। फिर, मध्य प्रदेश सरकार ने ही चार-साढ़ेचार पहले ‘गौ-मंत्रिमंडल’ बनाने का भी अनोखा फ़ैसला किया। हालाँकि ग़ौर करें कि ये फ़ैसले राज्य विधानसभा चुनावों (2018 और 2023) के आस-पास हुए। 

और इन ‘सरकारी-चुनावी फ़ैसलों’ का असर क्या हुआ? इसका उत्तर कुछ समय पहले मीडिया की सुर्ख़यों में आया था। इनमें बताया गया था कि मध्य प्रदेश की सड़कों पर खुले घूमते गौवंश की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे वे ख़ास तौर पर रात के वक़्त दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। मर जाते हैं। रायसेन, विदिशा, सीहोर, देवास, राजगढ़ जैसे भोपाल के आस-पास के क्षेत्रों में ही इसी बरसात के दौरान महीनेभर में क़रीब 93 गौ-वंश की दुर्घटनाओं में जान जा गई है। जबकि 293 से अधिक घायल हुए हैं। प्रदेश का इसी से अंदाज़ लग सकता है। ऐसे ही कारणों से शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द गौ-संरक्षण के लिए देशभर में ‘गौ-ध्वज स्थापना यात्रा’ निकाल रहे हैं। 

हालाँकि इस तरह के तमाम चर्चित क़दमों के बीच ही एक ‘कमचर्चित’ मामला भी पिछले दिनों सामने आया। यह मामला भी कोई ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि इसे ‘गौ-संरक्षण का आदर्श’ कहा जा सकता है। मध्य प्रदेश के ही ग्वालियर का मामला है। यहाँ नगर निगम की गौशाला है। लालटिपारा गौशाला कहते हैं इसे। इस गौशाला में 10,000 की संख्या में गौवंश का संरक्षण होता है। लगभग 100 टन गोबर निकलता है। इसे देखते हुए यहाँ सीएनजी संयंत्र लगाया गया। इससे सीएनजी बनाकर बेची जाएगी और गौशाला को लगभग सात करोड़ रुपए की सालाना आमदनी होगी। इस संयंत्र का उद्घाटन दो अक्टूबर को प्रधानमंत्री ने किया है। गौशाला से गौकाष्ठ (गोबर से बनने वाली), जैविक खाद, दूध, दुग्ध उत्पाद, आदि भी बिक्री के लिए पहले से ही उपलब्ध रहता है। 

अलबत्ता, इस गौशाला की ख़ास बात जानते हैं, क्या है? इसको नगरनिगम के अधिकारी-कर्मचारी नहीं चलाते। बल्कि वे पीछे रहते हैं। सामने से इस गौशाला का संचालन और प्रबन्धन सन्त समाज करता है। सही मायने में गौसंरक्षण की मंशा रखने वालों के लिए गौवंश की संरक्षा से जुड़े सभी प्रश्नों का ज़वाब यही है।

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Neelesh Dwivedi

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