प्रतीकात्मक तस्वीर
ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा दिल्ली से
महँगाई और ग़रीबी सिर्फ़ भारत की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की बड़ी समस्या है। लेकिन आज मैं इन दोनों में से किसी भी विषय में बात नहीं करने वाली, क्योंकि मेरा विषय कुछ और ही है। वह है हमारी और इंग्लैंड वालों की सोच में फ़र्क। अस्ल में, अभी हाल में ही लन्दन की एक मशहूर-ओ-मारूफ़ मार्केट के बारे में पढ़ने पर पता ये चला कि वहाँ व्यापारियों का उद्देशय सिर्फ़ पैसा कमाना नहीं, बल्कि अपने देशवासियों को खुश रखना भी है।
अक़्सर भारत के बाज़ारों में हमें देखने को मिलता है कि त्यौहारों का मौसम आते ही सभी समान दोगुने दामों पर मिलने शुरू हो जाते हैं। व्यापारियों की सोच सिर्फ़ मुनाफ़े पर टिकी रह जाती है। यहाँ दीवाली आते ही मिठाइयाँ और पटाखे, होली पर रंग और खिलौने, ईद पर कपड़े, वगैरा सब महँगे हो जाते हैं। हर त्यौहार पर कुछ न कुछ महँगा कर दिया जाता है। क्याेंकि दुकानदारों के लिए ये त्यौहार सिर्फ़ कमाई का एक जरिया हैं।
लेकिन इंग्लैंड के व्यापारियों की सोच हमसे कहीं आगे है। वहाँ व्यापारी क्रिसमस और ईस्टर जैसे ईसाईयों के मुख्य त्यौहारों पर अपनी दुकान के समानों को सस्ते दामों पर बेचना शुरू कर देते हैं। उनकी दलील होती है कि सिर्फ़ अमीर ही क्यों, बल्कि ग़रीब भी हर त्यौहार खुशी से मिल-जुल कर मनाए।
मेरा ख़्याल है, हमें भी इंग्लैंड के व्यापारियों से सीखना चाहिए। क्योंकि अगर हमें अपने देश से ग़रीबी को मिटाना है, तो यह समझना पड़ेगा कि जब तक हम अपनी सोच को नहीं बदलेंगे, हमारा देश भी नहीं बदल सकता। हमें सिर्फ़ मुनाफ़े से उठकर सोचना होगा। हमें इस चीज़ का ध्यान रखना होगा कि जो हमसे सामान ख़रीद रहा है, उसमें हमें इतना ज्यादा मुनाफ़ा देने की हैसियत है भी या नहीं। त्यौहार सिर्फ़ अमीरों का ही नहीं, बल्कि हर गरीब का भी होता है। हमें उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए जो महँगी ख़रीद से पहले सौ बार सोचते हैं।
भारत तभी तरक्की करेगा, जब हर भारतवासी प्रगति करेगा। अपने-अपने फ़ायदे के बारे में सोचने से हर किसी का नुक़सान ही होना तय है। आज जब इस दुनिया में हर मुल्क हर सेना के बिच जंग छिड़ी हुई है, ऐसे में हमें ख़ुद को अन्दर से मज़बूत बनाना होगा। एक ऐसा देश बनाना होगा, जहाँ हर कोई एक-दूसरे के सुख-दुख को मिल-बाँट के समझे। जहाँ कोई परेशान इंसान अपनी परेशानी व्यक्त करने से पहले हिचकिचाना छोड़ दे।
तभी तो हम वो मशहूर मिसरा कह सकेंगे…..
“हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं।
रंग-रूप वेश-भाषा चाहे अनेक हैं।।”
जय हिन्द
——
(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 11वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
——-
ज़ीनत के पिछले 10 लेख
11- भरोसा रखिए… वह क़िस्मत लिखता है, तो वही उसे बदल भी सकता है
10. जिसने अपने लक्ष्य समझ लिया, उसने जीवन को समझ लिया, पर उस लक्ष्य को समझें कैसे?
9- क्या स्कूली बच्चों को पानी पीने तक का अधिकार नहीं?
8- शिक्षक वो अज़ीम शख़्सियत है, जो हमेशा हमें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है
7- हो सके तो अपनी दिनचर्या में ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का प्रयोग करें, ताकि….
6- खुद को पहचानिए, ताकि आप खुद ही खुद से महरूम न रह जाएँ
5- अनाज की बरबादी : मैं अपने सवाल का जवाब तलाशते-तलाशते रुआसी हो उठती हूँ
4- लड़कियों को भी खुले आसमान में उड़ने का हक है, हम उनसे ये हक नहीं छीन सकते
3- उड़ान भरने का वक्त आ गया है, अब हमें निकलना होगा समाज की हथकड़ियाँ तोड़कर
2- दूसरे का साथ देने से ही कर्म हमारा साथ देंगे
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More