प्रतीकात्मक तस्वीर
नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
चन्द ‘लापरवाह लोग’ + करोड़ों ‘बेपरवाह लोग’’ = विनाश!
जी हाँ, दुनियाभर में हर तरह के विनाश का अगर कोई सदियों से चला आ रहा जाँचा-परखा सूत्र (फॉर्मूला) है, तो वह यही है। इस बात को पुख़्ता करने वाले बिल्कुल ताज़ातरीन उदाहरण मौज़ूद हैं। लेकिन उससे पहले इस सूत्र में मौज़ूद दो मिलते-जुलते शब्दों के अर्थ के बीच बारीक अन्तर को समझना ज़रूरी है।
पहला शब्द है- ‘लापरवाह’। अंग्रेजी के इसके लिए उपयुक्त शब्द है ‘Negligent’ (नेग्लीजेन्ट)। मतलब- ऐसे लोग, जो जानबूझकर अपने सरोकारों, अपनी ज़िम्मेदारियों की परवा नहीं करते। लगातार ऐसे काम करते रहते हैं, जिससे उन्हें तात्कालिक फ़ायदा होता रहे। बदले में किसी अन्य का कितना भी नुकसान होता हो, तो जो जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे लाेगों की मान्यता होती है- ‘अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता।’
इसके बाद दूसरा शब्द है- ‘बेपरवाह’। अंग्रेजी में इसके सटीक अर्थ वाला शब्द है- ‘Careless’ (केयरलेस)। इस श्रेणी के लोग जाने-समझे ग़ैरज़िम्मेदार तो नहीं कहे जा सकते। लेकिन ये अपनी अल्हड़मस्ती में अक़्सर ही ग़ैरज़िम्मेदारी भरे काम करते रहते हैं। हिन्दी में एक कहावत कही जाती है, ‘मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में’। सही मायने में यह कहावत ‘बेपरवाह’ लोगों की सोच का पुख्ता तौर पर प्रतिनिधित्त्व करती है।
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