ए. जयजीत, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 5/11/2021
अब मार्केट में देवी-देवताओं के नाम वाले बम और पटाखे तो नहीं हैं, लेकिन नेताओं के नाम वाले पटाखों की भरमार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा है कि पटाखे पॉल्यूशन-फ्री होने चाहिए। यानि उनसे किसी तरह का प्रदूषण न फैले। लेकिन इन नेता छाप पटाखों पर ये दिशा-निर्देश लागू नहीं होते। इसलिए आम आदमी को मशविरा दिया जाता है कि इनका इस्तेमाल सोच-विचारकर ही करें।
मोदी बम : पिछले कई सालों से यह बम सबसे ज़्यादा बिकने वाला साबित हुआ है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत तो यही है कि यह न केवल ज़ोरदार आवाज़ के साथ फटता है, बल्कि फटने के बाद भी लगातार आवाज़ करता रहता है। यह उस समय भी आवाज़ करता है, जब ज़रूरत नहीं होती।
राहुल बम : यह बहुत ही मज़ेदार बम है। जब इसे जलाएँगे तब हो सकता है, यह न फटे। इसलिए यह अक्सर फुस्सी बम साबित होता है। लेकिन सावधान रहें। यह अचानक बगैर जलाए भी कभी भी फट सकता है। ऐसा कई बार हुआ है कि आप हाथ में राहुल बम को रखकर घूम रहे हों और अचानक फटकर पंजे को जख्मी कर गया। वैसे यह ज़्यादातर ट्विटर पर फटने का आभास ही देता है।
सिद्धू रॉकेट : ऐसा कई बार होता है कि आपने कोई रॉकेट जलाया और वह अनगाइडेड (दिशाहीन) मिसाइल की तरह कहीं भी घुस गया। कभी-कभार तो जलाने वाले की लुंगी तक में भी घुसने के मामले सामने आए हैं। सिद्धू रॉकेट के साथ भी ऐसे ख़तरे बने हुए हैं। इसीलिए सिद्धू छाप रॉकेट के ऊपर वैधानिक चेतावनी लिखी हुई है : यह रॉकेट ऊपर जाने के बज़ाय आपके नीचे भी जा सकता है। इसे अपने जोख़िम पर ही छोड़ें।
केजरी तड़तड़ी : यह बेहद मज़ेदार है। पिट-पिट करके जलती है। पहले तो यह जलते-जलते ‘मोदी-मोदी’ की आवाज़ करती थी। दिल्ली में इसे काफी पसंद किया जाता है। केजरी तड़तड़ी के निर्माताओं को उम्मीद है कि अब पंजाब और थोड़ी बहुत गोवा से भी इसकी अच्छी-खासी माँग आ सकती है।
चन्नी टिकली : इन दिनों रुपए-पैसों में चवन्नी और पटाखों में टिकलियाँ मिलनी बन्द हो गई हैं। लेकिन अगर बात नेताओं की हो तो वहाँ चवन्नियों और टिकलियों दोनों की भरमार होती है। राजनीति के पटाखा बाज़ार में जो नई टिकली आई है, उसका नाम है ‘चन्नी टिकली’। वैसे तो टिकलियाँ वाकई टिकलियाँ ही होती हैं, लेकिन इन दिनों पंजाब में यह बड़े-बड़े बमों के साथ होड़ कर रही है।
मनमोहन बम : कुछ बम बेआवाज़ होते हैं। फटने के बाद भी आवाज़ नहीं करते। यह वैसा ही है। मज़ेदार बात यह है कि यह बम धुआँ भी नहीं करता। इसलिए यह बाकी बमों की तुलना में थोड़ा कम प्रदूषण फैलाता है। हालाँकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि इसका असर नहीं होता। फटने के बाद इसका कंपन तो दूर तक महसूस किया जाता है। वैसे राजनीति के पटाखा बाज़ार में ऐसे बमों का चलन अब कम हो चला है।
(यह महज़ एक हल्का-फुल्का व्यंग्य है। इसका मक़सद किसी माननीय नेता की अवमानना करना क़तई नहीं है।)
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(ए. जयजीत देश के चर्चित ख़बरी व्यंग्यकार हैं। उन्होंने #अपनीडिजिटलडायरी के आग्रह पर ख़ास तौर पर अपने व्यंग्य लेख डायरी के पाठकों के उपलब्ध कराने पर सहमति दी है। वह भी बिना कोई पारिश्रमिक लिए। इसके लिए पूरी डायरी टीम उनकी आभारी है।)