Delhi-slums

जी-20 के लिए चमचमाती दिल्ली की पर्दों से ढँकी स्याह हक़ीक़त!

ज़ीनत ज़ैदी, शाहदरा, दिल्ली

मानव मनोविज्ञान के अनुसार हर चमचमाती चीज हमें अपनी तरफ़ आकर्षित करने में कारग़र होती है। लेकिन क्या ये ज़रूरी है कि उसके पीछे का हक़ीक़त उतनी ही चमकीली हो? नहीं न? दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन से जुड़े दो पहलू कुछ इसी तरह के हैं।

इस वक़्त अगर हम दिल्ली पर नज़र डालें तो देखने मिलेगा कि शहर दुलहन की तरह सजा हुआ है। प्रगति मैदान के आस-पास के इलाक़े तो ख़ूब शान-ओ-शौक़त से सजे ही हुए हैं। पुरानी दिल्ली के रास्तों को देखें तो वहाँ भी जगह-जगह जी-20 का असर देखने मिलेगा। रंगीन रोशनी से जी-20 का चिह्न और रंग-बिरंगे पानी के फ़व्वारे। सबने मिलकर दिल्ली की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाने में क़सर नहीं छोड़ी है। लेकिन दूसरी तरफ़, दिल्ली की झुग्गियों और बस्तियों वाले इलाक़ों से यह चमक-दमक ग़ायब है। बल्कि उन्हें तो छिपाने की मशक़्क़त की गई है। इसके लिए हमारी सरकार ने हरे-सफ़ेद पर्दों का इंतिज़ाम किया है। बस्तियों को ढँकने के लिए।

इसका सीधा मतलब तो यही हुआ कि हम अपने देश की ग़रीबी को ज़ाहिर करने में शर्म महसूस करते हैं। बावज़ूद कि हमारे विदेशी अतिथि इन हालात से पहले ही अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं। फिर भी उन्हें सोने-चाँदी की थालियों में खाना परोस कर हम क्या साबित कर रहे हैं? और क्या इसमें कुछ क़ामयाब भी हो रहे हैं? ज़वाब वही बेहतर जानें, जिन्होंने ये इंतिज़ामात किए हैं। लेकिन हम, एक आम इंसान की तरह, यही समझ पाते हैं कि झुग्गी-बस्तियों को छिपाने की जगह सरकार इनकी बेहतरी, इन्हें चमकाने पर ध्यान देती तो बेहतर होता।

दिल्ली में न जाने कितनी झुग्गी-बस्तियाँ हैं। वहाँ रह रहे लोगों को दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं। उन बस्तियों का वातावरण इतना ज़हरीला है कि वहाँ रहना हर वक़्त ख़तरनाक होता है। वहाँ हद से ज्यादा प्रदूषण और गन्दगी होती है। वहाँ की हर गली बरसों से उखड़ी पड़ी हैं। गटरों की सफ़ाई सालों से नहीं हुई है। उन झुग्गियों की ख़बर लेने वाला कोई नहीं। क्या यह असलियत रंगीन पर्दे डालने से बदल जाएगी? और नहीं, तो क्या यह बेहतर न होता कि हम पर्दे डालने के बजाय इन इलाक़ों के हालात बदलने को तरज़ीह देते? इन सवालों के ज़वाब तलाशने चाहिए।

याद रखिएगा, भारत तभी आगे बढ़ेगा, जब देश का हर नागरिक तरक़्क़ी करेगा। हमें मिलकर आगे बढ़ना है। इस देश को आगे बढ़ाना है। लिहाज़ा, बेहतर हो कि हम इस देश की ग़रीबी दूर करने में अपना योगदान दें। इस झूठी चमक के बहकावे से दूर रहेंl 

जय हिन्द। 
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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से एक हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 11वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं। उन्होंने यह आर्टिकल सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन पर पोस्ट किया है।)
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