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गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 20/1/2022

गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली ऐसी त्रासदी नहीं है, जिसमें सियासत की साजिश, झूठ, फरेब, धोखे और बेकसूर लोगों की बेहिसाब मौतों के किस्से शुमार हों। रियासत के रूप में इसकी पैदाइश ऐसी ही त्रासदियों के बीच हुई है। यह कहानी शुरू होती है, अफगानिस्तान से एक महात्वाकांक्षी नौजवान के इस इलाके में कदम रखते ही। बेहतर कल और जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तलाश में वह यहां आया था। बीस साल का वह नौजवान सबसे पहले दिल्ली के पास जलालाबाद में टिका। औरंगजेब की मौत के बाद मुगलिया सल्तनत में मची अफरातफरी और छीना झपटी के उस पागल दौर में उसकी तकदीर उसे मौजूदा मध्यप्रदेश की सीमाओं में ले आई। विदिशा से भोपाल के बीच बैरसिया के पास मंगलगढ़ नाम की छोटी सी रियासत में। उसने यहां नौकरी की। राजा आनंदसिंह सोलंकी की मौत के बाद रियासत का मुख्तार हो गया। जल्दी ही बैरसिया उसके कब्जे में था। निगाहें भोपाल पर। यह सन् 1708-09 का वाकया है। 

भोपाल को हथियाने के पहले होली के एक बड़े जलसे का जिक्र इतिहास की किताबों में आता है। इस जलसे में धोखे से कई बेकसूर मगर बेवकूफ और नशे में धुत राजपूत जागीरदारों को कत्ल किया गया था। इन्हें दोस्त ने खातिरदारी के लिए बुलाया था। फिर ऐसा ही कारनामा दोस्त ने जगदीशपुर में दिखाया। इस घटना की अगली सुबह जगदीशपुर इस्लामनगर में तब्दील हो गया और स्थानीय लोगों के खून से लाल हुई बाणगंगा हलाली नदी में। साजिशों, धोखों और खूनखराबे के बारे में शाहजहां बेगम और शहरयार खान ने अपनी किताबों में लिखा है। ये दोनों शख्सियतें नवाब खानदान से ही ताल्लुक रखती हैं। बेगम तो खुद नवाब रहीं। निरंजन वर्मा ने दिल दहला देने वाली इन घटनाओं पर तीस साल पहले एक किताब लिखी थी- ‘बाणगंगा से हलाली।’ 

भोपाल के एनपी त्रिपाठी का बचपन बैरसिया व इस्लामनगर के बीच बीता है। वे व्यावसायिक काम से इस्लामनगर जाते रहे हैं। वे बताते हैं कि गांव के सामान्य लोगों को भी इन घटनाओं के विवरण अब तक याद हैं। जबकि इन्होंने बेगम या खान की किताबें नहीं पढ़ीं। लोगों को बखूबी मालूम है कि जगदीशपुर पर कब्जे के बाद रानी कमलापति का भोपाल एक रियासत के रूप में देश के नक्शे पर किन हालातों में उभरा। 56 साल की उम्र में 1728 में इंतकाल के साथ ही दोस्त मोहम्मद अपने कारनामों की ऐसी ही दास्तानें पीछे छोड़ गया। उसके बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान ने हुकूमत संभाली। 

सियासत की दोस्ती यारी का यह सिलसिला भोपाल को 1947 में आजादी का जश्न दिखाते हुए दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात तक लेकर आया, जहां इस खूबसूरत शहर ने एक बार फिर अपने आगोश में लाशों के ढेर देखे। इस बार भी अपनों की अनदेखियां, सियासत की साजिशें, धोखे और फरेब उसके हिस्से में आए। तब के किरदारों में दोस्त मोहम्मद के अलावा अफगानिस्तान के उसके कबीले के वे साथी और रिश्तेदार शामिल थे, जिन्हें वह अपनी जड़ें जमाने के बाद उस जमाने में खासतौर से लेकर आया था। इस वक्त के किरदार चौबीस घंटे हमारी आंखों के सामने ही रहे हैं। भोपाल से लेकर दिल्ली तक नाम बदले, चेहरे बदले। सियासत की हकीकतें जस की तस हैं, जो सत्ता की ताकत को हासिल करने के लिए कुछ भी दांव पर लगा सकती है। गैस हादसा भोपाल के इतिहास का अकेला हादसा नहीं है, जिसे हजारों निर्दोष नागरिकों ने भोगा। 
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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