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सरकार रोकने का बन्दोबस्त कर रही है, मगर पढ़ने को विदेश जाने वाले बच्चे रुकेंगे क्या?

निकेश जैन, इंदौर, मध्य प्रदेश से

साल 2022 में हिन्दुस्तान से क़रीब 6.5 लाख बच्चे पढ़ने के लिए विदेश चले गए। यह संख्या बहुत जल्द 10 लाख या उससे भी ज़्यादा जो जाए तो अचरज नहीं। मगर इस संख्या का एक और मतलब जानते हैं क्या है? इसका अर्थ है कि हर साल क़रीब 65 बिलियन डॉलर (लगभग 5,363 अरब रुपए) की रकम हिन्दुस्तान से बाहर जा रही है। और दिनों-दिन देश से बाहर जाने वाली यह रकम बढ़ रही है।

तो ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर भारतीय बच्चे पढ़ने के लिए देश से बाहर जा ही क्यों रहे हैं? कई कारण गिनाए जाते हैं इसके। मसलन- भारत में अच्छे शिक्षण संस्थानों में दाख़िले के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा, देश में अच्छे उच्च-शिक्षण संस्थानों का पर्याप्त न होना, देश से बाहर जाने, विदेशी संस्कृति में काम करने और वहीं बस जाने की इच्छा, आदि। इसके अलावा भी कई कारण बताए जाते हैं। 

हिन्दुस्तान की सरकार भी इस स्थिति से अच्छी तरह वाक़िफ़ है। इसीलिए उसने एक अनूठी पहल शुरू की है। उसने विदेशी शिक्षण संस्थानों के सामने पेशकश की है कि वे भारत में अपने सुदूर-शिक्षण केन्द्र (Distance Learning Centre) खोलें। सरकार का फ़ैसला सही दिशा में माना जा रहा है। इससे भारतीय छात्र-छात्राओं को निश्चित रूप से काफ़ी फ़ायदा भी होने वाला है। कैसे? समझिए। 

देश में अब भी बड़ी संख्या में ऐसे विद्यार्थी हैं और हर साल नए जुड़ रहे हैं, जो अच्छी उच्च-शिक्षा तो हासिल करना चाहते हैं, लेकिन विदेश नहीं जा सकते। इसके कारण हैं। दरअस्ल, अमेरिका और कनाडा में ही चार साल के डिग्री/डिप्लोमा कोर्स की पढ़ाई का ख़र्च 1.5 से 2 करोड़ रुपए तक बैठता है। पढ़ाई के लिए इतनी रकम जुटा पाना सबके वश की बात नहीं। यहीं विदेशी संस्थानों के भारतीय-डीएलसी काम आ सकते हैं। जहाँ चार साल में अगर पढ़ाई पर 50 से 80 लाख रुपए भी ख़र्च हुए तब भी राहत होगी।

इतना ही नहीं, विदेशी संस्थानों द्वारा भारत में डीएलसी खोलने से भारतीय उच्च-शिक्षण संस्थानों के सामने भी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। उन्हें गुणवत्ता सुधारने के लिए क़दम उठाने होंगे। इससे देश के आर्थिक, कारोबारी, व्यावसायिक क्षेत्र को भी फ़ायदा होगा। क्योंकि उसे तैयार कुशल-कामग़ार मिलने लगेंगे। मगर लाख टके का सवाल अब भी…..

कि क्या विदेशी संस्थान अपने डीएलसी भारत में स्थापित करेंगे? 

और क्या इससे विदेश जाने वाले बच्चे रुकेंगे?   
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निकेश का मूल लेख 

Nearly 6.5 lakh Indian students joined foreign universities in 2022 and this number is expected to reach a million+ very soon.

This translates to roughly $65 billion of money flowing outside India every year and increasing!

So what are the reasons students are opting for foreign universities?

Reasons are plenty:

1. Tough competition for good institutes in India.
2. Lack of good higher education institutes in India
3. Aspirations to go aboard – first education then desire to work in a foreign culture and settle down

May be few more…

So, does the recent decision from government where they allowed Foreign Higher Education Institutions (FHEI) to establish satellite campuses in India, help?

Difficult to say but one thing is for sure- the decision is a step in the right direction.

The opportunity for FHEI is huge in India because there are so many students who want better education but can’t afford to travel abroad.

Today a US or Canada 4 years program cost anything between 1.5 Cr to 2 Cr which not everyone can afford.

So even if the cost comes down to say INR 50 to 80 Lakhs for a 4 years program, there will be many takers in India.

The FHEI will offer better pay to deserving teachers and there may be more people from Industry who might take up those jobs. In general FHEI will bring the competition and will improve the level of higher education in India.

But the million dollar question is – will FHEI be interested in opening their campuses in India?

What do you think?
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(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने यह लेख लिंक्डइन पर लिखा है।) 
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