दीपक शर्मा, नीमराना, राजस्थान से, 23/04/2021
डायरी के इस पन्ने पर पड़ी तारीख अपने आप में सारी कहानी कहती है। यह ऐसी तारीख है, जब देश में कोरोना के मामले पहली बार सारे आँकड़ों को पार कर गए हैं। पिछले साल इन्हीं दिनों अमेरिका बिलबिला उठा था। यह वह समय था जब वहाँ एक दिन में तीन लाख मामले सामने आए थे।
अब हमारे यहाँ हालात उस महाशक्ति से भी बदतर हो गए हैं। अभी दो दिन पहले यानी 21 तारीख को देश में 24 घंटे में पहली बार तीन लाख 14 हजार नए मामले सामने आए। ये कल के अख़बारों का शीर्षक था।
लेकिन अब सुबह की शुरुआत अख़बारों की हेडलाइन देखने से नहीं होती। सवेरे आँख खुलती है तो किसी न किसी वॉट्सऐप ग्रुप में ख़बर मिलती है, फलाँ-फलाँ की स्थिति बिगड़ रही है। अस्पताल में बिस्तर का इन्तज़ाम करना है। बिस्तर की ये जद्दोजहद सवेरे से शुरू होती है और आधी रात को आँख लगने से ठीक पहले तक जारी रहती है। पर बिस्तर नहीं ही मिल पाता है।
हालात ये हैं कि मरीज खुद उठकर किसी न किसी अस्पताल में पहुँच जाता है। वहाँ कुछ घंटों के लिए आपातकालीन सेवाएँ दी जाती हैं और वहाँ से रवाना कर दिया जाता है। वह अपने तमाम संसाधन इस्तेमाल कर डालता है, एक अदद बिस्तर के लिए।
दिल्ली से मरीज अब राजस्थान-हरियाणा के पास के शहरों का रुख कर रहे हैं। क्योंकि दिल्ली में मरीजों के लिए जगह नहीं है। सरकार के दावे ख़त्म होने का नाम नहीं लेते। दिल्ली सरकार ने कुछ अस्पतालों को कोरोना के इलाज के लिए समर्पित किया है। उनमें बिस्तरों की स्थिति बताने वाली एक वेबसाइट भी बनाई है। लेकिन यह भी फरेब है।
अलबत्ता तो अस्पतालों में खाली बिस्तरों की संख्या शून्य है। फिर भी यह वेबसाइट जिन अस्पतालों में खाली बिस्तर दिखाती है, वहाँ फ़ोन करने पर जवाब मिलता है, “सॉरी, यहाँ कोई बेड नहीं है। हमने सरकार को सूचित कर दिया है, लेकिन वहाँ स्थिति अपडेट नहीं की गई है।”
या फिर जवाब मिलता है, “सॉरी, हमारे यहाँ ऑक्सीजन नहीं है। आप कहीं और ले जाइए।” अब ऑक्सीजन के ट्रक लूट लेने की ख़बरें सामने आ रही हैं। अस्पतालों में ऑक्सिजन के बिना लोग दम तोड़ रहे हैं। इनमें 35 साल के युवाओं से लेकर बुज़ुर्ग तक शामिल हैं।
देश के कई शहरों में श्मशानों में चिताएँ नहीं बुझ रही हैं। लोग अन्तिम संस्कार के लिए लाइन में लग रहे हैं। कब्रिस्तानों में जगह नहीं है। लोग अस्पताल के बाहर ही इलाज के इन्तज़ार में दम तोड़ रहे हैं। मौत ताँडव कर रही है।
मैं यही सोच रहा हूँ कि जब राम मन्दिर के लिए चन्दा इकट्ठा हो सकता है, तो उसी चन्दे से लोगों की जान क्यों नहीं बचाई जा सकती? राम के लिए तो प्रजा सर्वोपरि थी। फिर उसी राम के नाम पर इकट्ठे किए चन्दे से आज तक तमाम सुविधाओं से लैस कोरोना उपचार केन्द्र क्यों नहीं बनाए जा सके? मैं प्रार्थना करता हूँ, हे राम! अब तेरे राज्य में ये सब सहा नहीं जाता।
अब शायद समय आ गया है कि इलाज के इन्तज़ार में कतार में खड़े लोगों की उम्र को देखते हुए डॉक्टर अपने जीवन का सबसे मुश्किल निर्णय लें। किसी बुज़ुर्ग को वेंटिलेटर से उतारें और कतार में खड़े किसी युवा को लगाएँ। यह बेहद मुश्किल है, लेकिन मुझे कुछ सूझता नहीं। किसी को सूझता है तो बताए। दुःख है तो बाँट लें। डायरी में लिख लें। मैं लिखकर थोड़ा हल्का महसूस कर रहा हूँ। क्योंकि मैंने अपनी मनोस्थिति साझा कर ली है।
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(राजस्थान में एक निजी वाहन कम्पनी में काम करने वाले दीपक डायरी के नियमित पाठक हैं। इसलिए #अपनीडिजिटलडायरी के सक्रिय भागीदार भी हैं। उन्होंने अपनी यह मनोस्थिति एक रिकॉर्डिंग के ज़रिए भेजी थी। टीम टायरी ने उनके आग्रह को सहर्ष स्वीकार करते हुए यहाँ लिखकर दर्ज किया है।)
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