Pune Bada Paav

छोटे कारोबारी कैसे स्थापित कारोबारियों को टक्कर दे रहे हैं, पढ़िए अस्ल कहानी!

निकेश जैन, इंदौर मध्य प्रदेश

पिछले महीने मैं पुणे गया हुआ था। अपने कारोबार के सिलसिले में मुझे वहाँ किसी से मिलना था। सुबह 10 बजे बैठक शुरू होने वाली थी, तो उससे पहले मैंने सोचा कि थोड़ा नाश्ता कर लिया जाए। लिहाज़ा, मैं दक्षिण भारतीय व्यंजन परोसने वाले एक रेस्त्राँ की ओर चल दिया। ‘साँभर’ नाम का यह रेस्त्राँ उस दफ़्तर के पास ही था, जहाँ मेरी बैठक होने वाली थी।

मैं जब वहाँ पहुँचा, तो मैंने देखा कि उस रेस्त्राँ से महज 10 मीटर की दूरी पर सड़क के किनारे एक आदमी ठेले पर मेंडू वड़ा और इडली बेच रहा है। इतना ही नहीं, मैंने देखा कि उसके ठेले पर आईटी पार्क के कई सॉफ्टवेयर पेशेवर झुंड बनाकर खड़े हैं। साफ़ था कि इन सबका नाश्ता रेस्त्राँ के बजाय वहीं हो रहा था।

तब मैंने सोचा कि मैं भी वहीं खा लेता हूँ।

मुझे वहाँ नाश्ता करने में लगभग 20 मिनट लगे। इस दौरान मेरे देखते-देखते ज़्यादा नहीं तो 50 और लोग वहाँ से नाश्ता कर के जा ही चुके थे।

यही नहीं, मैं जब नाश्ता कर चुका तो उसके बाद मुझे एक और झटका। मैं खा-पीकर जब अपनी प्लेट कचरेदान में रखने गया तो देखा कि वहाँ स्टील की लगभग 500 प्लेटें पहले से बिना धोई हुई पड़ी थीं!! मतलब उस समय तक इतने लोग उस दुकान से नाश्ता कर के जा चुके थे और उस दुकानदार के पास उनकी प्लेटें धोने की भी फुर्सत नहीं थी। इसलिए कि अब भी ग्राहकों की क़तार जस की तस लगी थी।

दुकानदार को इतनी भीड़ का अंदाज़ पहले से था शायद। इसीलिए उसने पर्याप्त संख्या में साफ-सुथरी प्लेटों का इंतिज़ाम कर रखा था। उनमें वह हर नए ग्राहक को उनकी पसंद के व्यंजन परोस रहा था। सो, अब यहाँ से मेरे दिमाग़ ने गुणा-भाग शुरू कर दिया। अनुमान लगाने के लिए यह आदमी दिनभर में कितना कमा लेता होगा।

तो मान लीजिए, ग्राहकों ने उसे ज़्यादा नहीं तो 50 रुपए का ही औसत भुगतान किया। इस हिसाब से अब तक के सिर्फ़ 500 ग्राहकों के ही हो गए कुल 25,000 रुपए।

यहाँ मुझे यह तो नहीं पता कि उसने सुबह कितने बजे अपनी दुकान खोली। लेकिन अब तक सुबह के 9.30 बज चुके थे और वह व्यक्ति 25,000 रुपए का कारोबार कर चुका था। जबकि अब भी उसके ठेले पर ग्राहकों की क़तार कम नहीं हुई थी। लिहाज़ा, मैंने मान लिया कि दोपहर 12 बजे तक 800 लोग तो उसके यहाँ से खा-पीकर चले ही जाते होंगे। यानी 50 रुपए प्रतिग्राहक के हिसाब से तब तक हो गए 40,000 रुपए।

खाने-पीने की चीजों में आम तौर पर 50% तक का मुनाफ़ा होता है। इसमें से उसकी अन्य मदों में लगने वाली लागत और घटा दीजिए। जैसे- कुछ कच्चा माल लाया होगा। एकाध सहयोगी कर्मचारी को भी भुगतान करता होगा, आदि। तब भी मान सकते हैं कि वह रोज कम से कम 10,000 रुपए का मुनाफ़ा तो निकालता ही है।

तो क्या यह कम है? बिल्कुल नहीं!!

और बात इतनी ही नहीं है। ये ठेले वाला जिन ग्राहकों को अपनी तरफ़ खींच रहा है उनमें से अधिकांश वे हैं, जो उसकी ग़ैरमौज़ूदगी में उस रेस्त्राँ में जाते, जिसका मैंने शुरू में ज़िक्र किया था। दूसरे शब्दों में कहें तो ठेले वाले ने सफलतापूर्वक उस रेस्त्राँ के संभावित कारोबार में से अपने लिए मुनाफ़े की संभावनाएँ निकाल लीं।

यानि इस कहानी का सबक क्या? अच्छे उत्पाद बनाइए, और उन्हें बेचने के लिए सही जगह ढूँढिए। आप बड़े स्थापित कारोबारियों को भी टक्कर दे सकते हैं।

मानते हैं कि नहीं?

निकेश का मूल लेख 

How does a startup or a small business give tough competition to an established business? Here is a real example:

Last month I was visiting a client in Pune for a 10am meeting. I wanted to have my breakfast before the meeting so decided to visit a South Indian restaurant by name “Sambhar” which was right across the road from client’s office.

There I saw a small road side vendor who was selling mendu vada and idli just about 10 meters from the entrance of this restaurant and to my surprise he was surrounded by many software employees from that IT park who were having their breakfast at this small vendor’s shop instead of that restaurant.

I also decided to eat there.

In that 20 minutes I saw at least 50 more customers who had their breakfast there.

When I was done, I kept my steel plate in the dustbin bag and again to my surprise I saw around 500 used plates already there!! This guy was not cleaning plates so the pile was just increasing. Apparently he brought enough clean plates for the day.

Some quick math to calculate his revenue:

On an average a customer would pay around Rs 50. That multiplied by 500 is Rs. 25000!!

I don’t know what time he started but by 9:30am he had done 25K business and his shop was still full of customers. Assuming he closes at 12pm and serves around 800 clients then his revenue for the day would be around Rs. 40,000!

Food typically has 50% margins so even after deducting input cost and worker cost this guy is making a profit of at least 10,000 per day!!

Not bad at all!

Moreover, all the business he was attracting was supposed to be of that South Indian restaurant!
Moral of the story – build good product, find the right fit and then you can compete with even an established business!

Agree? 
——–
(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने यह लेख लिंक्डइन पर लिखा है।)
——
निकेश के पिछले 10 लेख

13 – सिंगापुर वरिष्ठ कर्मचारियों को पढ़ने के लिए फिर यूनिवर्सिटी भेज रहा है और हम?
12 – जल संकट का हल छठवीं कक्षा की किताब में, कम से कम उसे ही पढ़ लें!
11- ड्रोन दीदी : भारत में ‘ड्रोन क्रान्ति’ की अगली असली वाहक! 
10 – बेंगलुरू में साल के छह महीने पानी बरसता है, फिर भी जल संकट क्यों?
9- अंग्रेजी से हमारा मोह : हम अब भी ग़ुलाम मानसिकता से बाहर नहीं आए हैं!
8- भारत 2047 में अमेरिका से कहेगा- सुनो दोस्त, अब हम बराबर! पर कैसे? ज़वाब इधर…
7 – जब हमारे माता-पिता को हमारी ज़रूरत हो, हमें उनके साथ होना चाहिए…
6- सरकार रोकने का बन्दोबस्त कर रही है, मगर पढ़ने को विदेश जाने वाले बच्चे रुकेंगे क्या?
5. स्वास्थ्य सेवाओं के मामले हमारा देश सच में, अमेरिका से बेहतर ही है
4. शिक्षा, आगे चलकर मेरे जीवन में किस तरह काम आने वाली है?

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *