अनुज राज पाठक, बरेली उत्तर प्रदेश से, 26/4/2022
मानव के मन में विचारों को श्रृंखला जन्म लेती है। और विविध विचारों के जन्म का कारण उसका परिवेश होता है। हम जैसे परिवेश में रहते हैं, वही हमारे ज्ञान जगत को प्रभावित करता है। हमारे जीवन में व्यवहार का कारण बनता है। ज्ञान जिस प्रकार का होगा, हम वैसा ही व्यवहार करेंगे। हमारे व्यवहार का स्पष्ट साक्षात्कार हमारी वाणी के माध्यम से होता है। जो विचार मन में है, वही विचार वाणी से दूसरों तक प्रेषित करते रहते हैं।
हम सभी ने एक कहानी सुनी होगी, उसे हम आज फिर से याद कर लेते हैं…
बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में छह नेत्रहीन आदमी रहते थे। एक दिन गाँव वालों ने उन्हें बताया, “अरे, आज गाँव में हाथी आया है। उन्होंने आज तक बस, हाथियों के बारे में सुना था पर कभी छू कर महसूस नहीं किया था। उन्होंने निश्चय किया कि भले हम हाथी को देख नहीं सकते, पर आज हम सब चलकर उसे महसूस तो कर सकते हैं न? और फिर वे सब उस जगह की तरफ बढ़ चले जहाँ हाथी आया हुआ था। सभी ने हाथी को छूना शुरू किया।
”मैं समझ गया, हाथी एक खम्भे की तरह होता है,” पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा।
“अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है,” दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा।
“मैं बताता हूँ, ये तो पेड़ के तने की तरह है,” तीसरे व्यक्ति ने सूँड पकड़ते हुए कहा।
”तुम लोग क्या बात कर रहे हो, हाथी एक बड़े पंखे की तरह होता है,” चौथे व्यक्ति ने कान छूते हुए सभी को समझाया।
“नहीं-नहीं, ये तो एक दीवार की तरह है,” पाँचवें व्यक्ति ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा।
”ऐसा नहीं है, हाथी तो एक कठोर नली की तरह है,” छठे व्यक्ति ने अपनी बात रखी।
और फिर सभी आपस में बहस करने लगे। खुद को सही साबित करने में लग गए। उनकी बहस तेज होती गई और ऐसा लगने लगा, मानो वे आपस में मार-पीट न कर बैठें।
तभी वहाँ से एक बुद्धिमान व्यक्ति गुजर रहे थे। उन्होंने रुककर उन लोगों से पूछा क्या बात है? तुम सब आपस में झगड़ क्यों रहे हो?
हम यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि आखिर हाथी दिखता कैसा है? उन्होंने उत्तर दिया। और फिर बारी-बारी से उन्होंने अपनी बात उनको समझाई।
बुद्धिमान व्यक्ति ने सभी की बात शांति से सुनी और बोले, “तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो। तुम्हारे वर्णन में अन्तर इसलिए है, क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग-अलग भाग छुए हैं। पर देखा जाए तो तुम लोगों ने जो कुछ भी बताया, वो सभी बातें हाथी के वर्णन के लिए सही हैं।”
अच्छा! ऐसा है। सभी ने एक साथ उत्तर दिया। उसके बाद कोई विवाद नहीं हुआ और सभी खुश हो गए कि वे सभी सच कह रहे थे।
हमारी स्थिति इन्हीं नेत्रहीन व्यक्तियों जैसी होती है। हम अपनी समझ, अपने अनुभव से केवल वही कह रहे होते हैं, जितना हम सत्य का हिस्सा जानते हैं।
इस सन्दर्भ में जैन आचार्यों की दृष्टि अत्यंत विशाल है। उनका कहना है हम केवल सत्यांश को जानकर बहस करते रहते हैं। अपितु सत्य तो समग्र होता है। जब समग्र जान लेंगे तो विवाद होगा ही नहीं।
मेरे एक अग्रज प्राय: चर्चा में इसी बात को कहते हैं कि आपने सुना होगा, सिक्के के दो पहलू होते हैं। हम हाँ में उत्तर देते हैं। लेकिन तभी अग्रज कहते हैं कि नहीं, यही तो दृष्टिभ्रम है। वे कहते हैं कि सिक्के के कई पहलू होते हैं। मोटे तौर पर तीन तो दिख ही रहे होते हैं। इनमें एक, जो हमने देखा। दूसरा, जो सामने वाले ने देखा। और तीसरा, जो कि वह समग्रता में है। लेकिन हम दो या एक को देखकर ही काम चला लेते हैं और विवाद में उलझ जाते हैं।
जैन आचार्य हमें इस विवाद से बचाने के लिए अपने सिद्धांतों में अनेकानेक दृष्टियों की समझ विकसित करने की दृष्टि देते हैं। आगे हम देखेंगे कैसे वह अनन्त दृष्टि से परिचय कराते हैं।
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 54वीं कड़ी है।)
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अनुज भाई
आप के लेख मुझे बहुत अच्छे लगे। ऐसे ही प्रयास करते रहें
और जैन आचार्य जी के अनेकानेक दृष्टि विकसित करने वाले सिध्दांतो पर थोड़ा विस्तार से बताये
भगिनी आप के उत्साहवर्धन हेतु कृतज्ञ हूं🙏 प्रयास रहेगा कुछ अच्छा आप सब के समक्ष उपस्थित कर सकूं