अपने उपकरणों की ‘रिपेयरिंग का अधिकार’ भी है हमें, इस बारे में कितना जानते हैं हम?

टीम डायरी

अपने यंत्रों (मोबाइल फोन जैसी डिवाइस), उपकरणों (फ्रिज, कूलर, टीवी, आदि), या मशीनरी (मोटरबाइक, कार, ट्रैक्टर, पानी का पंप वग़ैरा) की ‘रिपेयरिंग के अधिकार’ के बारे में हम कितने जागरूक हैं? निश्चित ही इस बारे में बहुत से लोगों का उत्तर हो सकता है, “बिल्कुल नहीं”। या फिर कुछ लोग उल्टा सवाल भी पूछ सकते हैं, “रिपेयरिंग का भी कोई अधिकार है क्या”? इस क़िस्म का सवाल भी जाइज़ ही है। क्योंकि मीडिया और सोशल मीडिया की प्राथमिकता में निश्चित रूप से इस तरह की सूचनाओं का प्रसार है नहीं। या फिर प्राथमिकताओं के क्रम के ऐसी सूचनाओं के प्रसार का मामला बहुत पीछे है। इतना कि उनसे जुड़ी खानापूर्ति ही हो रहे, तो काफ़ी है। 

बहरहाल, ध्यान दीजिएगा कि अब ‘रिपेयरिंग के अधिकार’ का भी हिन्दुस्तान में कानूनन उसी तरह बंदोबस्त कर दिया गया है, जिस तरह ‘शिक्षा का अधिकार’, ‘सूचना का अधिकार’ आदि है। और भारत सरकार ने सिर्फ़ कानूनी बंदोबस्त ही नहीं किया है, बल्कि बाक़ायदा एक पोर्टल भी बनवाया है। उसका नाम है, ‘राइट टु रिपेयर पोर्टल इंडिया’। लिंक ये रही कोष्ठक में (https://righttorepairindia.gov.in/about-us.php)। इस पर तमाम जानकारियाँ उपलब्ध हैं। यह भी बताया गया है कि अभी किन-किन क्षेत्रों के उत्पाद इस कानून के दायरे में आ चुके हैं। 

अब इस सबका मतलब क्या हुआ? ये कि हम जब कोई उत्पाद ख़रीदते हैं तो हमें उसके साथ कुछ वारंटी मिलती है। इसमें बताया जाता है कि छह महीने, सालभर, या दो-पाँच साल की अवधि के भीतर अगर अमुक कलपुर्जे़ में कोई ख़राबी आती है, तो उसे कम्पनी बदलकर देगी। मुफ़्त में। लेकिन इसके साथ तमाम शर्तें भी होती हैं। उन शर्तों को पूरा न करें, तो ख़राब कलपुर्ज़ा बदलने के एवज़ में कम्पनी पूरा पैसा वसूल लेती है। बल्कि कम्पनी के ब्रांडेड कलपुर्ज़े के नाम पर बाज़ार में मौज़ूद वैसे ही कलपुर्ज़े की तुलना में ग्राहक से कुछ ज़्यादा ही वसूली हो जाती है। 

इस बीच, अगर किसी को कम्पनी का कलपुर्ज़ा महँगा लगे, उसकी सर्विस महँगी लगे, और वॉरंटी की अवधि में किसी और जगह से वह अपने उपकरण, मशीनरी आदि को ठीक कराना चाहे, तो उसे डराया जाता है। कह देते है कि अगर ऐसी किसी कोशिश के दौरान उपकरण, मशीनरी, यंत्र आदि में ख़राबी आ गई तो कम्पनी की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी। फिर पूरा का पूरा उत्पाद ही बदलना पड़ेगा। उसका पूरा पैसा देना पड़ेगा। इस चक्कर में ग्राहक फँसा जाता है। लेकिन अब नहीं फँसेगा। सरकार ने ‘राइट टु रिपेयर’ के ज़रिए यही प्रबन्ध किया है।

मतलब अब कहीं से भी उपकरण, मशीनरी आदि को रिपेयर कराएँ, वॉरंटी ख़त्म नहीं होगी। और इसका दूसरा मतलब ये भी है कि तमाम कम्पनियाँ अब उपभोक्ता को ब्रांडेड सर्विस देने के नाम पर उससे ऊटपटाँग शुल्क नहीं ले सकेंगी। बल्कि उन्हें प्रतिस्पर्धी कीमतों पर सर्विस देनी होगी। नहीं देंगी, तो उपभोक्ता बाहर किसी से भी अपना उत्पाद न सिर्फ़ ठीक कराएगा, बल्कि भविष्य में वॉरंटी-अवधि के सभी लाभ भी लेता रहेगा। ठप्पे से। 

तो हुई न यह हम सबके ‘सरोकार’ वाली ‘सूचना’? यही वजह है कि #अपनीडिजिटलडायरी पर इन दोनों ही श्रेणियों में यह दर्ज़ है। #राइटटुरिपेयर।

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Neelesh Dwivedi

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