नानाजी देशमुख शरदोत्सव के रूप में अपना जन्मदिन मनाने को तैयार कैसे हुए?

नन्दिता पाठक, दिल्ली से, 28/10/2020

महाराष्ट्र के कडोली गाँव (हिंगोली जिला) में 11 अक्टूबर 1916 को जब नानाजी देशमुख का जन्म हुआ, उस दिन शरद पूर्णिमा थी। कहा जाता है, शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से विभूषित होता है। पूर्णता को प्राप्त होता है और अपने इस रूप में वह पूरी सृष्टि में अमृत बाँटता है। यह निश्चित रूप से इस तिथि का ही संयोग था कि नानाजी देशमुख का व्यक्तित्तव भी समय के साथ विविध कलाओं (गुणों) से विभूषित हुआ। समय के साथ-साथ पूर्णिमा के चाँद की तरह पूर्णता को प्राप्त होता गया और फिर पूरे समाज को उन्होंने सेवा का अमृत बाँटा। 

नानाजी अपने साथ रहने और मिलने-जुलने वालों का विशेष ख्याल रखा करते थे। उनकी चिन्ता करते थे। सबकी पसन्द, नापसन्द का भी ध्यान रखते थे। किसी के घर में कोई उत्सव, त्योहार, आदि हो और वह उनके आसपास है तो उसे बुलाकर मिठाई खिलाते थे। उपहार स्वरूप जो भी उनके मन में होता, देते थे। कार्यकर्ता दूर है, तो उसे पत्र लिखकर शुभकामनाएँ और उपहार भेज दिया करते थे। उपहार पाँच से 50,000 रुपए तक कुछ भी हो सकता था। कोई मापदंड नहीं था। कोई भेदभाव नहीं था। यह उनके मन की बात होती थी। वे सबका उत्साह रखते थे। 

ऐसे ही 1994 की शरद पूर्णिमा की बात है। तब तक नानाजी देशमुख ने मध्य प्रदेश-उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित चित्रकूट को अपनी सामाजिक गतिविधियों के मुख्य केन्द्र की तरह निश्चित कर लिया था। चित्रकूट धार्मिक आस्था का केन्द्र तो पहले से ही है। वहाँ हर तीज-त्यौहार को मेले जैसा माहौल होता है। शरद पूर्णिमा पर भी रहता ही है। उस रात तो पूरे चित्रकूट के मठ-मन्दिरों आदि में खीर प्रसाद बाँटा जाता है। इतना कि आसपास के गाँवों तक में दूध की कमी हो जाती है। लाखों श्रद्धालु उस अवसर पर मन्दाकिनी में स्नान करने और कामदगिरि की परिक्रमा के लिए आया करते हैं। ऐसे ही ग्रामोदय विश्वविद्यालय के एक कार्यकर्ता के पालक भी उस रोज चित्रकूट आए थे। उनका भी जन्मदिन शरद पूर्णिमा को था। लिहाज़ा अपनी परम्परा के अनुसार नानाजी ने उन्हें सम्मान के साथ कक्ष में बुलाया। उन्हें सम्मानित किया। तभी उन्होंने नानाजी से कहा, “आज आप का भी जन्मदिन है। हम सब लोग आपके जन्मदिन को उत्सव के रूप में मनाना चाहते हैं।” उनका मन्तव्य भाँपकर नानाजी ने तुरन्त ही प्रस्ताव सिरे से ख़ारिज़ कर दिया। कहने लगे, “हमारे जन्मदिन को उत्सव के रूप में नहीं मनाना चाहिए। यह परम्परा अच्छी नहीं है। क्योंकि हम सभी का जन्मदिन उत्सव के रूप में नहीं मना सकते। हमने देखा है, नेताओं के जन्मदिन मनाए जाते हैं। बड़े-बड़े पोस्टर लगते हैं। फिर कोई अस्पताल में फल बाँटते दिखता है। कोई तुला-दान करते हुए। पैसे का अपव्यय करते हैं इस तरह। स्वयं के लिए स्वयं ही प्रचार-प्रसार करते हैं। ये समाज के लिए अच्छा नहीं है। अपने समाज में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्हें अपना जन्मदिन का पता तक नहीं है। वे दिनभर मेहनत करते हैं। तब अपने परिवार के लिए दो समय का भोजन जुटा पाते हैं। मेरा मानना है कि जन्मदिन के मौके पर हम सबको माता-पिता, पूज्य संत-महात्माओं का आशीर्वाद लेना चाहिए। अपनी जन्मभूमि, मातृभूमि की सेवा के निमित्त कुछ कार्य करना चाहिए। उसे ही अपने कार्य की प्रेरणा बनानी चाहिए।”

नानाजी की ये बात सुनकर कार्यकर्ता जान गए कि वे अपने जन्मदिन पर किसी आयोजन की अनुमति नहीं देंगे। इससे कार्यकर्ता थोड़े दुखी भी हुए। तब कार्यकर्ताओं का मन रखने के लिए नानाजी के उस समय निकट सहयोगी रहे डॉक्टर भरत पाठक आगे आए। उन्होंने नानाजी के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया और एक पर्चे पर शुभकामना सन्देश लिखकर उन्हें दिया। इस पर लिखा था, “तन समर्पित, मन समर्पित, जीवन समर्पित”। यह सन्देश पढ़कर नानाजी बहुत सन्तुष्ट हुए। उन्होंने भरत जी और उनके साथ कक्ष में मौज़ूद अन्य सभी कार्यकर्ताओं को खूब आशीर्वाद दिया। तभी भरत जी ने उचित अवसर देखकर नानाजी से कहा, “ऐसा हो सकता है क्या कि आप के जन्मदिन को उत्सव के रूप में न मनाकर हम मन्दाकिनी के तट पर शरदोत्सव मनाएँ। इससे शरद पूर्णिमा के मेले में आने वाले लोगों का मनोरंजन हो सकेगा। उनकी कुछ सेवा भी सम्भव हो सकेगी। हमारे सभी कार्यकर्ता भी खुश होंगे।” भरत जी की बात सुनकर नानाजी मुस्कुरा दिए। ‘मौनं स्वीकृति लक्षणं’। स्वीकृति मिल चुकी थी। भरत जी का दिया पर्चा नानाजी ने अपने बैग में रख लिया। उसे वे फिर जीवन भर अपने पास रखे रहे। अक्सर उस पर्चे को निकालकर वे देख लिया करते थे। तो ऐसे चित्रकूट में शरदोत्सव के आयोजन की भूमिका बनी।

फिर भरत जी ने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर पूरे उत्सव-आयोजन की रूपरेखा तैयार की। मेले में आने वालों के लिए व्यवस्थित रूप से खीर-प्रसाद का वितरण। मौके के लिए प्राथामिक चिकित्सा सुविधा। अभावग्रस्त लोगों के लिए रुकने, ठहरने, खाने-पीने की व्यवस्था। मन्दाकिनी के घाटों की साफ-सफाई, साज-सज्जा की व्यवस्था। संत-महात्माओं के साथ मन्दाकिनी आरती का इन्तज़ाम। एक विशिष्ट स्थल पर गायन, वादन, नृत्य आदि मनोरंजक कार्यक्रमों का बन्दोबस्त। सभी कुछ देखा-समझा गया और शुरुआत हो गई। शुरू में एक दिन का आयोजन हुआ करता था। इसमें स्थानीय या आस-पड़ोस के क्षेत्रीय कलाकार सेवाभाव से प्रस्तुतियाँ दिया करते थे। उसके एवज़ में वे कोई मानधन या शुल्क भी नहीं लेते थे। कार्यकर्ताओं से दो-दो रुपए का आर्थिक योगदान लिया जाता था। इस राशि से बाहर से आने वाले कलाकारों को यात्रा खर्च, उपहार आदि दिया जाता था। नगरवासियों से दूध, चीनी, चावल, कच्चा मेवा आदि जुटा लिया जाता था। इससे खीर बन जाया करती थी। स्थानीय केवट-निषाद अपनी श्रद्धा से नदी के घाट पर मंच बना देते थे। मन्दिर के पुजारी मन्दाकिनी आरती का पूरा इन्तज़ाम देख लेते थे। इस तरह प्रारम्भ में पूरी तरह ‘जनसहयोग से जनपर्व’ के तौर पर यह अयोजन शुरू हुआ था। 

नानाजी को भी धीरे-धीरे इस आयोजन और इसमें मिल रहे जनसहयोग को देखकर आनन्द आने लगा। वे इसमें रुचि लेने लगे। अपने स्तर पर तैयारियों का जायज़ लेने लगे। पूछने लगे, “इस वर्ष क्या होने वाला है? कौन से कलाकार आने वाले हैं? खीर कितने लोगों के लिए बन रही है?” आदि। अगे चलकर जनता और कलाकारों का सहयोग बढ़ा, उनकी माँग बढ़ी तो आयोजन दो दिन का कर दिया गया। इसके बाद सरकार ने सहयोग किया तो त्रि-दिवसीय शरदोत्सव मनाया जाने लगा। इसमें पहले दिन संत-महात्माओं के आशीर्वाद के बाद स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुतियाँ होती थीं। दूसरे दिन देशभर से आए लोक-कलाकार प्रस्तुति देते थे। तीसरे दिन देश के सुविख्यात गायकों की प्रस्तुति होती थी। कालान्तर में इस आयोजन में रवीन्द्र जैन, अनुराधा पौडवाल, सुरेश वाडकर, मनोज तिवारी, उदित नारायण, नितिन मुकेश, मालिनी अवस्थी, कैलाश खेर जैसे कई कलाकारों ने प्रस्तुतियाँ दीं। 

लगातार 20-22 वर्षों तक चित्रकूट में शरदोत्सव के आयोजन का सिलसिला चला। लेकिन इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के चलते यह आयोजन मैदानी स्तर पर नहीं हो पा रहा है। इसीलिए नानाजी पर श्रद्धा रखने वाले, उन्हे चाहने वाले लोगों ने तय किया है कि शरद पूर्णिमा पर इस बार ऑनलाइन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए। दुनियाभर से नानाजी के प्रशंसकों को इसमें जोड़ा जाए क्योंकि भाव वही है, ‘जनसहयोग से जनपर्व’। इस बार शरद पूर्णिमा पर नानाजी की 104वीं जयन्ती है। तारीख़ 30 अक्टूबर की पड़ रही है और समय शाम को छह से आठ बजे के बीच का निश्चित हुआ है। ‘अनहद-2020’ के नाम से यह आयोजन हो रहा है। मुख्य आयोजक की भूमिका में ‘टुवार्ड्स बैटर इंडिया’ (Towards Better India) नाम का संगठन है। इसमें मुख्य अतिथि जाने-माने गायक कैलाश खेर हैं। अध्यक्षता नानाजी के सहयोगी रह चुके पुणे के नितिन साबले जी कर रहे हैं।
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(डॉक्टर नन्दिता पाठक समाजसेवी हैं। भारत रत्न नानाजी देशमुख के साथ उनकी नज़दीकी सहयोगी के तौर पर चित्रकूट में काम कर चुकी हैं। वर्तमान में भारत सरकार के ‘स्वच्छ भारत’ और ‘निर्मल गंगा’ अभियानों से जुड़ी हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के लिए अक्सर लेख भी भेजती हैं।)

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