मैं 70-80 के दशक का बचपन हूँ…

अवनीश सक्सेना, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 19/3/2021

ये लाइनें किसने लिखीं, पता नहीं। लेकिन जिसने भी लिखीं, क्या खूब और कितनी सच्ची लिखी हैं। दिल से लिखी हैं। सीधे दिल तक पहुँचती हैं। बीते दिनों सामाजिक कहे जाने वाले माध्यमों (Social Media) से होते हुए मुझ तक ये लाइनें पहुँचीं, तो मुझे लगा इसे #अपनीडिजिटलडायरी पर भी दर्ज़ करना चाहिए। इसीलिए लिखने वाले के प्रति ह्रदय से आभार व्यक्त करते हुए इन लाइनों का यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ, जिन्होंने चन्द मिनटों में ही मेरा और मेरे जैसे न जाने कितने लोगों का बचपन आँखों में तैरा दिया होगा।

मैं 70-80 के दशक का बचपन हूँ।

मैंने एनर्जी के लिए रुहआफ्जा से लेकर रेड बुल तक का सफर तय किया है।

कच्चे खपरैल वाले घर से वेलफर्निश्ड फ्लैट तक का सफर तय किया है।

एक्का ताँगा, जीप पे पीछे लटकने से लेकर लक्जरी कार तक का सफर तय किया है।

ढेबरी से लेकर एलईडी बल्ब तक का सफर तय किया है।

अजय जाडेजा से रवीन्द्र जाडेजा तक का सफर तय किया है।

चकती लगे हुए हाफ पैंट से ब्रान्डेड जीन्स तक का सफर तक किया है।

लैंडलाइन वाले फोन से स्मार्टफोन तक का सफर तय किया है।

मै वो समय हूँ जब तरबूज बहुत ही बड़ा और गोलाकार होता था। पर अब लम्बा और छोटा हो गया है।

मैंने चाचा चौधरी से लेकर सपना चौधरी तक का सफर तय किया है।

मैंने बालों में सरसों के तेल से लेकर जैल तक का सफर तय किया है।

चूल्हे की रोटी में लगी राख़ का भी स्वाद लिया है।

मैंने दूरदर्शन से लेकर 500 निजी चैनल तक का सफर तय किया है।

मैंने खट्टे-मीठे बेरों से लेकर कीवी तक का सफर तय किया है।

सन्तरे की गोली से किंडर जॉय तक का सफर तय किया है।

आज की पीढ़ी का दम तोड़ता हुआ बचपन मैं देख रहा हूँ। लेकिन आज की पीढ़ी मेरे समय की कल्पना भी नहीं कर सकती।

मैंने ब्लैक एंड व्हाइट समय में रंगीन और गरीबी में बहुत अमीर बचपन जिया है!

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(अवनीश पेशे से वकील हैं। ज़मीन-जायदाद से जुड़े मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं।)

 

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