संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से, 17/4/2021
कहानियाँ रास्तों में बिखरी पड़ी थीं। कविताएँ पेड़ों पर लदी रहती थीं। धूल के हर कण में चलते-फिरते चरित्र नज़र आते थे। उसे लगता कि रचना बहुत सरल है और इसी राह पर चलते-चलते वह एक दिन इतना विपुल रच देगा कि शायद संसार में किसी से पढ़ना सम्भव ही नहीं हो पाएगा। पहले का रचा-बुना गया सब व्यर्थ हो जाएगा।
वह उन अभिन्न पलों का साक्षी रहा है, जो जीवन ने उसे भरपूर मात्रा में दिए; जिन्हें वह सहेजते हुए ही उम्र के उस पड़ाव पर आ गया कि सब कुछ विरल हो गया। मानो, इस यात्रा में उसे इतना मिला कि उसकी झोली भरते-भरते खाली हो गया। एकदम विरक्त और विलोपित।
हर जगह जो मिला, जैसा मिला, वह सम्मोहित हुआ। एक महीन तन्तु से उसने नेह का तागा हर एक से जोड़ा। आज स्मृतियों की लम्बी कतार में पलटकर देखता है। देखता है, सन् सत्तर से 2020 तक की लम्बी श्रृंखला में कीड़े-मकोड़े-सी लम्बी कतार है। वह हर एक के पास जाता है। मिलता है और आगे बढ़ जाता है।
यहाँ उसने अपनी यात्रा आज से शुरू कर पीछे की ओर बढ़ाई है। जहाँ तक नजर जाती है, वहाँ भीड़ है। उसके पास समय नहीं है कि अब हर एक के पास जाकर अपनी बात कह सके।।
हर एक के साथ बिताए हुए पलों को हर एक के साथ साझा कर सके और कह सके कि “मैंने तुम्हारे संग बहुत समय बिताया है। हो सकता है, सुख-दुख के साथ कुछ काँटे भी छोड़ दिए हों, जिससे तुम्हारे जीवन में कलुष आया हो। मैं आज उस सबकी मुआफ़ी माँगने पलटकर पीछे आया हूँ। मुझे मुआफ़ कर दो।”
हाथ जोड़ता हूँ। कातर भाव से देखता हूँ। काँपता हूँ और अश्रुओं को अपने हाथों से पोंछकर आगे बढ़ता हूँ। पीछे पलटकर देखने की हिम्मत नहीं होती।
मैं आज जहां हूँ, वहाँ सब समेटकर अपनी देह में यूँ छुपा लेना चाहता हूँ। जैसे सबकी बद-दुआएँ दिखी नहीं किसी को। अन्दर ही अन्दर इन्हीं बद-दुआओं ने शरीर को छलनी कर दिया। क्षीण होती ज्ञानेन्द्रियों को ख़त्म कर दिया।
अब सिर्फ़ बची है तो सोचने की शक्ति और मस्तिष्क पर हावी और तारी होता जा रहा बोझिलपन। इसी उद्दाम भाव से सब कुछ चलता रहा तो शायद आप तक मुआफ़ी माँगने पहुँच ही नहीं पाऊँगा।
कहानी, कविताओं से इश्क रहा है। पर, अब जब यह समय हाथ से छूट रहा है, बूँद-बूँद गल रहा है, रंगों ने फीका होकर भक्क़ सफेद होना शुरू कर दिया है, तो कुमार गन्धर्व बहुत याद आते हैं। जहाँ बैठूँ उत छाया जी…
———-
(संदीप जी स्वतंत्र लेखक हैं। यह लेख उनकी ‘एकांत की अकुलाहट’ श्रृंखला की छठी कड़ी है। #अपनीडिजिटलडायरी की टीम को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने इस श्रृंखला के सभी लेख अपनी स्वेच्छा से, सहर्ष उपलब्ध कराए हैं। वह भी बिना कोई पारिश्रमिक लिए। इस मायने में उनके निजी अनुभवों/विचारों की यह पठनीय श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी की टीम के लिए पहली कमाई की तरह है। अपने पाठकों और सहभागियों को लगातार स्वस्थ, रोचक, प्रेरक, सरोकार से भरी पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने का लक्ष्य लेकर सतत् प्रयास कर रही ‘डायरी’ टीम इसके लिए संदीप जी की आभारी है।)
जय जय श्री राधे https://www.youtube.com/watch?v=ih_0H3p6ogU Read More
मानव एक समग्र घटक है। विकास क्रम में हम आज जिस पायदान पर हैं, उसमें… Read More
देश की राजनीति में इन दिनों काफ़ी-कुछ दिलचस्प चल रहा है। जागरूक नागरिकों के लिए… Read More
विश्व-व्यवस्था एक अमूर्त संकल्पना है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले घटनाक्रम ठोस जमीनी वास्तविकता… Read More
अपनी जड़ों से कटा समाज असंगत और अविकसित होता है। भारतीय समाज इसी तरह का… Read More
अभी गुरुवार, 6 मार्च को जाने-माने अभिनेता पंकज कपूर भोपाल आए। यहाँ शुक्रवार, 7 मार्च… Read More