lonelyness

जो हम हैं, वही बने रहें, उसे ही पसन्द करने लगें… दुनिया के फ़रेब से ख़ुद बाहर आ जाएँगे!

ज़ीनत ज़ैदी, दिल्ली

कल रात मोबाइल स्क्रॉल करते हुए मुझे Garden Spells का एक वाक्यांश मिला, you are who you are, whether you like it or not, so why not like it?

मानव मनोविज्ञान के अनुसार इंसान जैसे लोगो के बीच रहता है, ख़ुद वेसा ही बनने लगता है, या उनके जेसा बनने की कोशिश करने लगता हैl लेकिन इसके बरक्स उसकी अपनी असली आदतें, पसन्द-ना पसन्द, ख़्वाहिशें और स्वभाव उसके अन्दर ज़िन्दा रहता है। तो फिर ऐसा क्यों कि हम ख़ुद को स्वीकार नहीं कर पाते?

देखा जाए तो यह आजकल की ग्लैमरस दुनिया का नतीज़ा है। इसमें चमकते विज्ञापन और दमकती फिल्मो के ज़रिए हमें सुहाने ख़्वाब दिखाए जाते हैं। और हम-आप जैसे लोग उसके झाँसे में आकर ख़ुद को उस नकली साँचे में ढलते हुए देखने लगते है। लेकिन क्या यह दिखावा और फ़रेब हमें सही मायने में ख़ुशी देने में सफल है?

नहीं, क्योंकि हम ख़ुद जानते हैं कि जो हम हैं, हम वह नहीं बल्कि कुछ और बनने की कोशिश कर रहे हैं। इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में हम अपने खाली समय को ‘स्क्रीन टाइम’ बनाते जा रहे हैं। मीडिया, टेलीविजन, मोबाइल फ़ोन, मैगज़ीन वगैरह से हमे जो ख़बरें मिलती हैं, हम बिना समझे अपने दिमाग़ में भरते जाते है। बेचारे दिमाग़ को समय तक नहीं देते के वह इन ख़बरों को ठीक से पचा भी सके।

इस स्थिति से बाहर आने के लिए, हमें अपने दिमाग़ को आराम देना होगा। यहाँ बात असल आराम की हो रही है, न कि वह समय जिसे मैं ऊपर ‘स्क्रीन टाइम’ कह चुकी हूँ। अपने खाली समय को अपने साथ बिताएँ, यह सुनने में उबाऊ लग सकता है, लेकिन एक बार जब हमें अपने साथ बैठने में मज़ा आने लगेगा, तो उस दिन से ही हम अपने आप को समझने लग जाएँगे। उस दिन से ही हम दुनिया के फ़रेब से बाहर निकलना शुरू हो जाएँगे, निकल जाएँगे।

जैसे किसी के साथ समय बिताए बिना हम उसके बारे में नहीं जान सकते, ठीक वैसे ही अपने साथ समय बिताए बिना हम अपने को भी नहीं जान सकते। जीवन हमारा है, फैसला हमें करना होगा कि हम वह बन कर जीना चाहते हैं, जो हम हैं या वह जो हम है ही नहीं। इस बारे में सोचिएगा। 

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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से है। दिल्ली के सूरजमलविहार स्कूल से 12वीं पढ़ाई करने के बाद अब उच्च शिक्षा के लिए क़दम बढ़ा रही हैं। इस उम्र में ही अपने लेखों के जरिए बड़े मसले उठाती है। अच्छी कविताएँ भी लिखती है। लिखने में उनकी स्वाभाविक रुचि है और लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती हैं) 

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ज़ीनत के पिछले 10 लेख 

33- क्या ज़मीन का एक टुकड़ा औलाद को माँ-बाप की जान लेने तक नीचे गिरा सकता है?
32 – इंसान इतना कमज़ोर कैसे हो रहा है कि इस आसानी से अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर ले?
31 – कल स्कूल आएगी क्या? ये सफर अब ख़त्म हुआ!
30 – कैंसर दिवस : आज सबसे बड़ा कैंसर ‘मोबाइल पर मुफ़्त इन्टरनेट’ है, इसका इलाज़ ढूँढ़ें!
29 – choose wisely, whatever we are doing will help us in our future or not
28 – चन्द पैसों के अपनों का खून… क्या ये शर्म से डूब मरने की बात नहीं है?
27 – भारत का 78वाँ स्वतंत्रता दिवस : क्या महिलाओं के लिए देश वाक़ई आज़ाद है?
26 – बेहतर है कि इनकी स्थिति में सुधार लाया जाए, एक कदम इनके लिए भी बढ़ाया जाए
25 – ‘जल पुरुष’ राजेन्द्र सिंह जैसे लोगों ने राह दिखाई, फिर भी जल-संकट से क्यूँ जूझते हम?
24 – ‘प्लवक’ हमें साँसें देते हैं, उनकी साँसों को ख़तरे में डालकर हमने अपने गले में फ़न्दा डाला!

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