अनुज राज पाठक, दिल्ली
आज चैत्र नवरात्र का प्रथम दिवस। स्वतंत्रता पश्चात् ऐसे कई नवरात्र आए भगवती देवी की कृपा से हम भारतीय संस्कृति के पर्वों को बिना भय के मना पा रहे हैं। लेकिन केवल पर्वों का मानना ही महत्वपूर्ण नहीं होता। अपितु अपनी सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति भी सजग होना अपरिहार्य है। सांस्कृतिक धरोहरों में पर्व, भाषा, भूषा, आहार, व्यवहार सब सम्मिलित है। इनके प्रति उदासीनता हमें पराधीन न भी करे, लेकिन हमारा सांस्कृतिक रूप से पतन निश्चित ही करती है।
ऐसा लिखने के पीछे कारण है। दरअसल, चैत्र नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष के पहले ही दिन उत्तर भारत के एक अग्रणी हिन्दी अख़बार का शीर्षक पढ़कर दुःख के साथ साथ क्षोभ भी हुआ। उसका शीर्षक था, “आज से शारदीय नवरात्र शुरू, विराजेगीं माँ दुर्गे”। इस शीर्षक में सबसे बड़ी त्रुटि ‘चैत्र’ को ‘शारदीय’ लिखा जाना है। इस शीर्षक को लेखक, सम्पादक मंडल की घोर असावधानी नहीं कह सकते, अपितु इसे सम्पादक की सांस्कृतिक वैचारिक शून्यता कहेंगे। या फिर संस्कृति की नासमझी कहेंगे। इसे सामान्य असावधानी कहना-समझना हमारी भूल होगी। ऐसी त्रुटियाँ सम्पादकों की दृष्टि में हिन्दी समाज के प्रति या कहें कि हिन्दू समाज के प्रति उपेक्षा भाव का प्रकटीकरण भी है। यूँ कि “इन्हें कुछ भी परोस दो इन्हें क्या ही फर्क पड़ता है“। यह त्रुटि निश्चित रूप से ऐसी ही सोच का परिणाम है।
हालाँकि ऐसे कार्य केवल समाचार पत्रों के संपादकों द्वारा ही नहीं किए जाते, अपितु अन्य संस्थानों द्वारा भी होते हैं। जैसे- मेरे निवास के पास ही एचडीएफसी बैंक का एटीएम है। उसके बोर्ड पर भी हिंदी में “बैंक” की जगह “बैक” लिखा है। यह देखकर मुझे अत्यधिक दुःख होता है कि बताइए, इतने बड़े संस्थान भी भारतीय संस्कृति, भाषा, आदि का कहीं न कहीं अशुद्ध प्रयोग कर मखौल उड़ाते हैं! यह नहीं होना चाहिए।
इसीलिए हमें भारतीय नववर्ष के अवसर पर यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी भाषा, संस्कृति के प्रति अत्यधिक सावधानी का व्यवहार करेंगे। ताकि कहीं, कभी, असावधानी में भी हमसे उसका अनादर न हो। याद रखें, जो समाज अपनी भाषा, संस्कृति के प्रति असावधानी का व्यवहार करता है, वह निश्चित ही पतनगामी हो जाता है।
—————
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)