निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश
अगर आप ईमानदार हैं, तो आप कुछ बेच नहीं सकते। क़रीब 20 साल पहले जब मैं अमेरिका में था, तब मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह बात कही थी।
वाक़िआ कुछ यूँ है कि मैं अपने उस घनिष्ठ मित्र के साथ बैडमिन्टन खेल रहा था। मुकबला कड़ा था। कभी मैं थोड़ा आगे हो जाता, कभी वह। बैडमिन्टन में मैच प्वाइन्ट के स्तर पर इस तरह की स्थिति को ड्यूस-एडवान्टेज वाली कहलाती है। अगर मुझे सही याद है तो कम से कम 5-6 बार यह स्थिति बनी। कभी मेरे पक्ष में तो कभी उसके। आख़िर में उसने एक शॉट मारा और शटल मेरे पीछे बैकलाइन पर जाकर गिरी। मैंने ईमानदारी से वह प्वाइन्ट उसे दे दिया और वह मैच जीत गया। इसके बाद जब हम लोग अपना सामान समेट रहे थे तो उसने मुझसे कहा, “तुम कभी कोई चीज़ बेच नहीं सकते क्योंकि तुम बहुत ईमानदार हो।”
मैंने पूछा, “क्यों?” तो उसने कहा, “तुम आसानी से कह सकते थे कि शटल लाइन पर नहीं गिरी है। ऐसे में हमारा मैच आगे भी जारी रह सकता था।” मेरा वह दोस्त बड़ा सयाना था। भारतीय प्रबन्ध संस्थान से पढ़ाई करके निकला था। मैंने तब उसकी बात पर भरोसा किया और यह मानने लगा कि कुछ बेचने के लिए लोगों को झूठ बोलना ही पड़ता है। फिर धीरे-धीरे नौकरी के दौरान मेरी तरक़्क़ी होती गई। उस दौरान भी मुझे कम्पनी के बिक्री विभाग में ऐसे तमाम लोग मिले जो ग्राहकों को झूठ बोलकर सॉफ्टवेयर बेचते थे। उसमें ऐसी-ऐसी ख़ूबियाँ बता देते थे, जो होती ही नहीं थी। इंजीनियरिंग विभाग का प्रमुख होने के नाते मुझे इससे बहुत परेशानी होती थी क्योंकि ग्राहक के पास सॉफ्टवेयर पहुँचने और उसके काम शुरू करने से पहले मुझे वे सब ख़ूबियाँ उसमें डालनी पड़ती थीं। मुझे यह सब बिल्कुल पसन्द नहीं था। फिर भी लगता था कि बिक्री के लिए यह ज़रूरी है।
अब आज की बात करते हैं। अपनी ख़ुद की कम्पनी के लिए मैं लगातार बिक्री का काम करता हूँ। उसमें सफलता भी पा रहा हूँ। गौर करने की बात है कि मुझे बिक्री में सफलता के लिए झूठ का सहारा भी नहीं लेना पड़ता। हम अपने ग्राहकों को सॉफ्टवेयर, आदि का पूरा विवरण देते हैं। उन्हें उसका प्रदर्शन दिखाते हैं। उसकी क्षमताएँ, विशेषताएँ, आदि बताते हैं। यह भी बताते हैं कि कितना काम हो चुका है, कितना बाकी है। किस काम के पूरा होने में कितना समय लगेगा। यह सब चीज़ें पूरी पारदर्शिता से ग्राहक को बताते हैं।
हर स्तर पर काम पूरा होने में एक निश्चित समय लगता है। सॉफ्टवेयर में जो सुविधाएँ जोड़नी हैं, जो विशेषताएँ विकसित करनी हैं, वे अपना समय लेती ही हैं। इस बारे में हम ग्राहक को इतना तक बता देते हैं कि समझौता होने के बाद अमुक तारीख़ तक अमुक काम हो पाएगा। अगर कोई समझौता पत्र में इन सब बातों को लिखवाना चाहता है, तो हम उससे भी पीछे नहीं हटते। और लोग हम पर भरोसा करते हैं।
हमने कभी अपने सॉफ्टवेयर आदि बेचने के लिए झूठ का सहारा नहीं लिया। कभी बढ़ा-चढ़ाकर बात नहीं की। कभी भी नहीं। इसके बावज़ूद लोग हम पर भरोसा कर रहे हैं। हमें लगातार अच्छे ऑर्डर मिल रहे हैं। हमारा व्यापार भी बढ़ता जा रहा है। तो इसका मतलब क्या हुआ? यही कि ईमानदारी के साथ भी सामान बेचा जा सकता है, व्यवसाय किया जा सकता है। मेरे शब्द याद रखिएगा।
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निकेश का मूल लेख
If you are honest, you can’t do sales!
That’s what a friend told me 20 years ago when I was in US. The story goes like this.
I was playing badminton with this close friend of mine. The match was tough and we were at multiple round of deuce (at least 5 or 6 if I recall it correctly). On his advantage, he played a shot which touched the backline behind me.
I gave him that point and he won the match. When we were packing he said – you can never get into sales because you are too honest!
I asked why he said that. He responded that I could have easily called his shot out (that shuttle didn’t touch the line) and game would have continued.
He was a smart guy (IIM level) so I believed him that sales people need to lie all the time.
Then when I grew into my role in corporate I actually came across my own colleagues who would sell the software by lying about the features! As engineering lead I would struggle to deliver the feature before client went live.
I didn’t like that approach but I thought that’s the only way sales can be done.
Fast forward to current days – I do sales day in and day out today and close deals. I have never lied to my prospects. We do demo from our production environment and show capabilities that are there in the platform.
We may show “work in progress” or “half baked” features at times but we are very transparent about it (that this feature is coming soon).
There are times when prospect needed a certain feature and we said we would deliver that in x days after the agreement (and we do that). There are times when prospects ask us to write that in the agreement and we do that.
We never lie to our prospect about a feature (that we don’t have). Never!
We are closing deals and we are growing.
You can be honest and still do sales. Take my words!
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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)
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निकेश के पिछले 10 लेख
56- प्रशिक्षित लोग नहीं मिल रहे, इसलिए व्यापार बन्द करने की सोचना कहाँ की अक्लमन्दी है?
55 – पहलगाम आतंकी हमला : मेरी माँ-बहन बच गईं, लेकिन मैं शायद आतंकियों के सामने होता!
54 – हँसिए…,क्योंकि पश्चिम के मीडिया को लगता है कि मुग़लों से पहले भारत में कुछ था ही नहीं!
53 – भगवान महावीर के ‘अपरिग्रह’ सिद्धान्त ने मुझे हमेशा राह दिखाई, सबको दिखा सकता है
52 – “अपने बच्चों को इतना मत पढ़ाओ कि वे आपको अकेला छोड़ दें!”
51 – क्रिकेट में जुआ, हमने नहीं छुआ…क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमारी परवरिश अच्छे से की!
50 – मेरी इतिहास की किताबों में ‘छावा’ (सम्भाजी महाराज) से जुड़ी कोई जानकारी क्यों नहीं थी?
49 – अमेरिका में कितने वेतन की उम्मीद करते हैं? 14,000 रुपए! हम गलतियों से ऐसे ही सीखते हैं!
48 – साल 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य क्या वाकई असम्भव है? या फिर कैसे सम्भव है?
47 – उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाने को कहा तो एआई ने सीधे हाथ वाले की बना दी!