टीम डायरी
भारत का निजी क्षेत्र दुनिया के साथ क़दम मिला रहा है। अभी तक हम अधिकांशत: पश्चिमी देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बारे में सुनते थे कि वहाँ कर्मचारियों की सेहत आदि का ख़्याल नहीं रखा जाता। उनसे रोज 14-15 घंटों तक या उससे भी ज़्यादा काम कराया जाता है। जैसे कि एनवीडिया में, जिसके मालिक ख़ुद स्वीकार करते हैं कि वे “कर्मचारियों को यातना देना पसन्द करते हैं।” अब कुछ इसी तरह की स्थतियाँ भारत में भी बन रही हैं, जहाँ कम्पनियाँ खुलकर अपने कर्मचारियों तनाव में रखने या घर बिठा देने का इन्तिज़ाम कर रहीं हैं।
ताज़ा उदाहरण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा से संचालित एक नई-नवेली कम्पनी ‘यसमैडम’ का है। यह कम्पनी घरों में जाकर महिलाओं-पुरुषों को सौन्दर्य सेवाएँ (मेकअप आदि) उपलब्ध कराती है। ख़बरों के मुताबिक, इस कम्पनी ने हाल ही में एक आन्तरिक सर्वेक्षण कराया। इसमें अपने कर्मचारियों से पूछा कि क्या वे कम्पनी के कार्य-वातावरण की वज़ह से किसी तरह का तनाव महसूस कर रहे हैं। इस सर्वेक्षण के दौरान कम्पनी के मानव संसाधन (एचआर) विभाग ने कर्मचारियों को ईमानदार प्रतिक्रिया देने के लिए प्रोत्साहित किया।
इस पर कुछ कर्मचारियों ने ईमानदारी से प्रतिक्रिया दी भी। उन्होंने बताया, “हाँ, हमें कम्पनी के कार्य-वातावरण में तनाव महसूस होता है।” अलबत्ता, इस ईमानदारी का इनाम क्या ? कम्पनी के एचआर विभाग ने ऐसे सभी कर्मचारियों को सामूहिक मेल लिखा। उसमें स्पष्ट किया, “उनकी सेवाएँ तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी गईं हैं।” सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ के एक उपयोगकर्ता द्वारा साझा किया गया वह मेल नीचे दिया गया है, देखा जाता सकता है। यह मेल इस वक़्त मीडिया और सोशल मीडिया के लगभग सभी मंचों पर प्रसारित हो रहा है।
Stress-free work environment achieved: no job, no stress, no employees. #YesMadam truly cracked the code.#Workplace #Wellness pic.twitter.com/Yc6UfmV1I2
— Palak ✨ (@palaklive_) December 9, 2024
हालाँकि ‘यसमैडम’ के प्रबन्धन ने अब तक इस मामले में स्पष्टीकरण नहीं दिया है। #अपनीडिजिटलडायरी भी इस मामले की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं करती। अलबत्ता, ऐसे पुष्टिकरण की ज़रूरत भी नहीं है। क्योंकि खुलकर सामने आएँ या न आएँ, अधिकांश कम्पनियों में स्थितियाँ ऐसी ही हैं। वहाँ काम या कार्य-वातावरण के कारण कर्मचारियों को होने वाले तनाव-अवसाद को दूर करने के बारे में क़तई नहीं सोचा जाता। उल्टा होता यही है कि अगर किसी कर्मचारी का प्रदर्शन ऐसे किन्हीं कारणों से क़मतर या ख़राब हो जाए, तो उसे नौकरी से निकाल ही दिया जाता है। बिना यह सोचे कि बेरोज़ग़ारी की स्थिति में उसका और उसके परिवार का क्या होगा!
ऐसे कई प्रामाणिक उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहते हैं। इन सभी का मिला-जुला और स्पष्ट सन्देश यही होता है, “कम्पनी अपने व्यवसाय और उसकी सेहत के लिए ही ज़िम्मेदार है। उसी के लिए चिन्तित है। कर्मचारियों की सेहत से उसका कोई वास्ता नहीं। उसे न ही इसकी कोई फ़िक्र है। किसी कर्मचारी को अगर कम्पनी में काम करते हुए तनाव अधिक महसूस होता है, तो बेहतर है कि वह घर बैठे।” यानि इसका दूसरा अर्थ यह भी कि अपनी और अपने परिवार की सेहत का ख़्याल हमें ख़ुद रखना है। और विकल्प भी ख़ुद ही ढूँढने हैं।