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जानकारों ने बताया- प्रबन्धन के क्षेत्र में योग कितना प्रासंगिक है

अनुज राज पाठक, दिल्ली से

मानव जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान योग से सम्भव है। आज के शोध कहते हैं कि योग हमें और हमारे जीवन को ही केवल व्यवस्थित नहीं करता अपितु समस्त प्रकृति को सुव्यवस्थित करने की विधियों की व्यवहारिक व्याख्या करता है। इसे मिसाल के तौर पर यूँ समझिए… 

निद्रा/योगनिद्रा योग का अनिवार्य भाग है। जबकि आधुनिक प्रबन्धन में विश्राम को अब महत्त्व दिया जा रहा है। आहार का प्रबन्धन केवल शरीर के लिए ही बेहतर नहीं होता। स्मृति यानि याददाश्त को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है। 

इसी तरह कार्यकुशलता को देखने का तरीका क्या है? इसका उत्तर हमे यम-नियम के माध्यम से योग में मिल सकता है। यम-नियम हमारे मन और सूक्ष्म शरीर को नियंत्रित और व्यवस्थित करते हैं। जैसे ही हम इन नियमों का पालन छोड़ते हैं, तभी हमारा मन और शरीर अव्यवस्थित होने लगता है।

पर्यावरण बचाने के उपाय के रूप में भी योग को जीवन में अपनाना आवश्यक है। जो दिख रहा है, वह मेरा ही विस्तार है। लेकिन हमने इसे नहीं माना। इसलिए पर्यावरण और प्रकृति गड़बड़ाने लगी। हम जैसे ही अपरिग्रह को अपनाते हैं, प्रकृति को अपना विस्तार मानने लगते हैं, हम प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होने लगते हैं।   

भारतीय संस्कृति तप, स्वाध्याय, शुद्धि आदि को अपनी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाने पर जोर देती हैं। जब तक हम अपनी, अपने घर की शुद्धि नहीं करेंगे, तब तक अच्छी चीजों को कैसे जगह देंगे? इसलिए योग शुद्धि की बात करता है। मन की शुद्धि और शरीर की शुद्धि दोनों आवश्यक है।

आज की एक और गम्भीर समस्या है कि एकाग्रता कैसे विकसित करें? क्योंकि हमारी डिजिटल, तकनीकी व्यस्तता ज्यादा होने से हम एकाग्रता खोते जा रहे हैं। योग की भाषा में इसे मूढ़ता या विक्षिप्तता की अवस्था कहा जाती है। योग मन की एकाग्रता के लिए धारणा और ध्यान की विधियों को अपनाने के लिए कहता है। जिससे कि हम किसी कार्य को ज्यादा एकाग्र होकर कर सकें।

आज बड़े ही नहीं, बल्कि बच्चे भी स्मृति-भ्रम या मेमोरी-लॉस की समस्या से ग्रस्त हैं। योग सदियों पहले से समय प्रबन्धन की बात करता है। इसमें सुबह जल्दी उठना और रात्रि में जल्दी सोना। आहार अर्थात् भोजन करने का प्रबन्धन आदि पर विशेष जोर है। इससे मन पर और स्मृति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

ये तमाम बातें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुम्बई के प्रोफेसर आशीष पांडेय जी ने बताई हैं। वे रविवार, 29 जनवरी को ‘प्रबन्धन के क्षेत्र में योग की प्रासंगिकता’ विषय पर हुए एक वेबिनार में बाेल रहे थे। यह वेबिनार भारतीय ज्ञान परम्परा के क्षेत्र में काम कर रहे नई दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन ‘भारतप्रज्ञाप्रतिष्‍ठानम् ’ की ‘राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठियों’ की विशेष श्रृंखला का हिस्सा था। इस कड़ी में यह वेबिनार ‘श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्‍वविद्यालय, नई दिल्ली’ के साथ मिलकर किया गया।

वेबिनार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रो. सोमदेव शतांशु ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि योग के माध्यम से मानव जीवन का प्रबन्धन ही नहीं, प्रकृति का प्रबन्धन भी किया जा सकता है। मानव अपना प्रतिबिंब प्रकृति में देखे तो वह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता से भर जाएगा।

वहीं, स्वागत उद्बोधन में श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्‍वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो. महेश सिलेरी जी ने मानव के साथ-साथ समस्त जीवों के जीवन में योग के महत्त्व पर चर्चा की। इस वेबिनार में देश के विविध विश्‍वविद्यालयों के अनेक शिक्षाविदों ने भाग लिया। कार्यक्रम में प्रो. डॉ बृहस्पति मिश्र, डॉ. सत्यकेतु, डॉ.भाव प्रकाश, डॉ. रवि प्रभात, सुश्री अम्बालिका जी, श्री राजू जी, डॉ.वेद वर्धन, डॉ. वेदव्रत (संयोजक, भारतप्रज्ञाप्रतिष्ठान) और अध्यापन कार्य से जुड़े अनुज राज पाठक जैसे लोगों का विशेष योगदान रहा।

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