बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से
सिंहगढ़ तो हाथ आया लेकिन महाराज को अपने जानी दोस्त, सूबेदार तान्हाजीराव मालुसरे से हाथ धोना पड़ा। सूर्याजी के दुःख का पार नहीं था। उन्होंने अपने राम को ही खो दिया था। सिंहगढ़ की जीत की खबर महाराज को देने के लिए सूर्याजी ने किले पर पुआल के अटाल को आग लगाई थी। महाराज समझ गए कि उनके प्रिय साथी ने सिंहगढ़ जीत लिया है। बहुत खुश हुए वह। औरंगाशाही की बहुत बड़ी मुहिम का शुभारम्भ किया था तान्हाजीराव ने। जता दिया कि वह कथनी-करनी एक रखने में विश्वास करते हैं। हालाँकि महाराज को बाद में पता चला कि लड़ाई में तान्हाजीराव चल बसे। बहुत दुःखी हुए वह। महाराज का हमेशा साथ देने वाले लक्ष्मण ही उन्हें छोड़कर दूर चले गए थे।
दुःख से अकुलाकर महाराज बोले, ‘गढ़ आया पर सिंह चला गया।’ इसके बाद से ही महाराज ने तान्हाजी की याद में कोंढाणा को सिंहगढ़ नाम दिया। तान्हाजीराव ने किला लिया माघ कृष्ण पक्ष की नवमी की आधी रात को (शुक्रवार दिनांक 4 फरवरी 1670 को)। इस लड़ाई में उदयभान और उसके 500 सिपाही मारे गए। लेकिन तान्हाजी के निधन से राजगढ़ पर भी उदासी के बादल घिर आए। यही कोई 15-20 दिन दुःख का काला साया बना रहा। फिर एक दिन राजगढ़ फिर से मुस्कुराया। महाराज की धर्मपत्नी सोयराबाई साहब ने एक बेटे को जन्म दिया (दिनांक 24 फरवरी 1670)। इस खुशखबर में चिन्ता का भी पुट था। क्योंकि बच्चा जन्मा था उल्टा। तब बेटे की जन्मकथा सुनकर महाराज बोले, “बच्चा उल्टा जन्मा है? यह भी खूब रहा। यह बेटा दिल्ली की पातशाही को उलट देगा।”
इसके बाद कुछ ही दिनों में नीलोपन्त सोनदेव बहूतकर ने पुरन्दरगढ़ पर छापा मारा। घमासान लड़ाई हुई। नीलोपन्त के साथ गया था एक नौजवान- कैसी नारायण देशपांडे। वह जंग में काम आया। किले का किलेदार शेख रझीउद्दीन जीवित ही पन्त के हाथ आ गया। पुरन्दर फिर से स्वराज्य में शामिल हुआ। नीलोपन्त ने एक ही झपट्टे में पुरन्दर जैसा मजबूत किला जीत लिया था। इधर, दो-चार दिन पुत्र जन्म की खुशी मनाकर महाराज भी फिर से मुहिम पर चल पड़े। महाराज और उनके संगी-साथी नए जोश से मुगलों पर टूट पड़े। कई गढ़ों पर फिर से गेरुआ झंडा शान से लहराने लगा। तोपों ने धड़ाधड़ कर विजय की खबरों का ऐलान किया। मराठा प्रताप की झंझा के सामने मुगल सेना टिक न पाई।
पुरन्दरगढ़ के तुरन्त बाद पुणे का इन्दापुर इलाका स्वराज्य में आया। महाराज खुद उत्तर कोंकण में फौज के साथ उतरे। उन्होंने माहुलीगढ़ पर जोरदार मोर्चा लगाया। गढ़ पर मुगली किलेदार था, राजा मनोहरदास गौड़। यह गौड़ बहुत ही बहादुर था। गढ़ की मरम्मत कर उसने उसे पूरी तरह सुरक्षित बना लिया था। महाराज का मोर्चा उसने निष्फल कर दिया। एक हजार मराठे लड़ाई में मारे गए। तब पराभूत होकर महाराज टिटवाला की तरफ लौटे (मार्च मध्य 1670) और कल्याण, विभवंडी पर उन्होंने फौरन ही कब्जा कर लिया (दिनांक 15 मार्च 1670)। दुर्गाडी का किला भी फिर स्वराज्य में आया। मराठी फौज ने इसके बाद मुगली किलेदार गौड़ को भारी शिकस्त दी। गढ़ जीत लिया गया। शिवाजीराजे को हर जगह विजय मिल रही थी।
अगले महीने में, बारिश शुरू ही हुई थी जब सिर्फ एक हफ्ते के भीतर महाराज ने तीन बहुत ही मुश्किल किले जीत लिए। हिंदोला लिया (दिनांक 15 जून)। माहुलीगढ़ लिया (दिनांक 16 जून)। और कर्नाला भी लिया (दिनांक 22 जून 1670)। दो दिन बाद रोहिड़ा भी लिया (दिनांक 24 जून)। कैसा ऊधम। कैसा तहलका। पुरन्दर की सन्धि में जितने भी किले मुगलों को दिए थे, वे सब फिर से स्वराज्य में दाखिल कर लिए गए। इसके बाद धुआँधार बारिश शुरू हो गई। लिहाजा महाराज राजगढ़ लौट गए। इसीलिए आगे के मुगली थानेदारों की मौत थोड़ी देर के लिए टल गई। लेकिन बारिश खत्म होते ही महाराज झपट्टा मारने वाले थे मुगलों के बड़े शहरों पर।
इसमें पहला सम्मान मिलना था सूरत को। महाराज पहले कल्याण आए। वहाँ से 15,000 की फौज के साथ वह सूरत आ धमके (दिनांक 3 अक्टूबर 1670)। लाखों रुपयों की पूँजी लेकर महाराज लौटे (दिनांक 5 अक्टूबर)। लौटते समय वह नासिक प्रान्त से आ रहे थे। तभी अचानक सुबह के तीन बजे (दिनांक 17 अक्टूबर) मुगली फौज ने महाराज को आ घेरा। घनघोर युद्ध हुआ। यही है वह दिंडोरी का युद्ध। मुगलों का सेनापति था दाऊद खान कुरेशी। दिनभर के रणक्रन्दन में 3,000 मुगल मारे गए। मुगलों की हार हुई। कई सालों बाद ऐसी लड़ाई हुई। इसके बाद दुश्मन की युद्ध-सामग्री लेकर विजयी महाराज कुंजरगढ़ आए। वहाँ से राजगढ़ पहुँचे (अक्टूबर 1670)। दिंडोरी युद्ध में अभूतपूर्व यश मिला। यह यश कार्तिकी पूनम जैसा धवल था।
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।)
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली 20 कड़ियाँ
43- शिवाजी ‘महाराज’ : राजगढ़ में बैठे महाराज उछल पड़े, “मेरे सिंहों ने कोंढाणा जीत लिया”
42- शिवाजी ‘महाराज’ : तान्हाजीराव मालुसरे बोल उठे, “महाराज, कोंढाणा किले को में जीत लूँगा”
41- शिवाजी ‘महाराज’ : औरंगजेब की जुल्म-जबर्दस्ती खबरें आ रही थीं, महाराज बैचैन थे
40- शिवाजी ‘महाराज’ : जंजीरा का ‘अजेय’ किला मुस्लिम शासकों के कब्जे में कैसे आया?
39- शिवाजी ‘महाराज’ : चकमा शिवाजी राजे ने दिया और उसका बदला बादशाह नेताजी से लिया
38- शिवाजी ‘महाराज’ : कड़े पहरों को लाँघकर महाराज बाहर निकले, शेर मुक्त हो गया
37- शिवाजी ‘महाराज’ : “आप मेरी गर्दन काट दें, पर मैं बादशाह के सामने अब नहीं आऊँगा”
36- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवाजी की दहाड़ से जब औरंगजेब का दरबार दहल गया!
35- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठे थके नहीं थे, तो फिर शिवाजी ने पुरन्दर की सन्धि क्यों की?
34- शिवाजी ‘महाराज’ : मरते दम तक लड़े मुरार बाजी और जाते-जाते मिसाल कायम कर गए
33- शिवाजी ‘महाराज’ : जब ‘शक्तिशाली’ पुरन्दरगढ़ पर चढ़ आए ‘अजेय’ मिर्जा राजा
32- शिवाजी ‘महाराज’ : सिन्धुदुर्ग यानी आदिलशाही और फिरंगियों को शिवाजी की सीधी चुनौती
31- शिवाजी महाराज : जब शिवाजी ने अपनी आऊसाहब को स्वर्ण से तौल दिया
30-शिवाजी महाराज : “माँसाहब, मत जाइए। आप मेरी खातिर यह निश्चय छोड़ दीजिए”
29- शिवाजी महाराज : आखिर क्यों शिवाजी की सेना ने तीन दिन तक सूरत में लूट मचाई?
28- शिवाजी महाराज : जब शाइस्ता खान की उँगलियाँ कटीं, पर जान बची और लाखों पाए
27- शिवाजी महाराज : “उखाड़ दो टाल इनके और बन्द करो इन्हें किले में!”
26- शिवाजी महाराज : कौन था जो ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ कहते हुए भागा था?
25- शिवाजी महाराज : शिवाजी ‘महाराज’ : एक ‘इस्लामाबाद’ महाराष्ट्र में भी, जानते हैं कहाँ?
24- शिवाजी महाराज : अपने बलिदान से एक दर्रे को पावन कर गए बाजीप्रभु देशपांडे
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