mrachkatikam-17

मृच्छकटिकम्-17 : विपत्ति के समय मनुष्य पर छोटे-छोटे दोष से भी बड़े अनिष्ट हो जाते हैं

अनुज राज पाठक, दिल्ली से

वसंतसेना को मृत समझकर शकार उसे उद्यान में छोड़कर चला आता है। वह सोचता है कि वसंतसेना की हत्या के अपराध का दोष क्यों न दरिद्र चारुदत्त पर लग दूँ। क्योंकि सभी सोचेंगे कि वह निर्धन है, इसलिए लोभ में ऐसा कर भी सकता है।

शकार न्यायालय पहुँच कर न्यायाधीश के समक्ष अभियोग प्रस्तुत करता है। न्यायाधीश को शोधनक (न्यायालय का कर्मचारी) बताता है कि आज सबसे पहले राजा का साला न्याय अभियोग लगाने आया है। यह जानकर न्यायाधीश कहते हैं, “जैसे सूर्योदय का ग्रहण किसी अशुभ की सूचना देता है वैसे ही आज का दिन भी रहेगा। इसलिए तुम जाकर कह दो तुम्हारा विवाद नहीं देखा जाएगा।”

लेकिन शकार द्वारा राजा से शिकायत करने की धमकी देने के बाद न्यायाधीश विवाद प्रस्तुत करने के लिए शकार को बुला लेते हैं। शकार अपनी कहानी बताते हुए कहता है, “एक बार प्रसन्न होने पर राजा ने मुझे पुष्पकरण्डक नामक उद्यान की रक्षा का भार मुझे दिया था। आज निरीक्षण के समय वहाँ मैंने वसंतसेना का शव देखा। उसे किसी ने बाहुपास में जकड़कर मार डाला। मैंने नहीं मारा।”

“मैंने नहीं मारा।” इस वाक्य को सुनकर न्यायाधीश इसको पहले लिखने को कहता है। ऐसा सुनते ही शकार कहता है, “मैंने देखा है।” न्यायाधीश को शकार पर सन्देह होने से साक्षी हेतु वसंतसेना की माता को बुलाया जाता है। वह प्रमाण देती है कि वसंतसेना असल में चारुदत्त के घर थी। 

इसके बाद चारुदत्त को गवाही के लिए बुलाए जाता है। तब चारुदत्त सोचता है, “मेरे कुल और चरित्र के विषय में सर्वज्ञात है। फिर भी मेरे निर्धन हो जाने के कारण मुझे इस प्रकार बुलाया जा रहा है। या फिर आर्यक को अपनी गाड़ी से पहुँचाया था। शायद उसके बारे में ज्ञात हो जाने से मैं अपराधी की भाँति न्यायालय जा रहा हूँ।”

न्यायालय में चारुदत्त को देखते ही शकार क्रोधपूर्वक उसके दोषी होने की घोषणा कर देता है। न्यायाधीश प्रश्न-प्रतिप्रश्न पूछकर जानना चाहते हैं कि वसंतसेना कब घर गई, किसके साथ गई, कब तक आर्य के साथ थी? लेकिन शकार पुन: चारुदत्त पर दोष लगाता है। शकार जब दोष देता है, उस समय उसका शरीर झूठ बोलने के कारण पसीने से भीग जाता है। चेहरा म्लान हो जाता है।

इधर न्यायाधीश इस विषय में सोचते हैं कि चारुदत्त पर दोष लगाना हिमालय को हाथों में उठाने के समान है। इसके बाद वह शकार की भर्त्सना करता हुआ कहते हैं, “क्या आर्य चारुदत्त अनुचित कार्य करेंगे? जो तुम ऐसा नीच कर्म करने का दोष आर्य पर लगा रहे हो?” इस पर शकार न्याय में पक्षपात होने का दोष लगाता है। तभी वसंतसेना की माता कहती है, “जिसने धरोहर चोरी होने के बदले अपना कीमती हार दे दिया, क्या वह तुच्छ आभूषणों के लिए ऐसा अपराध करेगा?”

इसके बाद न्यायाधीश फिर चारुदत्त से कुछ प्रश्न करते हैं कि तभी वीरक न्यायालय में प्रवेश करता है। वह चन्दनक से विवाद की घटना सुनाता है। उसे सुनकर शकार फिर दोष देता है। न्यायाधीश वीरक को उद्यान जाकर किसी स्त्री शव के वहाँ होने की पुष्टि के लिए आदेश देता है। लौटकर वीरक यह पुष्टि करता है कि उद्यान में किसी स्त्री का शव है।

इसे सुनकर चारुदत्त सोचता है, “खिलने से पहले ही रस पीने के लिए भौरों का झुंड फूल पर टूट पड़ता है। उसी प्रकार विपत्ति के समय मनुष्य पर छोटे-छोटे दोष से भी बड़े अनिष्ट हो जाते हैं। “यथैव पुष्पं प्रथमे विकासे शमेत्य पातुं मधुपाः पतन्ति। एवं मनुष्यस्य विपत्तिकालेछिद्रेष्वनर्था बहुलीभवन्ति।”

ऐसा कहकर चारुदत्त विदूषक को बुलाने हेतु अनुरोध करता है।

जारी….
—-
(अनुज राज पाठक की ‘मृच्छकटिकम्’ श्रृंखला हर बुधवार को। अनुज संस्कृत शिक्षक हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखते हैं। दिल्ली में पढ़ाते हैं। वहीं रहते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। इससे पहले ‘भारतीय-दर्शन’ के नाम से डायरी पर 51 से अधिक कड़ियों की लोकप्रिय श्रृंखला चला चुके हैं।)

पिछली कड़ियाँ

मृच्छकटिकम्-16 : प्रेम में प्रतीक्षा दुष्कर है…
मृच्छकटिकम्-15 : जो शरणागत का परित्याग करता है, उसका विजयलक्ष्मी परित्याग कर देती है
मृच्छकटिकम्-14 : इस संसार में धनरहित मनुष्य का जीवन व्यर्थ है
मृच्छकटिकम्-13 : काम सदा प्रतिकूल होता है!
मृच्छकटिकम्-12 : संसार में पुरुष को मित्र और स्त्री ये दो ही सबसे प्रिय होते हैं
मृच्छकटिकम्-11 : गुणवान निर्धन गुणहीन अमीर से ज्यादा बेहतर होता है
मृच्छकटिकम्-10 : मनुष्य अपने दोषों के कारण ही शंकित है
मृच्छकटिकम्-9 : पति की धन से सहायता करने वाली स्त्री, पुरुष-तुल्य हो जाती है
मृच्छकटिकम्-8 : चोरी वीरता नहीं…
मृच्छकटिकम्-7 : दूसरों का उपकार करना ही सज्जनों का धन है
मृच्छकटिकम्-6 : जो मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार बोझ उठाता है, वह कहीं नहीं गिरता
मृच्छकटिकम्-5 : जुआरी पाशों की तरफ खिंचा चला ही आता है
मृच्छकटिकम्-4 : धरोहर व्यक्ति के हाथों में रखी जाती है न कि घर में
मृच्छकटिकम्-3 : स्त्री के हृदय में प्रेम नहीं तो उसे नहीं पाया जा सकता
मृच्छकटिकम्-2 : व्यक्ति के गुण अनुराग के कारण होते हैं, बलात् आप किसी का प्रेम नहीं पा सकते
मृच्छकटिकम्-1 : बताओ मित्र, मरण और निर्धनता में तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?
परिचय : डायरी पर नई श्रृंखला- ‘मृच्छकटिकम्’… हर बुधवार

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *