Health

स्वास्थ्य सेवाओं के मामले हमारा देश सच में, अमेरिका से बेहतर ही है

निकेश जैन, इंदौर मध्य प्रदेश से

इसी साल के मई महीने की बात है। मुझे मेरी बेटी की ग्रेजुएशन सेरेमनी के लिए न्यू यॉर्क जाना था। यात्रा से 24 घंटे पहले की काेरोना-रिपोर्ट चाहिए थी। उसके लिए मैंने बेंगलुरू में अपने घर के आस-पास कई लैब और अस्पतालों में सम्पर्क घुमाया। लेकिन उन सभी में टेस्ट की रिपोर्ट आने में 48 से 72 घंटे लगने वाले थे। घरेलू उड़ानों में तो यह रिपोर्ट चल जाती, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों में यह मंज़ूर नहीं होती है।

तभी किसी ने मुझसे कहा, “ओरेंजहैल्थ लैब को ट्राई क्यों नहीं करते।” मुझे उसके बारे में कुछ भी पता नहीं था। लिहाज़ा, मैंने गूगल सर्च किया। वहाँ से उनका नम्बर मिल गया। वहीं से पता चला कि यह बेंगलुरू में ही स्वास्थ्य सम्बन्धी देख-भाल (हेल्थ-केयर) के क्षेत्र में काम करने वाली नई-नवेली कम्पनी (स्टार्टअप) है। सो, मैंने वॉट्सएप-चैट के ज़रिए उनके वहाँ कोरोना-टेस्ट का समय बुक कर लिया। यूपीआई के माध्यम से भुगतान भी कर दिया। उन्होंने बुकिंग की पुष्टि की और निश्चित समय पर उनका लैब-टेक्नीशियन मेरे घर पर नमूने लेने आ गया। इसके बाद महज़ आठ घंटे के भीतर मुझे वॉट्सएप पर ही कोरोना-रिपोर्ट भी उनकी तरफ़ से भेज दी गई।

इस तरह मैं यात्रा के लिए पूरी तरह अब तैयार था। बेफ़िक्र था। यह स्वास्थ्य-तकनीक के क्षेत्र का नवाचार है। सहज, सुलभ और क़िफ़ायती। इसके ठीक उलट न्यू यॉर्क में ही मैं ऐसे तमाम लोगों को जानता हूँ जिन्होंने कोरोना टेस्ट के लिए 300 से 700 डॉलर तक चुकाए हैं। इसके लिए उन्हें मज़बूरन अपने बीमा-कवर के दायरे से बाहर जाकर टेस्ट कराना पड़ा। जिससे कि उनकी अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें छूट न जाएँ। 

और यह कोई मेरा इक़लौता अनुभव नहीं है। साल 2002 की बात है। अमेरिका में मुझे मेरे लिए प्राथमिक देख-भाल से सम्बन्धित फ़िजीशियन का वक़्त लेने में सात दिन लग गए थे। फिर 2004 में भी जब मेरी बेटी पैदा हुई, तो वह कुछ घंटों तक इनक्यूबेटर (जिसके ज़रिए नवज़ात बच्चों की सिंकाई की जाती है) में रखी गई। तब उसे देखने के लिए जो डॉक्टर आए, वे बमुश्किल उसे 90 सेकेंड का वक़्त ही दे सके। क्योंकि उन्हें 20 अन्य बच्चों को देखना था। और इतने कम वक़्त के लिए भी मुझे जो बिल थमाया गया, वह 1500 डॉलर का था। 

अमेरिका में यह हाल तब है, जबकि वहाँ की सरकार हर साल लगभग चार लाख करोड़ डॉलर की भारी-भरकम रकम स्वास्थ्य सम्बन्धी देख-भाल के क्षेत्र में ख़र्च करती है। यानी कुल मिलाकर बात इतनी है कि जब हम तुलना करते हैं तो स्वास्थ्य सेवाओं के मामले हमारा देश सच में, अमेरिका से बेहतर ही साबित होता है। लिहाज़ा, भारत को अमेरिका या किसी अन्य पश्चिमी देश से, कम से कम इस मामले में तो, सीखने की ज़रूरत नहीं ही है। हम अलग मिज़ाज के मुल्क हैं। यहाँ हमें ऐसी चीज़ें चाहिए, जो हम पर काम कर सकें।

(अनुवाद : नीलेश द्विवेदी) 
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(मूल टेक्स्ट नीचे अंग्रेजी में)

In the month of May I had to travel to New York to attend my daughter’s graduation ceremony. I needed a Covid test within 24 hours of travel. I called many labs and hospitals near my house in Bangalore but they all were giving test results in 48 to 72 hours (Domestic airlines would accept that).

Then someone told me to try Orangehealth lab. I had no idea what it was. I searched on Google and got their number. Turned out it was a Bangalore based Health care startup. On WhatsApp chat I booked an appointment for Covid test, made the payment using UPI. They confirmed the booking and at designated time next day a lab technician came to my house, took the sample and within 8 hours I got my test report on WhatsApp!

I was all set to travel. This is called Healthtech innovation. Economic and convenient.
I know people in New York were standing in line for 7 to 8 hours to get their covid test done. I also know of people who paid $300 to $700 just for Covid test because they were forced to go out of their insurance network to get Covid test done so they didn’t miss their flight!

US spends $4T on health care but still the health care sucks there. In 2002 it would take me 7 days to get an appointment to see my primary care physician!! In 2004 when my daughter was born she was in incubator for few hours. A doctor came to see her along with 20 other new born and spent may be 90 seconds with my daughter – the bill sent to me was of $1500.

I find health care in India way more available and affordable as compared to my experience in US. India need not learn health care from US or any other western country. We are a different country with different demographic so need solutions that work in India.
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(निकेश, मूल रूप से इन्दौर, मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। शिक्षा-तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप एड्यूरिगो-टेक्नोलॉज़ी के संस्थापकों में से एक हैं। मूल रूप से लिंक्डइन पर अंग्रेज़ी में नियमित रूप से लिखते हैं। उन्होंने #अपनीडिजिटलडायरी को भी यह इज़ाजत दी हुई है कि उनके लेखों को हिन्दी में अनुवाद कर डायरी के पन्नों पर लिया जा सकता है।) 

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