ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 27/9/2021

मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार में प्रावधान था कि हर 10 साल में इसके परिणामों की समीक्षा होगी। इसी के मुताबिक ब्रिटेन की रूढ़िवादी (कंज़रवेटिव) सरकार ने 1927 में सर जॉन साइमन की अगुवाई में आयोग बनाया। अगले साल यह आयोग भारत आया। लेकिन राष्ट्रवादी नेताओं ने उसका बहिष्कार कर दिया। फिर भी उसने रिपोर्ट तैयार की जो 1930 में जारी हुई। इसी बीच ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बन गई। उसने हिंदुस्तान के तत्कालीन वायसराय को लंदन बुलाया। उन्होंने भारत लौटकर ऐलान किया कि भारत को स्वतंत्र-उपनिवेश का दर्जा मिलेाग। यह भी घोषणा की कि लंदन में जल्द एक सम्मेलन होगा। इसमें भारत के सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाएगा। 

भारत में साइमन कमीशन के बहिष्कार ने कांग्रेस और मुसलिम लीग को एक साथ आने का मौका दिया। दोनों संगठनों की अन्य दलों के साथ 1928 में संयुक्त बैठक हुई। इसमें सहमति बनी कि भारत को स्वतंत्र उपनिवेश का दर्जा देने का सरकार का प्रस्ताव स्वीकार किया जाए। बावज़ूद इसके कि कांग्रेस ने 1927 में पूर्ण स्वराज के लक्ष्य की घोषणा की थी। हालाँकि दिसंबर 1929 में कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में फिर ऐलान कर दिया कि उसका लक्ष्य देश को पूरी आज़ादी दिलाना ही है। उसने लंदन में होने वाले सम्मेलन का बहिष्कार करने का भी फ़ैसला किया। साथ ही महात्मा गाँधी ने छह अप्रैल 1930 को दांडी मार्च (पदयात्रा) के जरिए सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया। सरकार ने यह आंदोलन कुचलने में पूरा जोर लगाया। उसके दमनचक्र में 103 लोगों की जान चली गई। लगभग 420 लोग घायल हो गए। वहीं 60,000 से अधिक लोगों को एक साल के भीतर जेलों में ठूँस दिया गया।

लेकिन ये दमनचक्र सफल नहीं हुआ तो समझौते के प्रयास होने लगे। नतीज़े में चार मार्च 1931 को गाँधी-इरविन (महात्मा गाँधी और तात्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन) समझौता हुआ। इसके मुताबिक सरकार ने दमन चक्र रोका। राजनैतिक बंदियों को छोड़ा। बदले में कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित किया। वह लंदन में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लेने के लिए राजी हो गई। उसमें महात्मा गाँधी इकलौते प्रतिनिधि के रूप में शामिल भी हुए। लेकिन वे किसी विषय पर सहमत नहीं हुए। फिर भी सरकार तय कर चुकी थी कि वह कांग्रेस की सहमति के बिना सम्मेलन में तय की गई बातों पर आगे बढ़ेगी। वह कांग्रेस और उसके नेताओं के ख़िलाफ़ सख़्त कदम उठाने का मन भी बना चुकी थी। सो, भारत लौटते ही महात्मा गाँधी को जनवरी 1932 में ग़िरफ़्तार कर लिया गया। कांग्रेस को ग़ैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया गया। इससे सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन और सरकारी दमन चक्र दोनों फिर तेज हो गया। अगले साल मार्च तक लगभग 1,20,000 कार्यकर्ताओं को सरकार ने जेल में डाल दिया। 

फिर ‘भारत सरकार अधिनियम 1935’ आया। यह 1937 में लागू होना था। इसके प्रावधान कुछ इस तरह थे। (1) उस समय मौज़ूद 11 प्रांतों को उनकी सरकार चुनने की आज़ादी दी जाएगी। इन सरकारों को शासन-संचालन की पूरी ज़िम्मेदारी दी जाएगी। राज्यपालों के हाथ में विशिष्ट शक्तियाँ ही रहेंगी। इन्हें वे ख़ासतौर पर कानून-व्यवस्था की स्थिति ध्वस्त हो जाने पर इस्तेमाल कर सकेंगे। (2) केंद्र में एक संघीय ढाँचा स्थापित की जाएगी। दो सदनों वाली केंद्रीय विधायिका बनेगी। इसमें प्रांतों के साथ रियासतों के प्रतिनिधि भी होंगे। वायसराय की कार्यकारी परिषद केंद्रीय विधायिका के लिए उत्तरदायी होगी। सिर्फ़ रक्षा और विदेश मामलों के मंत्री वायसराय के लिए उत्तरदायी रहेंगे। वायसराय के पास आपातकालीन परिस्थिति में ही विशिष्ट शक्तियाँ रहेंगी। हालाँकि केंद्रीय विधायिका गठित नहीं हो सकी क्योंकि राजे-रजवाड़े, कांग्रेस और मुसलिम लीग किसी ने इसके स्वरूप पर सहमति नहीं दी। इसी दौरान 1937 के शुरू में चुनाव हुए। कांग्रेस ने 11 में सात प्रांतों में जीत हासिल कर सरकार बनाई। ये सरकारें काफ़ी सफल रहीं। इससे कांग्रेस की प्रतिष्ठा इतनी बढ़ी कि 1939 तक पार्टी की सदस्य संख्या 50 लाख के क़रीब पहुँच गई। 

तभी द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया। कांग्रेस ने इसमें ब्रिटिश सरकार का साथ देने से मना कर दिया। बल्कि इसमें भारत को घसीटने के विरोध में उसकी सभी सरकारों ने इस्तीफ़े दे दिए। इसी बीच जर्मन फौज को यूरोप में जीत-पर-जीत मिलने लगी। ब्रिटेन की ताकत कम हो रही थी। कांग्रेस ने इसका फ़ायदा उठाना चाहा। उसने अंग्रेजों को प्रस्ताव दिया कि अगर वे भारत में अस्थायी राष्ट्रीय सरकार बनाने की सहमति दें, तो युद्ध में उनका सहयोग किया जा सकता है। ब्रिटेन ने इसे ठुकराकर अगस्त-1940 में कांग्रेस को वैकल्पिक प्रस्ताव दिया। इसमें तीन बातें थीं। पहली- युद्ध के बाद एक समिति बनाई जाएगी, जो भारत का संविधान बनाएगी। दूसरा- वायसराय की कार्यकारी परिषद की सदस्य संख्या बढ़ाई जाएगी। इसमें अधिक संख्या में भारतीय सदस्यों को शामिल किया जाएगा। तीसरा- युद्ध सलाहकार परिषद बनाई जाएगी। इसमें ब्रिटिश-भारत और रियासतों के प्रतिनिधि भी होंगे। लेकिन ये प्रस्ताव कांग्रेस ने नहीं माना।

इसी बीच मार्च 1942 में जापानियों ने अंग्रेजों से बर्मा छीन लिया। यह आशंका भी पैदा हो गई कि जापान कभी भी भारत पर हमला कर सकता है। लिहाज़ा ब्रिटेन ने अपने वरिष्ठ मंत्री सर स्टैफर्ड क्रिप्स को हिंदुस्तान भेजा। वे लगभग वैसा ही प्रस्ताव लेकर आए जैसा अंग्रेजों ने अगस्त 1940 में दिया था। इसी दौरान मुसलिम लीग पूरी तरह कांग्रेस से अलग हो गई। ऐसे में कांग्रेस के पास अब ज़्यादा विकल्प नहीं थे। उसने आठ अगस्त 1942 को बड़े पैमाने पर फिर सविनय अवज्ञा आंदोलन तेज कर दिया। सरकार ने भी उतनी ही तेज प्रतिक्रिया की। कांग्रेस को फिर गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया। उसके नेताओं और अन्य आंदोलनकारियों को ग़िरफ़्तार कर जेलों में डाल दिया। इससे अराजकता पैदा हो गई। देश में दंगे-फ़साद होने लगे। सरकार का दमन चक्र भी चालू था। इसमें लगभग 60,000 से ज़्यादा लोग ग़िरफ़्तार किए गए। इनमें भी 18,000 के लगभग तो बिना किसी मुकदमे के ही जेल भेज दिए गए। पुलिस के साथ हिंसक झड़पों में 940 लोगों की जान चली गई। जबकि 1,630 से ज़्यादा घायल हो गए।

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
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2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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