mrachkatikam-16

मृच्छकटिकम्-16 : प्रेम में प्रतीक्षा दुष्कर है…

अनुज राज पाठक, दिल्ली से

वसंतसेना बदली हुई गाड़ी से उद्यान की तरफ जा रही होती है। वसंतसेना की प्रतीक्षा में अधीर चारुदत्त बार-बार विदूषक से मार्ग देखने का अनुरोध करता हुआ कहता है, “मित्र! प्रेम समय नहीं चाहता अर्थात् प्रेम में प्रतीक्षा करना कठिन है (न कालमपेक्षते स्नेह:), दुष्कर है। प्रेम में पड़ा व्यक्ति प्रेमी का इंतिज़ार नहीं कर सकता। वह क्षणभर भी प्रिय से विलग होना नहीं चाहता। मेरी वसंतसेना कहाँ रह गई। मैंने वर्द्धमानक से वसंतसेना को जल्दी लाने के लिए कहा था। लेकिन वह अभी तक लेकर नहीं आया।”

लंबी प्रतीक्षा के बाद गाड़ी पहुँचती है। लेकिन तब उस गाड़ी में वसंतसेना न होकर आर्यक बैठा मिलता। आर्यक अपने भाग्य से चरुदत्त की गाड़ी में बैठ गया। जिस कारण वह चंदनक की सहायता से बच निकलता है। अब आर्य चारुदत्त की शरण की कामना करता है। अपने स्वभाव के अनुरूप चारुदत्त उसे अभय प्रदान कर अपने बांधवों के पास जाने को कह, स्वयं भी उद्यान से चला जाता है।

चारुदत्त के उद्यान से निकलने के बाद शकर अपने सहायक विट के साथ वहाँ पहुँचकर वसंतसेना द्वारा ठुकराए जाने से दुखी होकर कहता है, “आज मैं वसंतसेना को भूल नहीं पाया हूँ। वह दुर्जन के वचन की तरह मेरे हृदय में, मेरे मन में ठहर सी गई है।”

विट बहुत समझाता है कि वसंतसेना को भूल जाओ वह चारुदत्त को चाहती है। साथ ही कहता है, “सुनिए मित्र! स्त्रियों के द्वारा इस उपेक्षा करने पर दुर्जनों में काम विकार बढ़ जाता है। वहीं सज्जनों में या तो मंद हो जाता है या फिर समाप्त हो जाता है।” (स्त्रीभिर्विमानितानां कापुरुषाणां विर्वद्धते मदनः। सत्पुरुषस्य स एव तु भवति मृदुनैव वा भवति।)

उद्यान में दोनों बातें कर रहे होते हैं तभी वहाँ शकार का सेवक गाड़ी लेकर पहुँच जाता है। उस गाड़ी में वसंतसेना को देख शकार प्रसन्न हो बहुत प्रकार से वसंतसेना को मनाने की कोशिश करता है। बार-बार प्रणय निवेदन करता है। जिसे वसंतसेना पुन: ठुकरा देती है। इससे शकार क्रोधित हो वसंतसेना को मारने के लिए उद्यत हो जाता है।

शकार द्वारा वसंतसेना का गला दबाने से वह मूर्छित होकर गिर जाती है। शकार को लगता है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। इससे वह स्त्री हत्या का दोष अपने सहायक विट को अपने सिर पर लेने का लालच देता है। विट ऐसा करने से मना कर आर्यक के पास जाने के लिए निकल जाता। जिससे कि राजा पालक के दंड से बच सके।

तभी उद्यान में कोई भिक्षुक अपने धोए वस्त्रों को सुखाने के लिए आता है। उसे सूखे बिखरे पड़े पत्तों के बीच में आभूषणों से सुसज्जित स्त्री का हाथ दिखाई देता है। तब वस्तुत: वसंतसेना होश में आने के बाद पानी माँग रही होती है। भिक्षुक वसंतसेना को पहचान लेता है। अरे ये वहीं देवी हैं जिन्होंने मुझे 10 सोने के सिक्कों के बदले जुआरियों से छुड़ाया था। वह जल्दी से वसंतसेना के ऊपर से पत्ते हटाता है और बैठने में सहायता करता है। वसंतसेना को चलने में सहायता देते हुए अपने मठ की ले जाता है।

जारी….
—-
(अनुज राज पाठक की ‘मृच्छकटिकम्’ श्रृंखला हर बुधवार को। अनुज संस्कृत शिक्षक हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखते हैं। दिल्ली में पढ़ाते हैं। वहीं रहते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में एक हैं। इससे पहले ‘भारतीय-दर्शन’ के नाम से डायरी पर 51 से अधिक कड़ियों की लोकप्रिय श्रृंखला चला चुके हैं।)

पिछली कड़ियाँ

मृच्छकटिकम्-15 : जो शरणागत का परित्याग करता है, उसका विजयलक्ष्मी परित्याग कर देती है
मृच्छकटिकम्-14 : इस संसार में धनरहित मनुष्य का जीवन व्यर्थ है
मृच्छकटिकम्-13 : काम सदा प्रतिकूल होता है!
मृच्छकटिकम्-12 : संसार में पुरुष को मित्र और स्त्री ये दो ही सबसे प्रिय होते हैं
मृच्छकटिकम्-11 : गुणवान निर्धन गुणहीन अमीर से ज्यादा बेहतर होता है
मृच्छकटिकम्-10 : मनुष्य अपने दोषों के कारण ही शंकित है
मृच्छकटिकम्-9 : पति की धन से सहायता करने वाली स्त्री, पुरुष-तुल्य हो जाती है
मृच्छकटिकम्-8 : चोरी वीरता नहीं…
मृच्छकटिकम्-7 : दूसरों का उपकार करना ही सज्जनों का धन है
मृच्छकटिकम्-6 : जो मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार बोझ उठाता है, वह कहीं नहीं गिरता
मृच्छकटिकम्-5 : जुआरी पाशों की तरफ खिंचा चला ही आता है
मृच्छकटिकम्-4 : धरोहर व्यक्ति के हाथों में रखी जाती है न कि घर में

मृच्छकटिकम्-3 : स्त्री के हृदय में प्रेम नहीं तो उसे नहीं पाया जा सकता
मृच्छकटिकम्-2 : व्यक्ति के गुण अनुराग के कारण होते हैं, बलात् आप किसी का प्रेम नहीं पा सकते
मृच्छकटिकम्-1 : बताओ मित्र, मरण और निर्धनता में तुम्हें क्या अच्छा लगेगा?
परिचय : डायरी पर नई श्रृंखला- ‘मृच्छकटिकम्’… हर बुधवार

सोशल मीडिया पर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *