Forest Mahakubh

मध्य प्रदेश में इन्दौर के बराबर जंगल घटे, कुम्भ में अपनाई मियावॉकी तकनीक समाधान है!

नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के बारे में प्रचारित यह किया जाता है कि राज्य में सर्वाधिक जंगल हैं। एक अर्थ में यह सही भी हो सकता है।क्योंकि सर्वाधिक जंगल वाली यह स्थिति देश के अन्य अंचलों के मुक़ाबले तुलनात्मक रूप से बनी है। मगर सच का एक पहलू यह भी है कि मध्य प्रदेश में ही बीते कुछ सालों में 612.41 वर्ग किलोमीटर जंगल कम हुए हैं। कम हुए जंगलों का क्षेत्र इन्दौर शहर के क्षेत्रीय विस्तार के लगभग बराबर है, ऐसा बताते हैं।

यही नहीं, प्रदेश के शहरों और क़स्बों से तो हरियाली कम हुई ही है, घने जंगलों से पेड़ों की संख्या भी घटी है। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट-2023 में यह बात सामने आई है। यह रिपोर्ट केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने बीते साल के आख़िर में जारी की थी। इस रिपोर्ट के साथ ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच नामक संस्था द्वारा जारी आँकड़े भी जोड़ दें तो उसमें भी यही बात उभरकर सामने आती है। इसके मुताबिक, बालाघाट, सिवनी, उमरिया, डिंडोरी और मंडला जैसे क्षेत्रों में जंगल सबसे ज़्यादा कम हुए हैं। ग़ौर करते चलें कि यही इलाक़े एक समय में प्रदेश में सर्वाधिक और सबसे घनें जंगलों के लिए पहचाने जाते थे। लेकिन अब स्थिति पूरी विपरीत है।

हालाँकि, इस विपरीतता का एक समाधान भी इसी वक़्त सामने आया। वह भी प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ से। ख़बरें हैं कि वहाँ स्थानीय निकाय ने मेले के मद्देनज़र 56,000 वर्गमीटर में विशेष वन विकसित किया है। मियावॉकी तकनीक से यह वन विकसित किया गया है। तो सवाल हो सकता है कि क्या यह तकनीक उन क्षेत्रों के लिए वैकल्पिक बन्दोबस्त हो सकती है, जहाँ जंगल तेजी से कम हो रहे हैं? इसका ज़वाब जानने के लिए पहले इस तकनीक के बारे में थोड़ा समझ लेना बेहतर होगा, जो जापान से निकलकर दुनियाभर में लोकप्रिय हुई है।

जापान के एक वनस्पतिशास्त्री थे अकीरा मियावाकी। अभी चार साल पहले 16 जुलाई 2021 को उनका निधन हुआ। जबकि जनवरी की आने वाली 29 तारीख़ को उनका जन्मदिन होता है। सन् 1928 में वह पैदा हुए थे। तो मियावॉकी ने पौधों की पारिस्थितिकी में विशेषज्ञता हासिल की थी। यानि कौन सा पौधा किस मिट्‌टी, कितने पानी, कौन से क्षेत्र में उग सकता है, ऐसी सभी चीजों पर उनकी दक्षता थी। बीजों और प्राकृतिक जंगल विकसित करने में भी उन्हें महारत हासिल थी, ख़ासकर बंजर ज़मीन पर। इसके लिए दुनियाभर में उनका नाम हुआ।

उन्हीं जापानी विशेषज्ञ द्वारा विकसित की गई तकनीक को ‘मियावॉकी तकनीक’ कहते हैं। इस तकनीक से 20 वर्गफीट की छोटी सी ज़मीन पर भी जंगल की तरह पेड़ उगा सकते हैं। वह भी सिर्फ तीन साल के भीतर। इस तकनीक के पाँच चरण होते हैं। पहला– ज़मीन का चुनाव करना। उसे तैयार करना। उसके लिए ज़मीन में अच्छे से जैविक खाद डालकर उसे मिट्‌टी में गड्‌ड-मड्‌ड किया जाता है। वहाँ पानी रोकने का इंतिज़ाम किया जाता है। दूसरा– उपयुक्त और तैयार पौधों का चुनाव। पौधों का चुनाव करते समय ध्यान रखते हैं कि उस क्षेत्र विशेष में होने वाली वनस्पति से सम्बन्धित पौधे कुल संख्या के 40-50 फ़ीसद तक ज़रूर हों। तीसरा– यह सुनिश्चित करते है कि पूरी ज़मीन ख़रपतवार, आदि से मुक्त हो जाए। पौधों को पानी देने की समुचित व्यवस्था हो। साथ ही आठ-नौ घंटे उन्हें धूप भी मिले। चौथा– गड्‌ढे खोदकर पौधे लगाना, वह भी दो-दो या तीन-तीन फीट की दूरी पर। पाँचवाँ– लगाए पौधों की अगले तीन साल देख-रेख करना। इस दौरान उनकी छँटाई नहीं करनी होती। बीच-बीच में खरपतवार हटाते रहनी होती है। पौधों को अधिक, तेज धूप और कीटों से बचाने तथा पर्याप्त पानी पहुँचाने की व्यवस्था भी करनी होती है।

इस तरह, छोटी-छोटी जगहों, बंजर ज़मीनों पर घने जंगलनुमा छोटे-बड़े ‘बाग़ीचे’ तैयार कर ख़ास तौर पर शहरों-क़स्बों में कम होती हरियाली की समस्या से निपटकर हरित क्षेत्र बढ़ा सकते हैं।

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