टीम डायरी
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले कभी कहीं से भी नहीं सुने गए। दोनों ‘रोचक-सोचक’ हैं। और अगर इन घटनाक्रमों ने अपेक्षित नतीज़े दिए तो सच मानिए, इनके असर की गूँज दूर तक और देर तक सुनी जाती रहेगी।
पहला घटनाक्रम महाराष्ट्र का है। वहाँ अभी रविवार, 15 दिसम्बर को मंत्रिपरिषद का विस्तार हुआ। नए 39 मंत्री बनाए गए। उन्हें मिलाकर महाराष्ट्र मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्रियों सहित 42 सदस्य हो गए हैं। यानि अब सिर्फ एक मंत्री और शामिल किया जा सकता। वहाँ मंत्रिपरिषद की अधिकतम सदस्य संख्या 43 ही हो सकती है। इस कारण वहाँ 3 पार्टियों के सत्ताधारी गठबन्धन में 3-13 शुरू हो गई। भारतीय जनता पार्टी के सुधीर मुनगंटीवार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के छगन भुजबल जैसे वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर असन्तोष जताया है। इसलिए कि उनकी वरिष्ठता होने के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। जबकि भंडारा से तीन बार के शिवसेना विधायक नरेन्द्र भोंडेकर ने तो नाराज़गी में पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा ही दे दिया।
इसके बाद मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडवणवीस ने ख़बरनवीसों को बताया, “निश्चित समय के बाद सभी मंत्रियों के काम, उनके प्रदर्शन की समीक्षा होगी। उसके बाद मंत्रिपरिषद के स्वरूप में बदलाव किया जाएगा। इस पर हम तीनों पार्टियों के नेता सहमत हैं।” मतलब सीधे शब्दों में समझें तो जो नाक़ारा साबित होंगे, उनसे मंत्री पद का ‘मज़ा’ छीना जा सकता है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने तो समय-सीमा भी बता दी, ढाई साल। उनके मुताबिक, “ढाई साल बीतने के बाद पार्टी के अन्य विधायकों को मंत्री बनने का मौक़ा दिया सकता है।” वहीं दूसरे उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे के बारे में तो कहा जा रहा है कि वे इस बार मंत्री बनाए गए अपनी पार्टी के विधायकों से शपथ-पत्र ले रहे हैं कि वे ढाई साल बाद पद छोड़ने में कोई आना-कानी नहीं करेंगे।
अलबत्ता, इस घटनाक्रम में एक बात तय मानिए। ये कि अगर महाराष्ट्र में मंत्रियों के कामकाज़ की निष्पक्ष तथा पारदर्शी समीक्षा हो पाई (क्योंकि राजनीति में यह ख़ासी मुश्क़िल है) और इस आधार पर उन्हें पद से हटाया गया तो ये पहल देश में मिसाल बन सकती है। जनता पर बड़ा असर छोड़ सकती है।
वैसे दूसरी तरफ़, मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर ने तो साफ़-सफ़ाई के अलावा एक और मिसाल क़ायम कर ही दी है। शहर को भिखारीमुक्त करने के अभियान के तहत अब इस शहर में ‘भीख़ देने वालों को सज़ा’ हो सकती है। जिला प्रशासन ने बाक़ायदा इसकी घोषणा कर दी है। आने वाली एक जनवरी से जो भी भिख़ारियों को भीख़ देते पाया जाएगा, उसके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज़ कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
यहाँ याद दिलाते चलें कि अभी 14 दिसम्बर, शनिवार को ही #अपनीडिजिटलडायरी की ओर से अपील की गई थी कि भिख़ारियों को भीख़ देना बन्द किया जाना चाहिए। इस बाबत लिखे गए लेख में इन्दौर पुलिस और जिला प्रशासन को भी सोशल मीडिया के माध्यम से सम्बद्ध किया गया था। #डायरी के लेख को पढ़ा जा सकता है। उसका शीर्षक था….
हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा
यहाँ फिर कहना होगा कि किसी भी शहर या इलाक़े को भिख़ारियों से मुक्त करने का यही सबसे प्रभावी तरीक़ा है कि ‘भीख़ देने वालों’ को रोका जाए। उन्हें हतोत्साहित किया जाए। और इन्दौर ने इस दिशा में क़दम उठाकर फिर पूरे देश को राह दिखाने का काम किया है। ये प्रयास भी असरदार हो सकता है।