नीलेश द्विवेदी, भोपाल मध्य प्रदेश
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला तो करा दिया, लेकिन उसे शायद ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी, जैसी प्रतिक्रिया उसे भारत से मिल रही है। उसने आतंकी हिमाक़त करने से पहले गुणा-भाग लगाते समय शायद यही सोचा होगा कि भारत अधिक से अधिक ज़वाबी सैन्य कार्रवाई ही करेगा। जैसे- उरी आतंकी हमले (2016) के बाद पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में स्थित आतंकी शिविरों पर भारतीय सेना के जवानों ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी। फिर बाद में पुलवामा आतंकी हमले (2019) के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में मौज़ूद आतंकी शिविरों पर भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने बम गिराए थे। पाकिस्तान ने इस तरह की किसी कार्रवाई के लिए इस बार पहले से ख़ुद को तैयार कर रखा था। लेकिन उसके साथ अनापेक्षित घट गया।
भारत ने इस बार सिन्धु नदी जल सन्धि को निलम्बित कर दिया। यानि जो सन्धि 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों और 1999 की करगिल जंग के दौरान भी निलम्बित नहीं हुई, इस बार हो गई। इस सन्धि के तहत सिन्धु नदी और उसकी सहायक पाँच नदियों (कुल छह) के पानी का बँटवारा भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था। सन् 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में तमाम अन्तर्राष्ट्रीय नियम-क़ायदों के साथ तीन नदियों- सिन्धु, झेलम और चिनाब के पानी पर पूरा अधिकार (80 प्रतिशत से भी अधिक) पाकिस्तान को मिला। जबकि अन्य तीन नदियों- राबी, ब्यास और सतलज के पानी पर भारत का हक़ रहा। यही नहीं, जिन नदियों पर पाकिस्तान का अधिकार हुआ, उन पर भारत अव्वल तो बाँध, वग़ैरा बना नहीं सकता था। बनाए भी तो, 20 प्रतिशत से अधिक पानी रोक नहीं सकता था। इसके साथ उसे समय-समय पर पाकिस्तान को बताना होता था कि तीनों नदियों में पानी का स्तर कैसा है?
इस सन्धि के बलबूते ही पाकिस्तान में अमूमन पानी की तंगी नहीं हुई। बावज़ूद इसके कि वह भारत में आतंकी हमले कराता रहा। यहाँ निर्दोष लोगों का खून बहाता रहा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले तो (2016 में) चेतावनी दी, “खून और पानी साथ नहीं बह सकता।” फिर यक़ीनन बीते नौ सालों में कुछ तैयारियाँ भी कीं कि ज़रूरत पर पड़ने पर खून बहाने वालों का पानी कैसे रोका जा सकता है। और अब पानी रोक भी दिया। फिर भी विशेषज्ञों के सवाल थे कि पाकिस्तान के हिस्से वाली तीनों नदियों पर अब भी इतने बाँध नहीं हैं कि उनका पानी रोका जा सके। तब केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने बताया कि दरअस्ल, “इस बार भारत का सरकार की योजना तीन स्तरीय है। पहली- कम अवधि वाली, दूसरी- मध्यम अवधि वाली, तीसरी- लग्बी अवधि वाली। इन तीनों योजनाओं के बलबूते सुनिश्चित किया जाएगा कि पाकिस्तान को सिन्धु और सहायक नदियों से पानी न मिले।”
फिर भी सवाल रह गए क्योंकि मध्यम और लम्बी अवधि के मामले तो समझ आए कि पहले नदियों का पानी मोड़ने और उसे दूसरी नदियों में छोड़ने की कोशिश की जाएगी। साथ ही उन पर बड़े बाँध बनाए जाएँगे, ताकि अधिक पानी को रोका जा सके। लेकिन तात्कालिक अल्प अवधि में पानी कैसे रोकेंगे? तो इसका ज़वाब आज, 26 अप्रैल को ही मिल गया। नीचे दिया गया वीडियो देखिए। झेलम नदी से बाढ़ की शक्ल में पानी पाकिस्तान के क्षेत्रों में घुस रहा है। इसकी पुष्टि ख़ुद पाकिस्तान ने की है कि भारत से झेलम में छोड़े गए पानी से वहाँ बाढ़ की स्थिति बन गई है। अल्प अवधि की योजना सम्भवत: यही है कि तीनों नदियों पर जितने भी बाँध हैं, उनमें उनकी अधिकतम क्षमता तक पानी रोकना। फिर पाकिस्तान को पूर्व सूचना दिए बगैर (जैसा कि सन्धि में प्रावधान था) पानी छोड़ देना।
BREAKING:
— Visegrád 24 (@visegrad24) April 26, 2025
Flooding starts in Pakistan after India unexpectedly releases water in the Jhelum River without prior notification.
Locals worry that the situations could get much worse if the water keeps flowing from India.
🇮🇳🇵🇰 pic.twitter.com/kY8Fol0X2A
पाकिस्तान के पास भारत के इस जल-आक्रमण से बचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला- वह सिन्धु नदी जल सन्धि से जुड़े विवाद निपटाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण की शरण में जाए। अलबत्ता, यह विकल्प काफ़ी समय लेने वाला है। जब तक वहाँ सुनवाई होगी, फ़ैसला होगा, पाकिस्तान में काफ़ी तबाही-बर्बादी हो चुकी होगी। सो, ऐसे में दूसरा विकल्प- भारत के ख़िलाफ़ पूर्ण युद्ध शुरू करना। उसकी ओर से इसके संकेत मिले भी हैं। उसने ज़वाबी कार्यवाही के तहत भारत के साथ् 1972 में हुए शिमला समझौते को निलम्बित कर दिया है। हालाँकि उसका यह क़दम आत्मघाती ही अधिक है। क्यों? क्योंकि ‘शिमला समझौते’ में यह बन्दोबस्त था कि दोनों देश जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कन्ट्रोल- एलओसी) का उल्लंघन नहीं करेंगे। उसका सम्मान करेंगे। भारत ने 1972 के बाद से कभी एलओसी का उल्लंघन किया भी नहीं। बावज़ूद कि पाकिस्तान ने 1999 में करगिल में घुसपैठियों की शक्ल में अपने सैनिक एलओसी के इस तरफ भेजकर भारतीय इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की। मगर भारत ने पूरा संयम बरतते और एलओसी का सम्मान बनाए रखते हुए अपने इलाक़े छुड़ा लिए।
अलबत्ता, अब भारत की मौज़ूदा सरकार सम्भवत: एलओसी का सम्मान न करे क्योंकि ख़ुद पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से (पहली बार) शिमला समझौता निलम्बित कर के उसे मौक़ा दे दिया है। ऐसे में, पाकिस्तान अगर पूर्ण युद्ध शुरू करता है, तो भारत सरकार इस मौक़े का पूरा लाभ उठाना चाहेगी, ऐसा माना जा सकता है। भारत की सेना एलओसी के उस पार जाकर पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले अपने इलाक़ों को हमेशा के लिए वापस छीन लेने की क़ोशिश करेगी। पूरी तैयारी भी लग रही है इसकी। और भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई बड़े लोग बार-बार कह भी चुके हैं कि जल्द पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाला कश्मीर भारत में होगा। यानि इंतिज़ार, पाकिस्तान द्वारा युद्ध शुरू करने का है क्योंकि भारत अपनी वैश्विक छवि के अनुरूप ख़ुद युद्ध की पहल शायद नहीं करेगा।
हालाँकि फिर भी आज की स्थिति में यह कहना अधिक ग़लत नहीं होगा कि भारत ने पासा फेंका (सिन्धु नदी जल सन्धि निलम्बित करने का) और पाकिस्तान का पैर कुल्हाड़ी पर (शिमला समझौता निलम्बित करने की भूल) पड़ गया। साथ ही गर्दन तो फन्दे में है ही! सो, अब आगे क्या होता है, यह देखना ‘रोचक’ होगा।