आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 12/1/2022

यूनियन कार्बाइड फैक्टरी की सुरक्षा पर सरकार को हर महीने करीब दो लाख रुपए खर्च करना पड़ रहे हैं।… विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) के साथ ही होमगार्ड के जवान भी फैक्टरी परिसर में तैनात हैं। फैक्टरी की जमीन और परिसर में स्थित संपत्ति फिलहाल जिला प्रशासन के कब्जे में है। प्रशासन के सूत्रों के अनुसार 1999 में जब सरकार के एक निर्णय के तहत फैक्टरी परिसर का कब्जा उद्योग विभाग से कलेक्टर (गैस त्रासदी एवं पुनर्वास) को सौंपा था, तब सुरक्षा का जिम्मा प्राइवेट सिक्युरिटी एजेंसी के हाथों था। जून 2003 से प्रशासन ने यहां होमगार्ड जवान तैनात कर दिए।… 

वर्तमान में परिसर की सुरक्षा के लिए एसएएफ के 12 सुरक्षाकर्मी तथा होमगार्ड के 11 जवान तैनात हैं। फैक्टरी में पड़े रसायनों और सुरक्षा के कारण परिसर में प्रशासन की बिना इजाजत प्रवेश नहीं दिया जाता है।…होमगार्ड पर 2003 से मार्च 2010 तक प्रतिमाह औसतन 41 हजार रुपए खर्च हुए।…सात वर्षों में जिला प्रशासन खाते से 34 लाख रुपए खर्च किए गए। एसएएफ जिला पुलिस के मार्फत तैनात है। वैसे यहां के लिए एक प्लाटून (22 सुरक्षाकर्मी) स्वीकृत है। जब पूरी प्लाटून तैनात रहती है तब, हर माह लगभग ढाई लाख रुपए वेतन निकलता है। अभी 12 सुरक्षाकर्मियों वेतन करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च हो रहे हैं।… 

एक खबर मेक्सिको की खाड़ी में हाल ही में हुई तेल रिसाव की दुर्घटना पर केंद्रित है। इस हादसे की जिम्मेदार ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) कंपनी ने अमेरिका को 900 अरब रुपए का मुआव देने पर सहमति जताई है। जबकि भोपाल गैस कांड में मिला मुआवज केवल 715 करोड़ रुपए था।

भोपाल के राष्ट्रीय विधि संस्थान विवि (एनएलआईयू) के बाद प्राध्यापक (विधि) डॉ. एस सूर्यप्रकाश ने कहा है कि मैक्सिको के हादसे में महज 11 लोगों की जान गई और जलीय जीवों व पर्यावरण को नुकसान पहुंचा, जबकि भोपाल गैस कांड में 15 हजार से अधिक जानें गईं। पर्यावरण प्रदूषित हुआ और आने वाली पीढ़ियां भी प्रभावित हुईं। लेकिन क्षतिपूर्ति के बदले जो राशि मिली वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही रही।

डॉ. सूर्यप्रकाश ने कहा कि तेल रिसाव मामले में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने खुद मोर्चा संभाला और ब्रिटिश कंपनी पर दबाव बनाए रखा। इसका नतीजा रहा कि कोर्ट के बाहर केवल तीन महीनों में ही 20 अरब डॉलर (करीब 900 अरब रुपए) के मुआवजे पर सहमति बन गई। इस घटना से भारत सबक ले सकता है जहां विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के 25 साल बाद आज भी राहत, पुनर्वास और समुचित न्याय से जुड़े सवाल सुलग रहे हैं। 

….आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई। यह कथा उसके बाद भी अनंत है। पीने के पानी को ही लीजिए। त्रासदी के 25 बरस बाद भी केंद्र व राज्य सरकार और नगर निगम गैस प्रभावित बस्तियों के नागरिकों को शुद्ध पानी मुहैया नहीं करा पाई हैं। करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी पीड़ित अब भी जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं। यह मामला संसद, विधानसभा से लेकर नगर-निगम परिषद में भी उठ चुका है।… 

हालत यह है कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास के करीब तीन किलोमीटर के व्यास में रहने वाले लगभग 36 हजार लोग जहरीला पानी पी रहे हैं। जिसके चलते उन्हें श्वांस, किडनी, लीवर, त्वचा, हृदय संबंधी बीमारियां हो रही है। इसका खुलासा होने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं हैं।…  केंद्र सरकार ने 2006 में गैस प्रभावितों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने राज्य सरकार को 14.12 करोड़ रुपए दिए थे। इस राशि से गैस प्रभावित 14 बस्तियों में पाइप लाइन बिछना थी। चार साल में नगर निगम कुल सात प्रभावित बस्तियों में ही पाइप लाइन बिछा पाया है। बाकी लाइन बिछाने का काम छह माह से बंद है। कारखाने के आसपास की बस्तियों में फैले जहरीले कचरे को लेकर जन संगठनों के हंगामे के बाद यहां के करीब 55 हैंडपंपों के हैंडल पर लाल रंग पोता गया था। ताकि लोग इनका पानी न पीयें लेकिन कोलार और बड़े तालाब से जलापूर्ति न होने से लोग मजबूरी में इनका उपयोग कर रहे हैं। 
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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