निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश
किसी महात्वाकांक्षी लक्ष्य को पटरी उतारने या हतोत्साहित करने का सबसे बढ़िया है, उस पर सवाल खड़ा कर दिया जाए। जैसे….
1 – “इसे प्राप्त करना तो असम्भव ही है?”
2 – और अगर तब भी लक्ष्य हासिल हो जाए तो लक्ष्य-बिन्दु को आगे खिसका दें और फिर बोलें कि अरे, असली लक्ष्य तो ये था, जो अभी-अभी बताया, पहले वाला नहीं।
यह जाँची-परखी हुई रणनीति है। खासकर, कॉरपोरेट दुनिया के नकारात्मक लोगों की। मैंने यह कई बार देखी है।
अलबत्ता, इसी रणनीति को बीते दिनों भारत के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के मंत्री हरदीप सिंह पुरी के ऊपर पश्चिमी देश के एक समाचार चैनल के प्रस्तोता (एंकर) ने आजमाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा निर्धारित महात्वाकांक्षी लक्ष्य कि 2047 तक भारत को विकसित देशों की सूची में लाना है, उसने इस पर सवाल किया!
अब भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर वह सवाल नहीं कर सकता था क्योंकि यह अगले कुछ सालों में दुनिया में तीसरे नंबर पर आने ही वाला है। इसलिए उसने प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (परकैपिटा जीडीपी) पर सवाल बनाया। तब मंत्री जी ने बड़ी बुद्धिमानी से उस समाचार प्रस्तोता पर उल्टा सवाल दाग दिया, “विकसित देश की परिभाषा क्या है?” ज़ाहिर है उसके पास कोई ज़वाब नहीं था, क्योंकि कोई परिभाषा है नहीं।
तब पुरी साहब ने आगे कहा, “विकसित देश की असल पहचान यह होनी चाहिए कि नागरिक सुविधाओं तक सबकी पहुँच कितनी आसान है।” आर्थिक शब्दावली में इसे ख़रीदी की ताक़त या परचेज़िंग पावर कहते हैं।
निश्चित रूप से सही कहा उन्होंने। मेरे पास इस बात की कुछ मिसाल है। मेरे कई दोस्त अमेरिका में रहते हैं। वे सब ख़ूब पैसे वाले हैं, लेकिन उनके दाँतों में जब दर्द होता है, तो वे इलाज़ भारत से कराते हैं।
मेरी बेटियाँ भी अमेरिका में ही हैं, लेकिन वे वहाँ, जरूरत पड़ने पर भी किसी डॉक्टर के पास जाने से बचती हैं। क्यों? क्योंकि एक तो वहाँ के डॉक्टर बहुत महँगे हैं या फिर उनके यहाँ की प्रतीक्षा सूची हफ़्तों-महीनों की होती है। आखिर में मेरी पत्नी को बेंगलुरू (चूँकि मैं वहीं रहता हूँ) से उनके लिए डॉक्टर की व्यवस्था करनी पड़ती है, वीडियो कॉल पर। मैं इसी तरह के और भी कई उदाहरण बता सकता हूँ। उनसे, घूम-फिरकर यही साबित होता है कि भारत में तमाम ज़रूरी सुविधाओं तक सभी लोगों की पहुँच पश्चिम के किसी भी ‘विकसित देश’ की तुलना कहीं ज़्यादा आसान है।
मैं अपना ही एक क़िस्सा और बताता हूँ। साल 2004 में अमेरिका से बेंगलुरू वापस आया। इससे पहले मैं अमेरिका में दो शयनकक्ष, हॉल और रसोई वाले (2बीएचके) मकान में रहा करता था, कैलिफोर्निया में किराए से। वहाँ मेरी तनख़्वाह बहुत अच्छी थी। अमेरिकी डॉलर में पैसा मिलता था। इसके बावज़ूद मैं वहाँ अपना मकान नहीं ख़रीद सका।
फिर मैं बेंगलुरू आया और दो साल के भीतर यहाँ तीन शयनकक्ष, हॉल और रसोई वाले (3बीएचके) बड़े से मकान का मालिक बन गया। यह मकान भी ऐसे परिसर में, जो हर तरफ़ से चारदीवारी से सुरक्षित है। उसी के भीतर तरण-ताल (स्विमिंग पूल) है। क्लब हाउस है। खेल-कूद जैसी अन्य कई सुविधाएँ भी हैं। और जानते हैं, यहाँ मेरी वेतन कितनी थी तब? रुपए के हिसाब से अमेरिकी डॉलर की क़ीमत के अनुसार अमेरिका की तुलना में चार गुणा कम!
लिहाज़ा, अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि भारत को विकसित देशों की सूची में शामिल होने के लिए ज़्यादा कुछ करने की ज़रूत है नहीं। बड़ी-बड़ी चौड़ी सड़कें बन ही रहीं हैं हर तरफ़। हवाई अड्डों, रेल मार्गों का भी कायाकल्प हो रहा है। वित्तीय ढाँचा मज़बूत हो रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाएँ और उनकी गुणवत्ता भी बेहतर हो रही है। बहुत तेजी से ये सब काम चल रहे हैं, नतीज़े दिख रहे हैं।
तो बस, अब दो चीज़ें और किए जाने की ज़रूरत मुझे महसूस होती है :
1- हर बड़े शहर में सीमेंटवाली सड़कें हो जाएँ। उनके दोनों किनारों पर बढ़िया सुन्दर फुटपाथ बन जाएँ।
2- शहरों, क़स्बों की साफ-सफाई का स्तर वैसा हो जाए, जैसा मेरे अपने शहर इन्दौर का है।
क्या लगता है?
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निकेश का मूल लेख
The best way to derail or demoralize an ambitious goal is to question it……..
1. “It’s impossible to achieve”.
2. If it’s achieved then change the goal post and say oops the target was something else.
This is a tried and tested strategy (obviously a negative one) in corporate world and I have seen this movie so many times.
This western news anchor is trying to do exactly same thing to our honorable minister – questioning PM Modi’s ambitious goal to make India a developed nation by the year 2047
They can’t question the size of India’s GDP because it will be number 3 in few years so next thing they will question is – per capita GDP.
Minister answered it smartly by questioning – “what is the definition of developed country”?
There is none.
Then Minister said – it should be defined by the accessibility of facilities or in others words PPP (purchasing power).
Of course yes, it should be purchasing power which will determine the accessibility of amenities/services.
I have friends who are living in US and are very rich but they get their dental treatment done in India!
I have my daughters who avoid visiting to a doctor in US because either it’s too expensive or wait time is too long. Finally my wife gets them on a video call with a doctor in Bangalore!!
I can add so many other examples where I find facilities and services accessible in India far easier and better than a developed western country.
Let me share another anecdote – when I relocated to Bangalore from US in 2004, I was living in a small 2BHK apartment in California. I was earning handsome salary in USD but still couldn’t afford a house.
I moved to Bangalore and in 2 years time I was living in a palatial 3BHK Villa inside a gated community with all kinds of amenities (swimming pool, club house, sports facilities etc.) And my salary in INR was 4 times less than what I was earning in US (using then exchange rate).
I think to become a developed country India needs only few things:
1. Every major city should have cemented roads with a nice footpath running both the sides.
2. Clean cities (like Indore)
Rest everything else like highways, airports, railways, medical, education, financial infra etc. are either already developed or getting developed at a very fast pace.
Thoughts?
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#developednation #developingnation #economy #gdp #ppp #purchasingpower #infrastructure #india
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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)
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निकेश के पिछले 10 लेख
47 – उल्टे हाथ से लिखने वाले की तस्वीर बनाने को कहा तो एआई ने सीधे हाथ वाले की बना दी!
46 – ‘ट्रम्प 20 साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाते, तो हमारे बच्चे ‘भारतीय’ होते’!
45 – 70 या 90 नहीं, मैंने तो हफ़्ते में 100 घंटे भी काम किया, मगर उसका ‘हासिल’ क्या?
44 – भोपाल त्रासदी से कारोबारी सबक : नियमों का पालन सिर्फ़ खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए
43 – ध्याान रखिए, करियर और बच्चों के भविष्य का विकल्प है, माता-पिता का नहीं!
42 – भारत के लोग बैठकों में समय पर नहीं आते, ये ‘आम धारणा’ सही है या ग़लत?
41 – देखिए, मीडिया कैसे पक्षपाती तौर पर काम करता है, मेरे अनुभव का किस्सा है!
40 – ज़िन्दगी में कुछ अनुभव हमें विनम्र बना जाते हैं, बताता हूँ कैसे…पढ़िएगा!
39 – भारत सिर्फ़ अंग्रेजी ही नहीं बोलता!
38 – भारत को एआई के मामले में पिछलग्गू नहीं रहना है, दुनिया की अगुवाई करनी है